
बिहार में अपराध और दंबगई के मामले इन दिनों सुर्खियो में है. इलाज के अभाव में बलात्कार पीड़ित दलित बच्ची की मौत के बाद अब मामला एक बलात्कार पीड़ित के मददगार की पिटाई का है, जिसकी जान बड़ी मुश्किल से बची है.गया में बीते दिनों बलात्कार के आरोपियों ने उस ग्रामीण चिकित्सक को एक पेड़ से बांध कर पीटा, जो पीड़िता के घर कथित तौर पर उसकी मां का इलाज करने पहुंचा था. उसे इतना पीटा गया कि वह लहुलूहान हो गया. गांव में कोई उसकी मदद करने नहीं आया. एक बच्ची ने डॉक्टर जीतेंद्र यादव को पिटते देखा तो भाग कर मुख्य सड़क पर पहुंची और संयोगवश वहां से गुजर रही की पुलिस की गाड़ी को रोक कर इसकी जानकारी दी.
पुलिस को देख बदमाश भाग गए. पुलिसकर्मियों ने उस डाक्टर को मुक्त कराया और फिर पास की क्लिनिक में ले जा कर इलाज कराया. बाद में उसे मेडिकल कॉलेज भेज दिया गया. अब तक मिली जानकारी के मुताबिक बताया गया कि डॉक्टर जीतेंद्र जिस महिला के घर आया था, उस घर की एक बच्ची के साथ साल 2021 में उस गांव के ही तीन-चार लोगों ने बलात्कार किया था. मामला अदालत में है.
पीड़िता की मां का कहना है कि बलात्कार के आरोपी लगातार मुकदमा वापस लेने का दबाव बना रहे थे. इससे पहले भी मारपीट की थी. कुछ लोगों का कहना है कि आरोपियों को शक था कि डॉ जीतेंद्र मुकदमा लड़ने में पीड़िता की मां की मदद कर रहे हैं. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. उसके बाद इस मामले में एक जांच टीम गठित की गई है.
डॉक्टर को पीटे जाने के पहले ही मुजफ्फरपुर जिले में ही रेप के दो मामले को लेकर बिहार की सियासत गर्म थी. विपक्षी दल लगातार एनडीए सरकार पर निशाना साध रहे थे. दलित समुदाय की एक दस साल की बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या की कोशिश की गई थी. इस बच्ची की छह दिनों बाद पटना मेडिकल कालेज अस्पताल में मौत हो गई. इसके इलाज मेें लापरवाही की बात को लेकर सरकार की खूब किरकिरी भी हुई. बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर डॉक्टर की पिटाई का पोस्ट डालने के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया.
अपराधी की ओर से केस वापस लेने का दबाव
सामाजिक कार्यकर्ता मनिता श्रीवास्तव कहती हैं, "बलात्कार करने वाले या उनके सहयोगियों ने जो अपराध किया वह तो है ही, लेकिन उस गांव में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, जो उन बदमाशों को रोक सकता था." पूरा गांव मूकदर्शक बना रहा.
कई बार पुलिस जब किसी को पकड़ने जाती है या फिर कथित तौर पर मनमानी करती है तब तो यही लोग एकजुट होकर उन पर हमला करने या हिरासत में लिए गए व्यक्ति को छुड़ाने में लग जाते हैं.पुलिस ने इस मामले में दस नामजद लोगों में से तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. जीतेंद्र के बयान पर इस मामले में तीन महिलाएं भी नामजद की गई है.
आखिर क्यों पुलिस को टारगेट कर रही है बिहार की पब्लिक
दंबगई का यह पहला मामला नहीं है. बीते साल अगस्त में भी मुजफ्फरपुर कोर्ट परिसर में एक बलात्कार पीड़िता को ही मुकदमा वापस नहीं लेने पर सरेआम पीटा गया था. सड़क पर गिरी पीड़िता बचाने की गुहार लगाती रही, लेकिन पूरे परिसर में कोई उसे बचाने नहीं आया. उसके परिजन जब बचाने पहुंचे तो उनके साथ भी मारपीट की गई. पुलिस के आने के बाद ही हमलावर भागे.
