बुलडोजर एक्शन अवैध! बिना कानूनी अनुमति के संपत्ति तोड़ना गलत, अपने आखिरी फैसले में बोले CJI डी वाई चंद्रचूड़

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने अंतिम फैसले में 'बुलडोजर न्याय' की कड़ी आलोचना करते हुए इसे कानून के शासन के खिलाफ बताया. उन्होंने कहा कि बिना कानूनी प्रक्रिया के संपत्ति ध्वस्त करना अस्वीकार्य है और ऐसा करने पर नागरिकों के संवैधानिक संपत्ति अधिकारों का हनन होता है.

सुप्रीम कोर्ट में अपने अंतिम फैसले के रूप में भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने 'बुलडोजर जस्टिस' की कठोर निंदा की. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि कानून के शासन के तहत बुलडोजर से न्याय दिलाना बिल्कुल अस्वीकार्य है. यह निर्णय उन मामलों में एक स्पष्ट दिशा प्रदान करता है, जहां बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए लोगों की संपत्ति को ध्वस्त किया जा रहा है.

बुलडोजर न्याय: एक संवैधानिक खतरा

सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि "बुलडोजर के माध्यम से न्याय पाना किसी भी सभ्य न्यायिक प्रणाली के लिए उपयुक्त नहीं है." उन्होंने इसे एक गंभीर खतरे के रूप में देखते हुए कहा कि यदि राज्य या अधिकारी किसी भी कारण से बिना कानूनी आधार के संपत्तियों को चुनिंदा रूप से ध्वस्त करने लगें तो नागरिकों के अधिकारों का हनन हो सकता है. सीजेआई के अनुसार, यदि इस प्रकार की कार्रवाई की अनुमति दी जाती है, तो संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता समाप्त हो जाएगी, जिससे संविधान का अनुच्छेद 300ए का महत्व शेष नहीं रहेगा.

राज्य को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए

मुख्य न्यायाधीश ने राज्य सरकारों को निर्देशित किया कि किसी भी संपत्ति के खिलाफ कार्रवाई से पहले कानून की उचित प्रक्रिया का पालन आवश्यक है. अवैध निर्माण को हटाने का उद्देश्य यदि सही भी हो, तो भी इसे निष्पक्षता और कानूनी नियमों का पालन करते हुए करना चाहिए. उन्होंने कहा कि किसी भी नागरिक के लिए घर एक सबसे सुरक्षित स्थान होता है, और इसे नष्ट करने की धमकी देकर किसी भी व्यक्ति की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता.

अधिकारियों के लिए सख्त कार्रवाई का प्रस्ताव

अपने फैसले में सीजेआई ने उन अधिकारियों के खिलाफ भी कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की बात की, जो बिना उचित अनुमति के गैरकानूनी तरीके से किसी की संपत्ति ध्वस्त करने की अनुमति देते हैं. ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कानूनी प्रतिबंध लगाने की बात कही, जिससे सार्वजनिक जवाबदेही तय हो सके.

UP सरकार को 25 लाख का मुआवजा देने का निर्देश

सीजेआई के अंतिम फैसले में एक प्रमुख मामला 2019 का था, जिसमें उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में एक सड़क परियोजना के लिए एक नागरिक का घर ध्वस्त कर दिया गया था. इसे 'क्रूर' प्रक्रिया मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि वह पीड़ित को 25 लाख रुपये का मुआवजा दे. यह फैसला दर्शाता है कि न्यायिक प्रणाली को किसी भी प्रकार के असंवैधानिक कार्य के विरुद्ध सख्ती से खड़ा होना चाहिए.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल: एक संक्षिप्त परिचय

आज, 10 नवंबर, को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल समाप्त हो गया. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई अहम मामलों पर ध्यान केंद्रित किया, जिनमें पब्लिक लिबर्टी, संवैधानिक व्याख्याएं, और मनी लॉन्ड्रिंग शामिल हैं. नवंबर 2022 से नवंबर 2024 के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने 1,11,498 नए मामलों की सुनवाई की और 1,07,403 मामलों का निपटारा किया.

मुख्य न्यायाधीश के इस फैसले ने न केवल बुलडोजर न्याय के खिलाफ एक मजबूत संदेश दिया है, बल्कि यह सुनिश्चित करने का भी प्रयास किया है कि नागरिकों के अधिकारों का उचित सम्मान और सुरक्षा हो.

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