
राज्य में बीते पांच साल के दौरान हाथियों के हमले में तीन सौ लोगों की मौत हो चुकी है. अकेले ग्वालपाड़ा जिले में ही बीते चार साल में 92 लोगों की मौत हो चुकी है.पूर्वोत्तर राज्य असम में इंसानों और हाथियों के बीच बढ़ते टकराव को रोकने के लिए असम सरकार ने कई सकारात्मक कदम उठाए हैं. इनमें मृतकों के परिजनों को मुआवजे की राशि चार से बढ़ाकर पांच लाख करने के साथ ही खेती को नुकसान की स्थिति में मुआवजा भी बढ़ाया है. इसके अलावा कई और उपाय प्रस्तावित हैं.
इस पहल के तहत सरकार ने राज्य के सबसे प्रभावित पांच जिलों में गज मित्र योजना शुरू की है. इसके तहत हाथियों को उनके रहने के इलाके में पर्याप्त भोजन मुहैया कराने के साथ ही उनकी आवाजाही की पूर्व सूचना के लिए एआई से लैस कैमरे लगाने और धान की खरीद का समय पहले खिसकाने जैसे कई उपाय शामिल हैं.
राज्य में अकसर नेशनल पार्क से गुजरने वाली हाइवे पर सड़क हादसों और हाथियों के हमले से बचने के लिए विभिन्न इलाकों में लगाई गई बिजली के तारों की बाड़ की वजह से भी कई हाथियों की मौत हो जाती है. अब इन पर अंकुश लगाने के लिए हाथियों की आवाजाही के लिए निर्धारित कॉरिडोर और बिजली के तारो की बाड़ से पहले में सुरक्षा जाली लगाने का भी फैसला किया गया है.
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असम सरकार ने इस साल के बजट में इस टकराव पर अंकुश लगाने के लिए कई नए कदम उठाने की बात कही है. वित्त मंत्री अजंता नियोग का कहना था कि ऐसी मौतों की स्थिति में मौजूदा मुआवजे की रकम चार से बढ़ाकर पांच लाख कर दी गई है. इसके अलावा फसलों के नुकसान के मामले में भी मुआवजे की रकम साढ़े सात हजार प्रति बीघे से बढ़ा कर आठ हजार कर दी गई है. उनका कहना था कि इससे किसानों को कुछ राहत मिलेगी.
हाथियों की मौत के बढ़ते मामले
राज्य में विभिन्न वजहों से हाथियों की मौत के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बीते पांच वर्षों में 384 हाथियों की मौत हो चुकी है. इनमें सबसे ज्यादा 63 मौतें अकेले वर्ष 2023 में हुई थी. बिजली के झटके ही इन मौतों की सबसे बड़ी वजह रही है.
वन और जैविक विविधता के संरक्षण की दिशा में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन आरण्यक के महासचिव विभव तालुकदार डीडब्ल्यू को बताते हैं, "इसके पीछे कई वजहें हैं. लेकिन इसके लिए अकेले इंसानों या हाथियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. हाथी भोजन की तलाश में गांव पर हमले करते हैं तो गांव वाले भी आत्मरक्षा के लिए उन पर हमले करते हैं. कई जगह हाथियों की आवाजाही के रास्ते में हाई वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन से भी हाथियों की मौत होती रहती है."
वो बताते हैं कि सरकार ने एक सींग वाले गैंडों के संरक्षण के प्रति जितनी गंभीरता दिखाई है, वो हाथियों के मामले में नजर नहीं आती. शहरीकरण तेजी से बढ़ने के कारण हाथियों के रहने और खाने की जगह सिकुड़ रही है. यही वजह है कि हाल के वर्षो में यह संघर्ष तेजी से बढ़ा है.
असम एलीफैंट फाउंडेशन के संस्थापक कौशिक बरूआ डीडब्ल्यू को बताते हैं, "इस टकराव को रोकने के लिए एक साथ कई पहलुओं पर काम करना होगा. लेकिन सबसे पहले लोगों में जागरूकता पैदा करना जरूरी है. इसके अलावा किसानों को अगर उनकी फसलों का पर्याप्त मुआवजा मिले तो वो हाथियों पर हमले बंद कर देंगे. इसके साथ ही हाथियों पर हमले के मामले में कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए."
