दिल्ली में आर्टिफिशियल रेन पर क्यों लगी रोक? जानें क्या है सरकार का प्लान और कैसे होती है कृत्रिम बारिश
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दिल्ली की बिगड़ती हवा को साफ करने के लिए सरकार ने कृत्रिम बारिश यानी आर्टिफिशियल रेन का प्लान तैयार किया था, लेकिन अभी के लिए इसे टाल दिया गया है. वजह है आसमान में उपयुक्त बादलों की कमी. राजधानी में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है, ऐसे में यह प्रयोग उम्मीद की एक बड़ी किरण माना जा रहा था. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा (Manjinder Singh Sirsa) ने बताया कि दिल्ली में फिलहाल ऐसे बादल नहीं हैं जिन पर क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया जा सके. जैसे ही मौसम अनुकूल होगा और बादल बनेंगे, तुरंत यह ट्रायल किया जाएगा. इसके लिए सभी तैयारियां पहले से ही पूरी कर ली गई हैं, अनुमतियों से लेकर फ्लाइट अरेंजमेंट तक.

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क्यों रुका है आर्टिफिशियल रेन का ट्रायल

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने कहा है कि 25 अक्टूबर तक इस प्रयोग के लिए कोई मौसम विंडो नहीं दिख रही. पहले उम्मीद थी कि यह ट्रायल दिवाली के बाद होगा, लेकिन AQI में तेजी से बढ़ोतरी के कारण अब इसे कुछ समय के लिए रोक दिया गया है.

कैसे होगा ट्रायल?

क्लाउड सीडिंग ट्रायल के लिए Cessna 206H विमान को मेरठ में तैयार रखा गया है. पायलट लाइसेंस प्राप्त हैं और सभी उपकरण इंस्टॉल कर दिए गए हैं. बस IMD से हरी झंडी मिलते ही यह ऑपरेशन शुरू हो जाएगा.

सरकार ने उत्तर-पश्चिम दिल्ली को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चुना है और यहां पहले ही चार ट्रायल फ्लाइट की जा चुकी हैं. मंत्री सिरसा के मुताबिक, “पिछली सरकारों ने सिर्फ बातें कीं, हमने 7 महीने में मंजूरी से लेकर पायलट की तैयारी तक का काम पूरा किया है.”

क्लाउड सीडिंग क्या होता है?

क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसके ज़रिए बादलों में रसायन मिलाकर कृत्रिम बारिश कराई जाती है. इसमें मुख्य रूप से सिल्वर आयोडाइड (AgI) जैसे पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है, जो बादलों में बर्फ के क्रिस्टल बनने में मदद करता है.

क्लाउड सीडिंग दो तरह की होती है:

Hygroscopic Seeding: इसमें बादलों के बेस पर नमक के कण छोड़े जाते हैं जिससे बूंदें आपस में मिलकर बड़ी बूंदें बनाती हैं और बारिश होती है.

Glaciogenic Seeding: इसमें सिल्वर आयोडाइड या ड्राई आइस जैसे पदार्थों का उपयोग कर ठंडे बादलों में बर्फ के कण बनाए जाते हैं जिससे बारिश होती है.

बारिश से कितना सुधरेगा दिल्ली का AQI?

विशेषज्ञों का कहना है कि बारिश होने से AQI में 50 से 80 पॉइंट तक सुधार हो सकता है. यानी अगर हवा ‘बहुत खराब’ है तो वह ‘खराब’ स्तर पर आ सकती है, और अगर ‘खराब’ है तो ‘मॉडरेट’ हो सकती है.

आईआईटी कानपुर की मदद से होगा ऑपरेशन

इस पूरे प्रोजेक्ट को Indian Institute of Technology Kanpur के साथ मिलकर किया जा रहा है. IIT के वैज्ञानिकों ने Cessna विमान को मॉडिफाई किया है ताकि इसे क्लाउड सीडिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सके.

निम्बोस्ट्रेटस बादल (Nimbostratus Clouds) को इस प्रयोग के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है. ये बादल जमीन से 500 मीटर से 6000 मीटर की ऊंचाई पर होते हैं और इनमें कम से कम 50% नमी होना जरूरी है. फिलहाल दिल्ली में न तो पर्याप्त बादल हैं और न ही नमी, यही वजह है कि प्रयोग में देरी हो रही है.