
Legal Marriage And Consent For S*x: बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक दुष्कर्म के आरोपी के खिलाफ दर्ज FIR को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि जब शिकायतकर्ता महिला से आरोपी का विधिक विवाह हो चुका था, तो केवल धार्मिक रीति-रिवाजों की कमी के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि यौन संबंध के लिए दी गई सहमति धोखे से ली गई थी.
मामले का विवरण
यह मामला गोवा का है, जिसमें 26 वर्षीय युवक और महिला की जुलाई 2022 में सिविल मैरिज एक्ट के तहत कानूनी रूप से शादी हुई थी, लेकिन इस विवाह को धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न नहीं किया गया था.
बाद में पति को पत्नी के कुछ पूर्व संबंधों के बारे में जानकारी मिली, जिसके बाद उसने विवाह को निरस्त (annul) करने की अर्जी दी. इसके जवाब में पत्नी ने पति पर यौन शोषण का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें कहा गया कि पति ने धार्मिक रीति-रिवाजों से शादी का झांसा देकर उसके साथ संबंध बनाए.
कोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति निवेदिता मेहता की खंडपीठ ने इस मामले में स्पष्ट रूप से कहा कि दोनों पक्षों के बीच पहले से कानूनी विवाह था, जिसे दोनों स्वीकार भी कर रहे हैं. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि पत्नी की सहमति उस वादे से प्रभावित थी जो धार्मिक विवाह कराने को लेकर किया गया था.
Legal marriage validates consent for sex; religious ceremony not needed: Bombay High Court quashes rape case
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— Bar and Bench (@barandbench) April 9, 2025
कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा: "पति द्वारा धार्मिक रीति-रिवाजों से शादी करने का वादा किसी भी दृष्टिकोण से 'झूठा वादा' नहीं माना जा सकता, विशेषकर तब जब दोनों के बीच कानूनी रूप से वैध विवाह पहले ही पंजीकृत हो चुका था."
अदालत ने यह भी कहा कि अगर पति ने धार्मिक रस्में पूरी करने का वादा करके बाद में इनकार किया, तो यह अधिक से अधिक विवाह की रस्में पूरी करने का वादा निभाने में असफलता हो सकती है, लेकिन इसे दुष्कर्म या धोखाधड़ी के अपराध में नहीं गिना जा सकता.
एफआईआर और चार्जशीट हुई खारिज
कोर्ट ने माना कि शिकायत में दर्ज आरोप भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 (दुष्कर्म) या धारा 420 (धोखाधड़ी) के अंतर्गत नहीं आते, क्योंकि यौन संबंध उस समय बने जब दोनों पति-पत्नी कानूनी रूप से विवाहित थे. इस आधार पर कोर्ट ने एफआईआर और चार्जशीट दोनों को खारिज कर दिया.