Goa: गोवा में अत्यधिक तापमान और जंगल की आग बनी जलवायु संकट का सबब
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पणजी, 14 जनवरी : जीवाश्म ईंधन के बढ़ते उपयोग के कारण ग्लोबल वार्मिंग, मौसम के पैटर्न में बदलाव और लू जैसी समस्याएं कृषि उत्पादन और तटीय राज्य गोवा के लोगों को प्रभावित कर रही है. पर्यावरणविद् लोगों के जीवन और पर्यावरण पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मुकाबला करने के लिए स्वदेशी पेड़ लगाने और अन्य उपाय करने का सुझाव देते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, गोवा में वाहनों की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसके चलते राज्य में बड़े पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन हो रहा है.

आईएएनएस से बात करते हुए, प्रसिद्ध पर्यावरणविद् राजेंद्र केरकर ने कहा, ''जिस तरह से हम जीवाश्म ईंधन का उपयोग कर रहे हैं वह ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रहा है. गोवा में वाहनों की संख्या लगातार बढ़ रही है और इसके चलते कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि हुई है.'' उन्होंने कहा कि स्वदेशी पेड़ लगाकर उत्सर्जन स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है जो बदले में कार्बन सिंक के रूप में कार्य करेगा. केरकर ने कहा, ''लोग इन पौधों पर ध्यान नहीं देते, जो हमें इस समस्या से निजात दिला सकते हैं. हमें ऐसे पेड़ लगाने की जरूरत है जो मृदा संरक्षण में मदद कर सकें और हमें वायु प्रदूषण से भी बचा सकें.'' यह भी पढ़ें : Shaun Marsh Retirement: शॉन मार्श ने क्रिकेट से लिया संन्यास, IPL में पंजाब किंग्स के लिए बनाए जमकर रन

केरकर ने बताया, ''हमें यह अध्ययन करने की आवश्यकता है कि पहले किस प्रकार के पेड़ लगाए जाते थे और उसका पालन करना चाहिए. आजकल हम बहुत ज्यादा बिजली का उपयोग कर रहे हैं जो ज्यादातर कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों से उत्पन्न होती है. इससे समस्या और बढ़ जाती है.'' पिछले साल मार्च में, भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा लू की चेतावनी को गंभीरता से लेते हुए, गोवा शिक्षा विभाग ने दोपहर से पहले दो दिनों के लिए स्कूलों को बंद करने का फैसला किया था. मार्च में गोवा का अधिकतम तापमान सामान्य से 4-6 डिग्री सेल्सियस अधिक था और राजधानी शहर में दिन का तापमान 38.4 डिग्री सेल्सियस था. सरकार ने कहा कि भारी बारिश और तापमान में वृद्धि का राज्य में कृषि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा, हालांकि लू के कारण काजू की फसल के नुकसान की कोई रिपोर्ट नहीं है.

पिछले साल भीषण आग से लगभग 10,560 काजू के पेड़ नष्ट हो गए थे. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि यह लू के कारण भड़की थी या यह वन भूमि को साफ करने के प्रयास में आगजनी का मामला था. बार-बार जंगलों में लगने वाली आग पर आलोचना झेलने के बाद गोवा सरकार ने अब संवेदनशील इलाकों पर ड्रोन से नजर रखने का फैसला किया है.वन मंत्री विश्वजीत राणे ने हाल ही में कहा था कि गोवा में जंगल की आग को रोकने के उपायों के तहत दस ड्रोन खरीदे जाएंगे. राणे ने कहा, ''शुरुआत में दस ड्रोन खरीदे जाएंगे और जरूरत पड़ी तो हम और भी खरीदेंगे. स्थिति से निपटने के लिए लगभग 600 ट्रेकर्स को प्रशिक्षित किया जाएगा और अगर कोई घटना होती है तो स्थानीय लोगों को भी इसमें शामिल किया जाएगा.''

उन्होंने कहा, ''ग्लोबल वार्मिंग, मौसम परिवर्तन और बारिश के पैटर्न में बदलाव जैसे मुद्दे हमें प्रभावित कर रहे हैं. नवंबर और दिसंबर में भी बारिश होती है. हम जंगल की आग को रोकने के लिए उपाय कर रहे हैं और यदि कोई घटना होती है तो स्थानीय लोगों को भी शामिल करेंगे'' उन्होंने कहा कि ड्रोन से वन क्षेत्रों पर नजर रखी जाएगी और आग लगाने वालों के खिलाफ गोवा सरकार कार्रवाई करेगी. राणे ने कहा, ''अगर लोग साफ करने के लिए अपने काजू बागान में आग जलाते हैं, तो भी वन विभाग कार्रवाई करेगा. क्योंकि जंगल की आग के लिए अंततः हमें ही जिम्मेदार ठहराया जाता है.''

आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, 2019 से मार्च 2023 तक जंगल की आग की 200 घटनाओं से लगभग 470.22 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ था. पर्यावरणविद् अभिजीत प्रभुदेसाई ने भी कहा कि जलवायु परिवर्तन का असर कृषि पर पड़ रहा है और इसलिए सरकार को प्राथमिकता के आधार पर बजट में अधिकतम प्रावधान करके इन मुद्दों का समाधान करना चाहिए. उन्होंने कहा, ''यदि भूजल रिचार्ज नहीं हुआ तो हमें पीने योग्य पानी की कमी का भी सामना करना पड़ सकता है. कई मुद्दे हैं. अब बारिश का पैटर्न बदल गया है, हमें नहीं पता कि भविष्य में क्या होगा. फैंसी प्रोजेक्ट्स पर भारी रकम खर्च करने के बजाय, इसे जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने पर खर्च किया जाना चाहिए.''