संभावित हमले से आगाह करने के लिए आया 'हाथी ऐप'
आरण्यक ने सरकार के सहयोग से हाल में हाथियों की आवाजाही पर निगरानी और उनके संभावित हमले से लोगों को आगाह करने के लिए 'हाथी ऐप' नामक एक मोबाइल ऐप भी लांच किया है. संगठन अब आम लोगों से हाथियों के हमलों से बचाव के लिए लगाई जाने वाली सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने के प्रति जागरूकता फैला रहा है. कई मामलों में लोग हाथियों के हमले से बचने के लिए उनको बिजली के झटके देते हैं. इससे कई हाथियों की मौत हो जाती है.
राज्य सरकार की बिजली, खेल और युवा कल्याण मंत्री नंदिता गोरलोसा ने इस एप को लांच किया. इस मौके पर नंदिता का कहना था, "जंगल की जमीन पर बढ़ता अवैध कब्जा भी इंसानों और हाथियों के बीच बढ़ते संघर्ष की एक प्रमुख वजह है. अब इस ऐप सरकार की नई पहल और संबंधित पक्षों के सहयोग से इस संघर्ष को कम करने में मदद मिलने की उम्मीद है."
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उनका कहना था कि ग्रामीण इलाकों में बिजली के अवैध कनेक्शन भी हाथियों की मौत की एक बड़ी वजह रहा है. अब राज्य सरकार ने सौर ऊर्जा के इस्तेमाल के बारे में लोगों को जागरूक करने की कवायद शुरू की है. इससे टकराव पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकेगा.
आरण्यक के हाथी अनुसंधान और संरक्षण विभाग के प्रमुख विभूति लहकर डीडब्ल्यू से कहते हैं, "यह ऐप सरकारी विभागों और आम लोगों के बीच एक ब्रिज का काम करेगा. इस ऐप को फोन पर डाउनलोड करने के बाद लोग इसके जरिए वन विभाग को तुरंत हाथियों की आवाजाही के बारे में सूचित कर सकते हैं. इससे ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई की जा सकेगी. इससे जान-माल का नुकसान तो कम होगा ही, हाथियों की मौत पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा."
इस ऐप की लांचिंग के मौके पर मशहूर महिला महावत और पद्मश्री से सम्मानित पार्वती बरूआ का कहना था, "पूर्वोत्तर भारत में रहने वाले हाथियों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. इंसानी बस्तियों के प्रसार के कारण उनके रहने और खाने की जगह सिकुड़ रही है. यही वजह है कि भोजन की तलाश में हाथियों का झुंड ग्रामीण इलाकों में पहुंचता रहता है".
सीखना होगा वन्यजीवों के साथ रहना
उत्तर बंगाल की वन और पर्यावरण कार्यकर्ता अनिंदिता चटर्जी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "हमें वन्यजीवों के साथ रहना और जीना सीखना होगा. संघर्ष से यह समस्या खत्म नहीं होगी. इसकी बजाय संबंधित इलाके के लोगों को सह-अस्तित्व के प्रति जागरूक करना होगा. लेकिन इसके साथ ही सरकार को भी स्थानीय लोगों और संगठनों को साथ लेकर हाथियों की आवाजाही के रास्तों को अवैध कब्जे से मुक्त रखने और बिजली के झटकों से होने वाली मौतों को रोकने की दिशा में सख्त कदम उठाने होंगे." उनका कहना था कि इस संघर्ष पर अंकुश लगा कर सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने में मीडिया की भी अहम भूमिका है.
हाल में असम के डिब्रूगढ़ प्रेस क्लब में आयोजित एक वर्कशाप में भी वन्यजीव कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने इस संघर्ष को कम करने और इंसानों व वन्यजीवों के बीच सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने में मीडिया की भूमिका को अहम बताया था. साथ ही इसके लिए स्थानीय समुदायों को साथ जोड़ने की जरूरत पर भी जोर दिया गया था.