इस मामले में आरोपी युवक ने शादी का झांसा देकर लड़की का यौन शोषण किया था और शादी का दबाव बनाने पर वह मुकर गया था. इस मामले में जमानत याचिका खारिज होने पर उसके घरवाले और दूसरे आरोपी केस उठाने का दबाव बना रहे थे.
आरोप कुछ और वास्तविकता कुछ
नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी कहते हैं, "कई बार मामला जब सामने आता है तो आरोप बड़ा ही आश्चर्यजनक और गंभीर होता है, किंतु जांच के दौरान या बाद में स्थिति बिल्कुल उलट जाती है. किंतु तब तक सोशल मीडिया के इस दौर में सरकार और पुलिस-प्रशासन की भद्द पिट चुकी होती है. लोग उसे ही नजीर के तौर पर ले लेते हैं. इसलिए इन मामलों में धैर्य रखने की जरूरत है."
एक दिन पहले ही मुजफ्फरपुर में एक महिला ने पहले तो घर में घुसकर बलात्कार की कोशिश करने और विफल रहने पर तेजाब फेंकने का आरोप लगाया, लेकिन जब थाने में गंभीरता से पूछताछ की गई तो उसने बयान बदल दिया. बलात्कार की कोशिश का मामला पारिवारिक विवाद और लूटपाट में बदल गया.
मनिता कहती हैं, "गलत आरोप लगाने को किसी भी हाल में उचित नहीं ठहराया जा सकता. ऐसा करने वालों को भी दंडित किया जाना चाहिए. इसका खामियाजा भी आमजन को ही भुगतना पड़ता है. आज क्या स्थिति है, जब लोग पुलिस के पास लड़का या लड़की के लापता होने की शिकायत लेकर जाते हैं तो पुलिस इस प्रथमदृष्टया प्रेम प्रसंग का ही मामला मानती है. ऐसी धारणा आखिर कैसे और क्यों बनी."
राजनीति में भी दबंगई
बिहार की राजनीति में भी दंबगई के मामले सामने आते रहते हैं. हाल में ही मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट प्रखंड मुख्यालय स्थित अंचल कार्यालय में आरजेडी विधायक निरंजन राय के भाई रंजीत राय ने जमकर हंगामा किया. बताया गया कि वे अपने किसी व्यक्ति का काम करने का दबाव डाटा ऑपरेटर अमित कुमार पर बना रहे थे और हंगामे के बाद भी जब सफल नहीं हुए तो डाटा इंट्री ऑपरेटर का लैपटॉप और डोंगल लेकर भाग निकले.
एसएसपी सुशील कुमार का कहना था, "अंचल कार्यालय में विवाद हुआ था. जांच के बाद आवश्यक कार्रवाई की जाएगी." इससे पहले अप्रैल में भोजपुर जिले के जेडीयू नेता प्रिंस बजरंगी का एक वीडियो वायरल हुआ. इस वीडियो में वे आरा सदर अस्पताल में एक गार्ड के साथ मारपीट करते और उसे पिस्टल दिखाते नजर आ रहे थे. कहा गया कि वे किसी मित्र का इलाज कराने सदर अस्पताल पहुंचे थे, जहां अस्पताल में तैनात गार्ड रामस्वरुप से उनका विवाद हो गया था. रामस्वरुप ने स्थानीय थाने में एफआइआर भी कराई थी.
राजनीतिक समीक्षक एके चौधरी कहते हैं, "ऐसे मामले समाज में नजीर बन जाते हैं और लोगों का मनोबल बढ़ाते हैं. विधायक के भाई का लैपटॉप लेकर भागने को ही देखिए. अगर किसी आम आदमी ने ऐसा किया होता तो वह सरकारी संपत्ति छीनने के आरोप में तत्काल पकड़ लिया गया होता और शायद जेल भी भेज दिया जाता."