Holi 2019: भंग और तरंग में डूबी बनारसी होली, जहां मिलती थी ‘लंठबाज’ और ‘गर्दभराज’ की उपाधि

भांग की बर्फी, पान और ठंडाई के साथ होली की फाल्गुनी मस्ती और रंगों से सराबोर हुल्लड़ों की टोली की बनारसी होली की बात ही कुछ और है.

होली (Photo Credits: Facebook)

यह सच है कि बनारस (Banaras) में कभी साहित्यकारों की होली (Holi) दुनिया भर में पसंद की जाती थी, लेकिन समय के बदलते मिजाज के साथ उन दिनों की होली अब अतीत बन चुकी हैं, हालांकि होली का पर्व आते ही आज भी होली की वह विशेष छटा नजर आ ही जाती है, जब साहित्यकार रस, छंद और उपमाओं के साथ घरों से निकल पड़ते हैं. कोई गधे पर उल्टे बैठकर होली की टोली निकालता है तो कोई दुल्हा बन भंग के तरंग में होली खेलता नजर आता है.

भांग की बर्फी, पान और ठंडाई के साथ होली की फाल्गुनी मस्ती और रंगों से सराबोर हुल्लड़ों की टोली की बनारसी होली की बात ही कुछ और है. प्रकृति में फाल्गुन के आगमन के साथ ही होली का नशा बनारसी फिजाओं में रंग भर देता है. इस बयार से कोई नहीं बचता, फिर वह चाहे काशी नरेश हों, दसाश्वमेघ घाट के पंडे हों, बाबा विश्वनाथ के पुरोहित हों या टाउनहाल में अनूठे कवि सम्मेलन में शामिल कविगण हों, सभी मस्ती के रंग में अपनी औकात या यूं कहिये सामाजिक प्रतिष्ठा को ताक पर रखकर होली के माहौल में एकसार हो जाते हैं. गली नुक्कड़ों पर विशेष प्रकार के कवि सम्मेलन आयोजित होने लगते हैं.

उपमाओं से सजी ठिठोली

टाउनहाल मैदान पर आयोजित कवि सम्मेलन में आलम यह होता है कि सिर्फ गालियों की कविताएं होती हैं. इन कविताओं में व्यंग्य, कटाक्ष, मस्ती भरी उपमाएं होती हैं. जिन कवियों की रचनाएं पसंद नहीं आती, उस पर भी तालियां बजती हैं, और उन्हें ‘लंठबाज’, ‘गर्दभराज’, ‘चूतियानंदन’ जैसी उपमाओं से अलंकृत किया जाता है.

बेढब बनारसी की यादें

बनारस में एक समय बेढब बनारसी बहुत लोकप्रिय हुआ करते थे. होली पर उनके बिना होली की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी. होली के दिन वह अपने पियरी स्थित निवास स्थान पर बकायदा होलीबाजों को आमंत्रित करते थे. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि वह प्रत्येक आगंतुकों जिसमें ज्यादातर साहित्यकार होते थे को एक चेक वितरित करते थे, जो वास्तव में होली की शुभकामनाओं वाला कार्ड होता था. इस चेक पर आनंद बैंक, शाखा बड़ी पियरी वाराणसी के साथ उनकी तस्वीर छपी होती थी. हर चेक पर अलग-अलग स्लोगन हाथ से लिखे होते थे. इसकी तैयारी एक सप्ताह पूर्व से किया जाता था. इस आतिथ्य सत्कार का सबसे बड़ा हिस्सा होता था भंग मिली ठंडाई और भंगी की गुझिया और बर्फी. इस होली मीटिंग में पहले से लोगों को ताकीद कर दिया जाता था कि अपना सम्मान, मर्यादा, छोटे-बड़े का संस्कार जैसी बातें घर पर रखकर आयें. क्योंकि यहां स्वागत ही मीठी गालियों से की जाती थी. इस होली मीटिंग की सफलता का प्रमाण यही होता था कि गाली खाने वाला पहले ताली बजाता था. यह भी पढ़ें- Holi 2019: आसुरी शक्तियों से रखता है दूर, होली की भस्म अथवा धूल

चकाचक बनारसी की गालियों भरी होली

इसी तरह बनारस में एक और साहित्यकार हुआ करते थे मशहूर कवि चकाचक बनारसी. होली के दिन इनकी तरफ से असी घाट पर हास्य कवि सम्मेलन आयोजित किया जाता था. इस कवि सम्मेलन की खासियत यह होती थी कि भाषा की मर्यादा की खुलकर भद उड़ाई जाती थी, किसी को बख्शा नहीं जाता था. फिर वह चाहे देश का मंत्री हो, कलेक्टर हो या पुलिस अधिकारी. कवि महोदय हाथ में माइक लेते ही खुले सांड की तरह बकने लगता था, जमकर गालियां और तालियां होती थी. जिसकी कविता में ज्यादा गालियां होती थी, उसे विशेष सम्मान परोसा जाता था. बहुत खुश होने पर रंगरसिया उन्हें जूतों की माला पहनाते थे. हंसी मजाक और अबीर गुलाल के बीच ऊंची ठहाकें लगती थी. तो ऐसी मस्ती भरे सम्मेलन में कौन नहीं सरीक होना चाहेगा.

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