Birthday Special: चन्द्रशेखर आजाद, एक ऐसा क्रांतिकारी जिसे कभी जिंदा नहीं पकड़ पाई थी ब्रिटिश हुकूमत

1921 में असहयोग आन्दोलन के दौरान आजादी की लड़ाई में आजाद भी कूद पड़े थे. उन्होंने काशी के अपने विद्यालय में भी इसकी मशाल जलाई इसी दौरान अन्य लोगों के साथ पुलिस ने आजाद को भी हिरासत में ले लिया. जिसके बाद 15 बेंतो की सख्त सजा सुनाई गई. इस दौरान आजाद जरा भी डरे नहीं हर बेंत लगने पर वंदे मातरम चिल्लाते थे.

शहीद चंद्रशेखर आजाद ( फाइल फोटो )

'दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे।

आजाद ही रहे हैं, आजाद ही मरेंगे।।

चन्द्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad ) को कौन नहीं जानता, वे किसी परिचय के मोहताज नहीं है. मातृभूमि की आजादी के लिये खुद के प्राणों को न्योछावर कर दिया यही बलिदान आगे चल कर आजादी का सुबह बना. चंद्रशेखर आजाद की वीरता की गाथा देशवासियों के लिए प्रेरणा का एक स्रोत है. चंद्रशेखर ने अपनी जिंदगी में कसम खाई हुई थी कि वह कभी भी जिंदा पुलिस के हाथ नहीं लगेंगे. उन्होंने जो कहा तथा उसपर वे कायम भी रहे. यही कारण हैं जब आजाद को इलाहाबाद में पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया तो उन्होंने अंग्रेजो को मुंहतोड़ जवाब दिया लेकिन जब उन्हें लगा कि अंग्रेज उन्हें पकड़ लेंगे तो खुद ही को गोली मार दी थी.

महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई को मध्यप्रदेश के भाबरा गांव में एक सनातनधर्मी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता पं. सीताराम तिवारी प्रकाण्ड पंडित थे, मगर स्वभाव से निहायत दयालु प्रवृत्ति के थे. मां जगरानी देवी गृहिणी थीं. चंद्रशेखर का बालपन ज्यादातर आदिवासी बहुल इलाके में बीता. भील बच्चों के साथ वह काफी छोटी उम्र में तीर-धनुष के निशाने में पारंगत हो गये थे. बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन शुरु से देश की आज़ादी के लिए कुछ करने को मचलता था. लेकिन छोटा होने के कारण वह अकसर अपने जोश को दबा देते थे.

1921 में असहयोग आन्दोलन के दौरान आजादी की लड़ाई में आजाद भी कूद पड़े थे. उन्होंने काशी के अपने विद्यालय में भी इसकी मशाल जलाई इसी दौरान अन्य लोगों के साथ पुलिस ने आजाद को भी हिरासत में ले लिया. जिसके बाद 15 बेंतो की सख्त सजा सुनाई गई. इस दौरान आजाद जरा भी डरे नहीं हर बेंत लगने पर वंदे मातरम चिल्लाते थे. 1922 में गांधीजी ने चंद्रशेखर को जब असहयोग आन्दोलन से बाहर कर दिया था. अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने युवा चंद्रशेखर को झकझोर के रख दिया था. फिर प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल "हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ" के सदस्य बन गये.

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आजाद ने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड को अंजाम दिया तथा गिरफ़्तारी से बचने के लिए फरार हो गये थे. शेखर आजाद ने 1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफिर एसपी सॉन्डर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया था. चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में मित्र और अपने एक अन्य साथियों के साथ योजना बना रहे थे. तभी उन्हें अंग्रेजो ने घेर लिया. अंग्रेजों के हाथ कभी भी जीवित गिरफ्तार नहीं होने की अपनी प्रतिज्ञा पर कायम रहते हुए अंतिम कारतूस से स्वयं को गोली मार ली.

आज हम भले आजाद भारत में सांस ले रहे हैं लेकीन अगर ऐसे भारत माता के वीर सपूत नहीं होते तो शायद आजादी संभव नहीं होती.

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