कर्नाटक में लिंगायत संतों का दावा, पीर पाशा दरगाह 'अनुभवा मंडप' पर बनी हुई है

ऐतिहासिक श्रीरंगपटना शहर में जामिया मस्जिद और मंगलुरु शहर के पास मलाली मस्जिद के बाद कर्नाटक के बीदर जिले के बसवकल्याण शहर के पास 'पीर पाशा दरगाह' को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है. वीरशैव-लिंगायत संतों ने दावा किया है कि दुनिया की पहली संसद- 'अनुभवा मंडप' को कथित तौर पर तोड़ा गया था

प्रतिकात्मक तस्वीर (Photo Credits ANI)

बेंगलुरु: ऐतिहासिक श्रीरंगपटना शहर में जामिया मस्जिद और मंगलुरु शहर के पास मलाली मस्जिद के बाद कर्नाटक के बीदर जिले के बसवकल्याण शहर के पास 'पीर पाशा दरगाह' को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है. वीरशैव-लिंगायत संतों ने दावा किया है कि दुनिया की पहली संसद- 'अनुभवा मंडप' को कथित तौर पर तोड़ा गया था और उस पर एक दरगाह बनाई गई थी. विवाद ने एक नया मोड़ ले लिया है, क्योंकि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने सोमवार को कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) पीर पाशा दरगाह के 'अनुभवा मंडप' स्थल पर होने के दावों के बारे में सच्चाई का सत्यापन करने जा रहा है.

उन्होंने कहा, "द्रष्टाओं ने पीर पाशा दरगाह पर एक शोध करने की मांग की है. उन्होंने इस संबंध में दस्तावेज भी उपलब्ध कराए हैं, जिनका एएसआई द्वारा सत्यापन किया जा रहा है. सूत्रों के अनुसार, इस मामले में किसी भी तरह की प्रगति से राज्य में अशांति पैदा होने की संभावना है. यह भी पढ़े: Gyanvapi Masjid Case: ज्ञानवापी सर्वे के बाद हिंदू पक्ष बोला, 'मिल गए बाबा', जानें मुस्लिम पक्ष ने क्या दी प्रतिक्रिया, वजू पर भी पाबंदी

पीर पाशा दरगाह बसवकल्याण शहर में स्थित है, जो समाज सुधारक बसवेश्वर का जन्मस्थान है, जिन्होंने 12वीं शताब्दी में एक सामाजिक क्रांति की और लिंगायत संप्रदाय की स्थापना की. बसवेश्वर ने हिंदू धर्म और समाज में जाति भेदभाव, असमानता, लैंगिक असमानता और अन्य सामाजिक बुराइयों पर चर्चा के लिए 'अनुभवा मंडप' का मंच के रूप में इस्तेमाल किया.

उन्होंने सभी जातियों, महिलाओं को प्रतिनिधित्व दिया और अंतर्जातीय विवाह करने के लिए मंच का इस्तेमाल किया. मंच ने कर्नाटक में 'वचन साहित्य' के रूप में बेहतरीन साहित्य का निर्माण भी किया.

कर्नाटक में भाजपा सरकार ने 2021 में 200 करोड़ रुपये की लागत से बसवकल्याण में शानदार 'अनुभवा मंडप' के निर्माण की घोषणा की.पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने परियोजना की आधारशिला रखी थी. मुख्यमंत्री बोम्मई ने परियोजना को पूरा करने के लिए तीन साल की समय सीमा दी है. परियोजना की लागत बढ़ाकर 532 करोड़ रुपये कर दी गई है.

वीरशैव-लिंगायत संतों ने बोम्मई से उनके आवास पर बसवकल्याण के भाजपा विधायक शरणु सालागर के साथ मुलाकात की और पीर पाशा दरगाह के सर्वेक्षण की मांग की. उनका दावा है कि पीर पाशा दरगाह बसवेश्वर द्वारा स्थापित 12वीं शताब्दी की संसद जैसी संरचना 'अनुभवा मंडप' पर खड़ी है.कर्नाटक में नवाबों के शासनकाल के दौरान एक दरगाह बनाने के लिए इसे तोड़ा गया था.

साधुओं द्वारा सौंपे गए ज्ञापन में दावा किया गया है कि उन्होंने स्थानीय स्रोतों के माध्यम से दरगाह के बारे में सच्चाई का पता लगाया है और अपने दावों को साबित करने के लिए दस्तावेज हासिल किए हैं. हालांकि, कुछ लिंगायत संतों ने 'अनुभवा मंडप' के दावों पर आपत्ति जताई है.

भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार इस मुद्दे पर सावधानी से काम कर रही है, क्योंकि लिंगायत समुदाय भाजपा का मुख्य वोट आधार है. इस समुदाय को भी राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

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