Armed Flag Day 2019: कब और क्यों मनाया जाता है ‘सशस्त्र झंडा दिवस', जानें इसका इतिहास और महत्व

ध्वज’ अर्थात ‘झंडा’ किसी भी देश के शौर्य, त्याग और प्रतिष्ठा का प्रतीक होता है, इसलिए उसकी मान-मर्यादा का विशेष ध्यान रखा जाता है. 7 दिसंबर को भारत में ‘सशस्त्र झंडा दिवस’ मनाने की परंपरा का निर्वाह लंबे समय से करते आ रहे हैं.

राष्ट्रीय ध्वज (Photo Credits: Unsplash)

Armed Flag Day 2019: ‘ध्वज’ अर्थात ‘झंडा’ किसी भी देश के शौर्य, त्याग और प्रतिष्ठा का प्रतीक होता है, इसलिए उसकी मान-मर्यादा का विशेष ध्यान रखा जाता है. 7 दिसंबर को भारत में ‘सशस्त्र झंडा दिवस’ मनाने की परंपरा का निर्वाह लंबे समय से करते आ रहे हैं. इस अवसर पर देश की सुरक्षा में तैनात सेना के तीनों अंगों वायुसेना, जलसेना (नेवी) एवं थलसेना के जांबाज सैनिकों के प्रति सम्मान एवं आभार व्यक्त करते हुए उनके परिवार के प्रति एकजुटता की भावना दर्शाते हैं, जिन्होंने न केवल देश की सीमाओं की रक्षा में बल्कि देश के भीतर आतंकवादियों एवं उग्रवादियों से देश एवं जनता की सुरक्षा करते हुए अपनी जान न्यौछावर कर दी. आइए जानें इस दिन को कैसे सेलीब्रेट करते हैं.

कैसे हुई इसकी शुरुआत

ब्रिटिश हुकूमत से मिली आजादी के बाद भारत सरकार को लगा कि सैनिकों के परिवार वालों की जरूरतों का ख्याल रखने की आवश्यकता है. इसलिए केंद्रीय कैबिनेट की रक्षा समिति ने प्रत्येक वर्ष 7 दिसंबर, 1949 को झंडा दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया गया. समिति ने तय किया कि यह दिन उन जांबाजों वह चाहे पैदल सेना के सैनिक हों, नेवी के अथवा एयरफोर्स के हों उनके प्रति सम्मान प्रदर्शित करने का दिन होगा. शुरुआत में इस दिन को झंडा दिवस के रूप में मनाया गया, लेकिन साल 1993 में इस दिन को 'सशस्त्र सेना झंडा दिवस' का नाम दे दिया गया. इसके बाद से ये दिन सशस्त्र सेना द्वारा मनाया जाने लगा. सशस्त्र झंडा दिवस के द्वारा जमा हुई राशि युद्ध वीरांगनाओं, सैनिकों की विधवाओं, दिव्यांग सैनिक और उनके परिवार वालों के कल्याण पर खर्च की जाती है.

शस्त्र झंडा दिवस का उद्देश्य

सशस्त्र सेना झंडा दिवस या झंडा दिवस भारतीय सशस्त्र बलों के कर्मियों के कल्याण हेतु भारत की जनता से धन-संग्रह के प्रति समर्पित एक दिन है. यह 1949 से 7 दिसम्बर को भारत में प्रतिवर्ष मनाया जाता है. सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर हुए धन संग्रह के तीन मुख्य उद्देश्य है.

1. युद्ध के समय हुई जनहानि में सहयोग

2. सेना में कार्यरत कर्मियों और उनके परिवार के कल्याण और सहयोग हेतु

3. सेवानिवृत्त कर्मियों और उनके परिवार के कल्याण हेतु. इस दिवस पर धन-संग्रह सशस्त्र सेना के प्रतीक चिन्ह झंडे को बांट कर किया जाता है. इस झंडे में तीन रंग (लाल, गहरा नीला और हल्का नीला) तीनों सेनाओं को प्रदर्शित करते है.

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‘झंडा दिवस’ के दिन शहीद सैनिकों के परिवार के लिए धनराशि का संग्रह किया जाता है. इसके लिए आम भारतीयों को झंडे का स्टीकर खरीदने के लिए प्रेरित किया जाता है. गहरे लाल, गहरे नीले व हलके नीले रंग के झंडे के स्टीकर की न्यूनतम कीमत दस रूपये से अधिकतम दस लाख रूपये तक की राशि हो सकती है. लोग इस राशि का भुगतान कर स्टीकर खरीदकर अपने सीने पर टांकटे हुए शहीद सैनिकों के प्रति सम्मान की भावना दर्शाते हैं. स्टीकर से प्राप्त धनराशि युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के परिवार या घायल हुए सैनिकों के कल्याण व पुनर्वास में खर्च की जाती है. यह राशि सैनिक कल्याण बोर्ड की माध्यम से खर्च की जाती है. इसलिए देश के हर नागरिक को ‘सशस्त्र झंडा दिवस’ कोष में अपना योगदान अवश्य देना चाहिए, ताकि हमारे देश का झंडा आसमान की ऊंचाइयों को छूता रहे.

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