
नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में तीन दिन चली अहम बहस के बाद गुरुवार को अदालत ने इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. इस दौरान कोर्ट में धार्मिक मान्यताओं, दार्शनिक दृष्टिकोण और संवैधानिक तर्कों की रोचक टकराहट देखने को मिली. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट में दलील दी कि “वक्फ एक धार्मिक उद्देश्य से ईश्वर को समर्पण है यह सामान्य दान नहीं, बल्कि अल्लाह के नाम पर एक धार्मिक कर्तव्य है.” उन्होंने इसे इस्लाम में परलोक के कल्याण से जोड़ा और कहा कि यह किसी भी अन्य धर्म से भिन्न है.
“हिंदू धर्म में है मोक्ष की अवधारणा” सीजेआई बीआर गवई की टिप्पणी
कपिल सिब्बल की इस दलील पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा, “हिंदू धर्म में मोक्ष की अवधारणा है.” इस टिप्पणी ने बहस को केवल कानून से परे ले जाकर एक आध्यात्मिक विमर्श की दिशा में मोड़ दिया. जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने भी कहा, “ईसाई धर्म में भी स्वर्ग की अवधारणा है, हम सब किसी न किसी रूप में मुक्ति की ओर ही बढ़ते हैं.”
क्या वक्फ इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है?
भारत सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “वक्फ इस्लाम का आवश्यक धार्मिक अभ्यास नहीं है, बल्कि यह एक दान का रूप है.” उन्होंने यह भी जोड़ा कि दान सभी धर्मों में मौजूद है. हिंदू धर्म में दान, सिखों में लंगर, ईसाइयों में चैरिटी.
“मंदिर भी हिंदू धर्म के लिए आवश्यक नहीं” राजीव धवन का तर्क
वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने इस विचार को चुनौती दी और कहा कि हिंदू धर्म में भी मंदिर अनिवार्य नहीं हैं. उन्होंने वेदों का हवाला देते हुए कहा कि प्राकृतिक शक्तियों की पूजा ही मूल परंपरा रही है.
गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में रखना उचित?
कपिल सिब्बल ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम प्रतिनिधियों को शामिल किए जाने पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा, “अगर एक भी गैर-मुस्लिम सदस्य वक्फ बोर्ड में होता है, तो यह धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता का उल्लंघन है.” उन्होंने इसकी तुलना हिंदू मंदिरों की व्यवस्था से की, जहां आमतौर पर केवल हिंदू ही प्रबंधन में होते हैं.
सरकार का रुख – कानून को मिले संवैधानिक संरक्षण
केंद्र सरकार ने अप्रैल में 1332 पृष्ठों का एक विस्तृत हलफनामा दायर किया और आग्रह किया कि कोर्ट इस कानून पर कोई “सामूहिक रोक (blanket stay)” न लगाए. सरकार का तर्क है कि यह एक वैध कानून है, जिसे संविधानिक प्रक्रिया के तहत संसद ने पारित किया है.
विवाद के बीच पारित हुआ बिल
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर संसद में गहरा मतभेद देखने को मिला, लेकिन अंततः यह विधेयक पारित हो गया. लोकसभा में इस विधेयक के पक्ष में 288 वोट पड़े, जबकि 232 सदस्यों ने इसका विरोध किया. राज्यसभा में भी स्थिति कुछ ऐसी ही रही, जहां 128 सांसदों ने विधेयक का समर्थन किया और 95 ने विरोध. विधेयक को संसद की मंजूरी मिलने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल 2025 को इसे अपनी स्वीकृति प्रदान की, जिसके साथ ही यह कानून बन गया.
शुक्रवार को फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें सीजेआई गवई और जस्टिस मसीह शामिल हैं ने गुरुवार को सुनवाई पूरी कर ली है और फैसला शुक्रवार को सुनाया जाएगा.