Bhagat Singh Birth Anniversary: अंग्रेजों के मन में खौफ भरने वाले शहीद-ए-आज़म भगत सिंह से जुड़ी इन खास बातों को भी जान लीजिए

अदालत ने 7 अक्टूबर 1930 को दोषी करार देते हुए फैसला सुनाया था कि भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी और बटुकेश्वर दत्त को उम्रकैद की सजा दिया था.

Bhagat Singh Birth Anniversary: अंग्रेजों के मन में खौफ भरने वाले शहीद-ए-आज़म भगत सिंह से जुड़ी इन खास बातों को भी जान लीजिए
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह

'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा' भारत माता का एक ऐसा वीर पुत्र जिसका नाम मात्र सुनकर रोम-रोम पुलकित हो उठता है. जिसे पूरी दुनिया भगत सिंह के नाम से जानती है. उनकी तस्वीर दीवारों पर कम लोगों के दिलों में बसी है. उनकी शाहदत आज भी लोगों को प्रेरित करती है. भगत सिंह की देशभक्ति ने अंग्रेजी हुकूमत को अपने अदम्य साहस से झकझोर के रख दिया था. आज शहीदे आजम भगत सिंह का जन्मदिन है. जानें उनके जीवन से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें..

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर के बंगा गांव में हुआ था. भगत सिंह का जन्म पाकिस्तान के एक सिख परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम किशन सिंह था. जब भगत सिंह ने जन्म लिया तो उनके पिता जेल में बंद थे.

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बंदूकों की खेती

भगत सिंह के अंदर देशभक्ति की भावना बचपन से ही थी. जब उनकी उम्र 4 साल थी तब अपने खेत में बैठकर मिट्टी और कंकण को हाथ से छू रहे थे. तब उनके पिता सरदार किशन सिंह क्या कर रहे हो. तब भगत सिंह ने जवाब में कहा ''बंदूकें बो रहा हूं, अंग्रेजों को देश से भगाना है'

जलियांवाला बाग के बाद चुनी क्रान्ति की राह

जनरल डायर ने 1919 में जलियांवाला कांड में कई मासूमों की जान ले ली. इस घटना ने भगत सिंह के दिल में अंग्रेजों के लिए बहुत गुस्सा भर दिया था. जिसके बाद वो अपने देश को अंग्रेजों से आजाद कराना चाहते थे. माना जाता है कि इस कांड के बाद भगत सिंह को जब जलियांवाला बाग में गए थे और मिट्टी को माथे से लगाकर नमन किया था. भगत सिंह ने अपना कॉलेज छोड़कर क्रांतिकारियों का साथ चुना और फिर अंग्रेजों के लिए सरदर्द बन गए.

सांडर्स-वध

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय अंग्रेजी सरकार के दमनकारी नीतियों के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे. उनके इस प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजो ने प्रदर्शनकारियों पर लाठियां चलाई. जिसके बाद लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गए और अंतत: 17 नवंबर को उनका निधन हो गया. जिसके बाद सांडर्स का वध लाहौर में 17 दिसंबर 1928 को गोली मारकर किया गया था. जो बाद में ‘लाहौर षडयंत्र कांड’ के नाम से मशहूर हुआ. इस मामले में भगतसिंह और दो अन्य क्रांतिकारियों शिवराम हरि राजगुरु और सुखदेव थापर को दोषी करार देते हुए मृत्युदंड सुनाया गया था.

सेंट्रल असेम्बली पर फेंके बम

ब्रिटिश सरकार की नीव हिलाने के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल असेम्बली में 8 अप्रैल, 1929 को बम फेंका था. लेकिन उन्होंने यह बम किसी को मारने के लिए नहीं फेंका था. इसीलिए बम भी असेम्बली में खाली जगह पर फेंका था. इस घटना के बाद अंग्रेज कांप उठे थे. इस घटना के बाद दोनों पर सेंट्रल असेम्बली में बम फेकने को लेकर केस चला और सुखदेव और राजगुरू को भी गिरफ्तार किया गया.

अदालत ने 7 अक्टूबर 1930 को दोषी करार देते हुए फैसला सुनाया था कि भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी और बटुकेश्वर दत्त को उम्रकैद की सजा दी.

लाहौर की सेंट्रल जेल में भगत सिंह को दी गई थी फांसी

भारत माता के इस वीर पुत्र को 23 मार्च 1931 को फांसी की सजा दी गई. भगत सिंह देश के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए. अंग्रेजों ने भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी तो दे दी लेकिन उन्हें डर था कि कहीं कोई आंदोलन ना भड़क जाए. 24 तारीख की बजाय उन्हें 23 मार्च को फांसी दे दी गई. जब भगत सिंह से पूछा गया कि आप आखिरी शब्द क्या कहना चाहते हो तो उन्होंने कहा था, ''सिर्फ़ दो संदेश है साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और 'इंक़लाब ज़िदाबाद.''


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