अयोध्या विवादः मध्यस्थता पैनल ने पेश किया नया समझौता- केंद्र करें जमीन का अधिग्रहण, ASI के मस्जिद में मिले नमाज पढ़ने की अनुमति
करीब 70 साल पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई बुधवार को पूरी हो गई. सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की बेंच ने 6 अगस्त से मामले की रोजाना सुनवाई शुरू की थी.
लखनऊ: करीब 70 साल पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद (Ayodhya Dispute) मामले की सुनवाई बुधवार को पूरी हो गई. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की बेंच ने 6 अगस्त से मामले की रोजाना सुनवाई शुरू की थी. दरअसल कोर्ट द्वारा बनाई गई मध्यस्थता पैनल मामले को सुलझाने में विफल रही थी. हालांकि पैनल ने इस विवाद के समाधान के लिए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में एक रिपोर्ट सौंपी. माना जा रहा है कि इसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षकारों के बीच एक तरह का समझौता हुआ है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या मामलें में नियुक्त की गई मध्यस्थता पैनल ने कल सुनवाई खत्म होने के बाद संविधान पीठ को एक प्रस्ताव पेश किया गया. जिसमें इस विवाद को सुलझाने को लेकर कुछ पक्षों द्वारा सहमत समझौता होने की बात कही जा रही है.
हालांकि इस प्रस्तावित समझौते में सभी पक्षकारों शामिल नहीं है. इसमें विश्व हिंदू परिषद द्वारा नियंत्रित राम जन्मभूमि न्यास, राम लला विराजमान और छह अन्य मुस्लिम दल नहीं शामिल है. इस प्रस्तावित समझौते का हिंदू महासभा, अखिल भारतीय श्री राम जन्मभूमि पुनरूद्धार समिति और श्री महंत राजेंद्रदास का अखाड़ा हिस्सा हैं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने केंद्र सरकार द्वारा जमीन अधिग्रहित करने पर अनापत्ति जताई है. वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष द्वारा इस एनओसी के बदले में एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) की मस्जिदें फिर से नमाज के लिए खोली जाए, साथ ही केंद्र सरकार द्वारा अयोध्या के अन्य मस्जिदों की मरम्मत कराय जाए और सुन्नी वक्फ को एक वैकल्पिक मस्जिद दी जाए. बताया जा रहा है कि इस समझौते को तैयार करने के लिए दोनों ही पक्षों के बीच दिल्ली और चेन्नई में लगभग एक महीने के भीतर 2-3 बैठकें हुई.
गौरतलब हो कि देश की शीर्ष कोर्ट ने लगातार चालीस दिन में सुनवाई पूरी है. संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर छह अगस्त से सुनवाई कर रह है. इस दौरान विभिन्न पक्षों ने अपनी अपनी दलीलें पेश कीं. संविधान पीठ ने इस मामले में सुनवाई पूरी करते हुये संबंधित पक्षों को ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ (राहत में बदलाव) के मुद्दे पर लिखित दलील दाखिल करने के लिये तीन दिन का समय दिया.
संविधान पीठ ने अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला- के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था. इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर 14 अपीलों पर सुनवाई की गई. इस संवेदनशील मुद्दे पर 17 नवंबर से पहले ही फैसला आने की उम्मीद है. दरअसल प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई इस दिन रिटायर हो रहे हैं.