नई दिल्ली: चीन से सटी सीमा पर तनाव के बीच एक अहम खबर आ रही है. चीनी कंपनी शंघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड (एसटीईसी) दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस (रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम) परियोजना के भूमिगत खंड के निर्माण के लिए सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी बन गई है. हालांकि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सहयोगी स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) ने मोदी सरकार से अनुरोध किया है कि यह प्रोजेक्ट चीनी कंपनी की नहीं दी जानी चाहिये और बोली रद्द करने की मांग की है.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए एक ओर मोदी सरकार जोर दे रही है, तो वहीं दूसरी ओर एक हजार करोड़ रुपये से अधिक की परियोजना चीनी कंपनी के पास जाती दिख रही है. दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस में चीनी फर्म के आने से राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है. बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने खुद एसटीईसी के बजाय किसी भारतीय कंपनी को यह प्रोजेक्ट देकर बढ़ावा देने का अनुरोध किया है. वही बदनाम गलवान घाटी जहां 1962 में भी चीन दिया था भारत को धोखा, फिर दोहराई कायराना हरकत
एसजेएम के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्वनी महाजन (Ashwani Mahajan) ने कहा कि उन्होंने केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) से चीनी कंपनी की बोली कैंसिल करने का का आग्रह किया है. उन्होंने कहा कि घरेलू कंपनियों को महत्वपूर्ण परियोजनाएं मिलनी चाहिए. भारत-चीन हिंसक झड़प: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की स्थिति की समीक्षा , CDS विपिन रावत सहित तीनों सेनाओं के प्रमुखों के साथ की अहम बैठक
रिपोर्ट्स की मानें तो, शंघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड (STEC) न्यू अशोक नगर (New Ashok Nagar) और साहिबाबाद (Sahibabad) के बीच बनने वाली 5.6 किलोमीटर भूमिगत कॉरिडोर के निर्माण के लिए सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी बन गई है. एसटीईसी ने परियोजना को 1,126 करोड़ रुपये, जबकि लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड (L&T) ने 1170 करोड़ रुपये, गुलेरमक (Gulermak) ने 1,325.92 करोड़ रुपये, टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (Tata Projects Limited) ने 1346.29 करोड़ रुपये और एफ़कन्स इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (Afcons Infrastructure Ltd) ने 1400.40 करोड़ रुपये में पूरा करने की बोली लगाई है.