भीमा कोरेगांव हिंसा: सुप्रीम कोर्ट ने एक्टिविस्‍ट्स की नजरबंदी 4 सप्‍ताह और बढ़ाई
सुप्रीम कोर्ट (Photo Credits: PTI)

नई दिल्ली: भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपना फैसला सुनाया.  कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में पांच एक्टिविस्ट्स की गिरफ्तारी में दखल देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट के फैसले के बाद एक्टिविस्‍ट्स की नजरबंदी 4 सप्‍ताह और रहेगी. शीर्ष अदालत ने मामले की जांच एसआईटी से कराने की अपील भी ठुकरा दी है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने 20 सितंबर को दोनों पक्षों के वकीलों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था.

इस साल जनवरी में हुई भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुणे पुलिस ने बीते 28 अगस्त को देशभर के कई शहरों में एक साथ छापेमारी कर हैदराबाद से सामाजिक कार्यकर्ता वरवरा राव, फरीदाबाद से सुधा भारद्वाज और दिल्ली से गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया था. वहीं ठाणे से अरुण फरेरा और गोवा से बर्नन गोनसालविस को गिरफ्तार किया गया. इस दौरान उनके घर से लैपटॉप, पेन ड्राइव और कई कागजात भी जब्त किए गए.

मामले में पुलिस ने इन सभी 5 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया था. जिसके बाद उनकी तत्काल रिहाई और उनकी गिरफ्तारी मामले में शुक्रवार को फैसला सुनाया गया.  20 सितंबर को दोनों पक्षों के वकीलों की दलील सुनने के बाद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने फैसला अपने पास सुरक्षित रख लिया था. बता दें कि 29 अगस्त कार्यकर्ता वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा से अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं. यह भी पढ़ें- भीमा कोरेगांव मामले में SC का आदेश: घर में ही नजरबंद रहेंगे मानवाधिकार कार्यकर्ता

सुप्रीम कोर्ट ने 19 सितंबर को कहा था कि वह इस मामले पर पैनी नजर बनाए रखेगा क्योंकि सिर्फ अनुमान के आधार पर आजादी की बलि नहीं चढ़ाई जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर साक्ष्य 'मनगढ़ंत' पाए गए तो कोर्ट इस संदर्भ में एसआईटी जांच का आदेश दे सकता है. यह भी पढ़ें- जिन वाम विचारकों के खिलाफ पुलिस ने कार्रवाई वो UPA सरकार की नक्सल समर्थकों की सूचि में भी थे