संसद पर आतंकी हमले की 18वीं बरसी आज: 13 दिसंबर के दिन 'लोकतंत्र का मंदिर' हुआ था लहूलुहान, वीरों ने प्राण देकर बचाई थी भारत की आन-बान-शान
आतंकियों ने भारत के 'लोकतंत्र के मंदिर' संसद भवन (Parliament) को आज से 18 साल पहले 13 दिसंबर 2001 के दिन लहूलुहान कर दिया था. संसद भवन को आतंकवादीयों ने हमला कर अपना निशाना बनाया गया था लेकिन उनके नापाक मंशा को नाकाम करने के लिए देश के जांबाजों ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया. इस आतंकी हमले में दिल्ली पुलिस के पांच सुरक्षाकर्मी नानकचंद, रामपाल, ओमप्रकाश, बिजेंद्र सिंह और घनश्याम, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की कांस्टेबल कमलेश कुमारी और संसद सुरक्षा सेवा के दो सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव और मातबर सिंह नेगी इस हमले का बहादुरी से सामना करते हुए शहीद हो गए थे. वहीं जवाबी कार्रवाई में सुरक्षाबलों ने संसद पर हमला करने वाले पांचों आतंकियों को ढेर कर दिया था. कहा जाता है जब आतंकियों ने हमला किया था उस वक्त तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत करीब 100 संसद सदस्य उस वक्त सदन में उपस्थित थे.
नई दिल्ली:- आतंकियों ने भारत के 'लोकतंत्र के मंदिर' संसद भवन (Parliament) को आज से 18 साल पहले 13 दिसंबर 2001 के दिन लहूलुहान कर दिया था. संसद भवन को आतंकवादीयों ने हमला कर अपना निशाना बनाया गया था लेकिन उनके नापाक मंशा को नाकाम करने के लिए देश के जांबाजों ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया. इस आतंकी हमले में दिल्ली पुलिस के पांच सुरक्षाकर्मी नानकचंद, रामपाल, ओमप्रकाश, बिजेंद्र सिंह और घनश्याम, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की कांस्टेबल कमलेश कुमारी और संसद सुरक्षा सेवा के दो सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव और मातबर सिंह नेगी इस हमले का बहादुरी से सामना करते हुए शहीद हो गए थे. वहीं जवाबी कार्रवाई में सुरक्षाबलों ने संसद पर हमला करने वाले पांचों आतंकियों को ढेर कर दिया था. कहा जाता है जब आतंकियों ने हमला किया था उस वक्त तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत करीब 100 संसद सदस्य उस वक्त सदन में उपस्थित थे.
आतंकवादीयों ने संसद पर हमला सुबह 11:30 मिनट पर किया था. डीएल-3सीजे-1527 नंबर वाली अंबेसडर कार में सवार होकर पांच आतंकवादी संसद के अंदर घुसने के बाद अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. दहशत के इस 45 मिनट ने हर भारतीय को हिला कर रख दिया था. लेकिन संसद परिसर की रक्षा में तैनात हमारे सतर्क एवं वीर सुरक्षा बलों ने इस कायरतापूर्ण हमले को विफल कर दिया. भारत की संसद पर हमला करने की हिमाकत जैश और लश्कर के आतंकियों ने की थी. इस आतंकी हमले के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने उनकी मदद करने के आरोप में अफजल गुरु समेत चार लोगों को अरेस्ट किया था, जिसमें अफजल गुरु को 9 फरवरी, 2013 में दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई.
कैसे आए थे आतंकी
सिक्युरिटी ऑफिसर्स ने देखा कि एक सफेद रंग की ऐंबैसडर कार संसद मार्ग पर बढ़ते हुए पार्लियामेंट के गेट नंबर 11 की तरफ आ रही थी. यह कार गेट नंबर 11 को पार करती हुई गेट नंबर 12 के पास पहुंच चुकी थी. यहीं से राज्यसभा के अंदर जाने का रास्ता भी है. मगर यह कार उस दिशा में बढ़ गई, जहां पर वाइस-प्रेजिडेंट का काफिला खड़ा था. संसद भवन में इस तरह की गाड़ियों की आवाजाही आम है, वाइस-प्रेजिडेंट का काफिला निकलने वाला था,इसलिए उस कार को वहीं रुकने का इशारा किया गया. मगर कार की स्पीड बढ़ती चली गई. ऐसे में वहां पर तैनात एएसआई जीतराम इस कार के पीछे भागा. ऐंबैसडर का ड्राइवर हड़बड़ाया हुआ लगा रहा था. अचानक उसने कार पीछे घुमाई जो राष्ट्रपति के काफिले की कार से टकरा गई.
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आतंकियों के मंसूबे
आतंकियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच करीब 30 मिनट तक मुठभेड़ चली. ऐंबुलेंस, बम स्क्वॉड और स्पेशल एजेंसियों के लोग यहां पहुंच चुके थे. जिस अंबेसडर कार से आतंकी अंदर आए थे, उसकी जांच करने पर पता चला कि उसमें हथियार और विस्फोटक रखे हैं. कार के अंदर 30 किलो आरडीएक्स मिला. अगर इस कार में धमाका हो जाता, तो हालात बेहद खराब होते. बम स्कवॉड ने बमों को नाकाम कर दिया. आतंकियों की कार में खाने-पीने का सामान भी मिला, जिससे साफ हुआ कि आतंकियों के मंसूबे कितने खतरनाक थे. वे इस बात की पूरी तैयारी करके आए थे कि सांसदों को बंधक बना लिया जाए. देश के उन जवानों को सलाम जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर सबकी जान बचाई.वरना हालात बदतर हो सकते थे.