खतने पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल, कहा-संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन
केंद्र सरकार की ओर से शीर्ष अदालत को बताया गया कि सरकार याचिकाकर्ता की दलील का समर्थन करती है कि यह भारतीय दंड संहिता और बाल यौन अपराध सुरक्षा कानून (पोक्सो एक्ट) के तहत दंडनीय अपराध है.
नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि दाउदी बोहरा समुदाय में महिलाओं का खतना यानी महिला जननांग का छेदन करने की परंपरा संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है, जोकि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा और धर्म, नस्ल, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करने की गारंटी देता है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, "यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है क्योंकि इसमें बच्ची का खतना कर उसको आघात पहुंचाया जाता है."
केंद्र सरकार की ओर से शीर्ष अदालत को बताया गया कि सरकार याचिकाकर्ता की दलील का समर्थन करती है कि यह भारतीय दंड संहिता और बाल यौन अपराध सुरक्षा कानून (पोक्सो एक्ट) के तहत दंडनीय अपराध है.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा, "जब हम महिला अधिकार को लेकर सकारात्मक विचार रखते हैं तो फिर इसे कैसे बदला जा सकता है?"
अदालत ने यह बात खतना पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए दायर एक जनहित याचिका पर कही.
महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल ने अदालत को बताया कि इस परंपरा पर 42 देशों ने रोक लगा दी है, जिनमें 27 अफ्रीकी देश हैं.
उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता बताई है. मामले में मंगलवार को भी सुनवाई जारी रहेगी.