सेबी के पूर्व चेयरमैन ने सहारा समूह के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का श्रेय प्रणव मुखर्जी- पी. चिदंबरम और अरुण जेटली को दिया
पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के पूर्व चेयरमैन यू.के.सिन्हा ने पूर्व वित्त मंत्रियों प्रणव मुखर्जी, पी. चिदंबरम और दिवंगत अरुण जेटली की सराहना की है
नई दिल्ली: पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के पूर्व चेयरमैन यू.के.सिन्हा ने पूर्व वित्त मंत्रियों प्रणव मुखर्जी, पी. चिदंबरम और दिवंगत अरुण जेटली की सराहना की है। उन्होंने कहा कि निहित स्वार्थी तत्वों के बार बार प्रयासों के बावजूद तीनों पूर्व वित्त मंत्रियों ने सहारा समूह के खिलाफ सेबी की कठोर कार्रवाई में किसी तरह का दखल नहीं दिया और नियामक को अपने तरीके से काम करने दिया।सिन्हा ने सेबी की विविध भूमिका में संतुलन रखने के लिये अच्छी सलाह देने के लिये पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भी तारीफ की। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में उन्होंने कहा कि वह (मोदी) बेहद जिज्ञासू नेता हैं और अपनी इस बात पर हमेशा दृढ रहते हैं कि किसी भी गलत करने वाले चाहे वह बड़ा आदमी हो या छोटा, बख्शा नहीं जाना चाहिये.
सेबी ने 2011 में सहारा रियल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग इंवेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड को वैकल्पिक पूर्ण परिवर्तनीय बांड (ओएफसीडी) के जरिये जुटाये गये धन को निवेशकों को लौटाने का आदेश दिया था. इन दोनों कंपनियों ने खुद माना था कि उन्होंने तीन करोड़ से अधिक निवेशकों से 24 हजार करोड़ रुपये से अधिक राशि जुटायी।यह मामला लंबे समय तक उच्चतम न्यायालय में चला. अंतत: 31 अगस्त 2012 को उच्चतम न्यायालय ने सेबी के फैसले को बरकरार रखते हुए दोनों कंपनियों को 15 प्रतिशत ब्याज के साथ निवेशकों का पैसा लौटाने को कहा. सिन्हा ने अपनी नयी पुस्तक ‘गोइंग पब्लिक: माय टाइम ऐट सेबी’ में कहा है कि सहारा मामले ने मीडिया में खूब चर्चा बटोरी थी और विभिन्न पार्टियों के नेता इसमें दिलचस्पी ले रहे थे. यह भी पढ़े: मंदी को मात देने के लिए मोदी सरकार लेगी सिन्हा समिति की रिपोर्ट का सहारा
.सहारा के पक्ष में विभिन्न मौकों पर देश के शीर्ष वकीलों ने पैरवी की. वित्तीय मामलों की संसद की स्थायी समिति की बैठकों और बाहर भी इस मामले को लेकर सवाल खड़े किये गये। ये सवाल एक कारोबारी समूह को निशाना बनाये जाने को लेकर उठाये गये।सिन्हा के कार्यकाल के दौरान सहारा वाला मामला महत्वपूर्ण पड़ाव पर था. उन्होंने कहा कि सेबी के अधिकारियों को डराने-धमकाने के साथ ही संसद में विशेषाधिकार हनन का मामला उठाने जैसी धमकी देने के जरिये सहारा मामले को प्रभावित करने की कोशिशें की गयी थीं.
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि पूरा श्रेय तीन लगातार वित्त मंत्रियों प्रणव मुखर्जी, पी. चिदंबरम और अरुण जेटली को जाता है, जो कि मजबूती से खड़े रहे और मामले में हस्तक्षेप नहीं किया. ’’सिन्हा ने कहा कि सेबी अधिकारियों का मनोबल और कानून का शासन बनाये रखने के लिये वित्त मंत्रालय के मंत्रियों और अधिकारियों को भी श्रेय जाता है।सिन्हा ने पुस्तक में दो प्रधानमंत्रियों के साथ अपनी मुलाकातों का भी जिक्र किया है. उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह ने सेबी की विविध भूमिकाओं में संतुलन साधने तथा किसी भी समय सरकार के मुख्य फोकस वाले के क्षेत्रों के बारे में अच्छे परामर्श दिये।सिन्हा ने मोदी के बारे में कहा कि वे हमेशा जानने के इच्छुक (जिज्ञासू) रहते हैं और चाहते हैं कि बाजार निगरानी व्यवस्था मजबूत बने.
उन्होंने कहा, ‘‘मोदी की सबसे बड़ी विशेषता इस मान्यता पर टिके रहना है कि गलत करने वाला चाहे कितना ही बड़ा आदमी हो, उसे छोड़ा नहीं जाना चाहिये. ’’उच्चतम न्यायालय के बारे में सिन्हा ने कहा कि शीर्ष अदालत ने कई असाधारण कदम उठाये। सभी अन्य अदालतों और न्यायाधिकरणों को इस मामले को सुनने से दूर रहने को कहा। सेबी की इस काम में प्रगति पर निगरानी रखने के लिये उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत न्यायधीश को नियुक्त किया। सहारा से मिलने वाले धन को नियामक के पास रखने का निर्देश दिया.
सच्चाई यह है कि उच्चतम न्यायालय के मामले में दृढ़ता के साथ गौर करने से मूल राशि का 60 प्रतिशत धन प्राप्त हो पाया. ’’इस मामले में हालांकि, सहारा समूह यह कहता रहा है कि उसने निवेशकों से जुटाई गई पूरी राशि लौटा दी है। ऐसे में उसने बॉड धारकों को लौटाने के लिये सेबी के पास उसने जो भी धन जमा कराया है वह निवेशकों को दुगुनी राशि का भुगतान होगा.ताजा जानकारी के मुताबिक सेबी ने सहारा से प्राप्त 20,000 करोड़ रुपये की राशि और इस पर मिले ब्याज से वास्तविक निवेशकों को अब तक 100 करोड़ रुपये की राशि वितरित कर दी है.