कांग्रेस में गैर-गांधी के अध्यक्ष बनने के बावजूद परिवारवाद बना रहेगा भाजपा के लिए बड़ा मुद्दा

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर तस्वीर अब लगभग साफ होती नजर आ रही है. जिस जिद और एजेंडे को लेकर राहुल गांधी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, उनका वह एजेंडा अब पूरा होता दिखाई दे रहा है.

कांग्रेस (Photo Credits: Wikimedia Commons)

नई दिल्ली, 25 सितंबर : कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर तस्वीर अब लगभग साफ होती नजर आ रही है. जिस जिद और एजेंडे को लेकर राहुल गांधी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, उनका वह एजेंडा अब पूरा होता दिखाई दे रहा है. अगर कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो राजनीति के जादूगर माने जाने वाले अशोक गहलोत चुनाव के जरिए कांग्रेस के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने जा रहे हैं.

लगभग 24 साल बाद गांधी परिवार से इतर कोई व्यक्ति कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने जा रहा है. पिछले 24 वर्षों से कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी या राहुल गांधी के हाथों में ही रही है. ऐसे में कांग्रेस के कई बड़े और दिग्गज नेता यह कह रहे हैं कि एक गैर गांधी परिवार से जुड़े व्यक्ति के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद परिवारवाद का मुद्दा खत्म हो जाएगा. कांग्रेस को यह लग रहा है कि भाजपा जिस परिवारवाद के नाम पर कांग्रेस को घेरती आ रही है वो मुद्दा राहुल गांधी के अध्यक्ष नहीं बनने के फैसले से पूरी तरह खत्म हो जाएगा. लेकिन क्या वाकई ऐसा होने जा रहा है?

परिवारवाद और भाई-भतीजावाद के जिस मुद्दे को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं उठाकर विपक्षी दलों पर निशाना साधा हो, देश के गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत जिस भाजपा के तमाम नेता, केंद्रीय मंत्री, तमाम मुख्यमंत्री और कार्यकर्ता तक परिवारवाद के जिस मुद्दे के सहारे कांग्रेस को घेरते आ रहे हो, गांधी परिवार पर निशाना साधते आ रहे हों, क्या उनके लिए यह मुद्दा खत्म होने जा रहा है? क्या गांधी परिवार से अलग हटकर किसी व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का दांव खेलकर राहुल गांधी ने कोई बड़ा मास्टरस्ट्रोक खेल दिया है. यह भी पढ़ें : Jammu-Kashmir: गुलाम नबी आजाद कल अपनी नई पार्टी का कर सकते हैं ऐलान, कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ बैठक आज

भाजपा की मानें तो ऐसा कुछ नहीं है. भाजपा का यह स्पष्ट तौर पर मानना है कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना कर सोनिया गांधी ने जो दांव सरकार के मोर्चे पर खेला था उसी तरह का राजनीतिक दांव राहुल गांधी कांग्रेस संगठन के मोर्चे पर खेलने जा रहे हैं लेकिन इससे कुछ बदलाव होने वाला नहीं है.

भाजपा तो अशोक गहलोत के बयान के सहारे ही यह साबित करने की कोशिश भी कर रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव तो सिर्फ दिखावा है. भाजपा के मुताबिक परिवारवाद कांग्रेस का चरित्र बन चुका है और इस बीमारी को लेकर भाजपा लगातार देश की जनता को आगाह और सतर्क करने का काम करती रहेगी. शुक्रवार को बिहार के पूर्णिया में रैली को संबोधित करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने 2024 के लोक सभा चुनाव को नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी की लड़ाई बताते हुए रैली में मौजूद जनता से ही पूछ लिया कि 2024 में देश का प्रधानमंत्री किसे बनना चाहिए - मोदी, नीतीश या राहुल बाबा?

हालांकि भाजपा ने राहुल गांधी के इस दांव पर राजनीतिक हमला करने के लिए सबसे पहले अपने राष्ट्रीय प्रवक्ता टॉम वडक्कन को आगे किया जो भाजपा में आने से पहले लंबे समय तक कांग्रेस में रह चुके हैं. वडक्कन ने 21 सितंबर, बुधवार को ही भाजपा मुख्यालय में प्रेस कांफ्रेंस करने के दौरान राहुल गांधी पर बड़ा हमला बोलते हुए साफ तौर पर यह कहा कि कांग्रेस के अध्यक्ष चाहे अशोक गहलोत बने या शशि थरूर, राहुल गांधी के हाथों की कठपुतली ही होंगे और कांग्रेस की कमान राहुल गांधी के हाथ में ही रहेगी.

ऐसे में साफ जाहिर है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर भले ही अशोक गहलोत काम करते नजर आएं लेकिन भाजपा कांग्रेस के हर फैसले पर देश की आम जनता को यह बताती नजर आएगी कि वो फैसला गहलोत ने लिया या गांधी परिवार ने निर्देश दिया. भाजपा के तेवरों से यह साफ है कि उसके लिए गैर गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बावजूद परिवारवाद का मुद्दा समाप्त नहीं होने वाला है और कांग्रेस को, खासतौर से राहुल गांधी को बार-बार और लगातार भाजपा के आरोपों का सामना करना ही पड़ेगा.

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