NOK Rule in Army: कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता द्वारा शहीद के परिवार को मिलने वाली वित्तीय सहायता के नियमों में बदलाव पर बोलने के बाद अब मिग दुर्घटना में जान गंवाने वाले कमांडर निशांत सिंह की मां प्रोमिला देवी ने भी अपना दर्द बयां किया है. उनका कहना है कि उन्हें कुछ भी नहीं मिला है. तलाकशुदा होने के नाते सारा पैसा उनके पूर्व पति के पास चला गया. बुढ़ापे में उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है. इसके चलते उन्हें मुश्किल समय का सामना करना पड़ रहा है.
उन्होंने दुख जताया कि ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले बहादुर अधिकारियों के माता-पिता की उपेक्षा की जा रही है. इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार से नीतियों की समीक्षा करने का भी अनुरोध किया है.
शहीद की मां ने NOK नियमों में बदलाव की मांग की
A petition also has been shared for the mother. It's really sad to read this
Please sign this petition https://t.co/0aiS1EqvFf pic.twitter.com/tjuVXasNp9
— Deepika Narayan Bhardwaj (@DeepikaBhardwaj) July 14, 2024
एयरफोर्स के शहीद कमांडर निशांत सिंह की मां प्रोमिला सिंह इस संबंध में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी मिल चुकी हैं. इससे जुड़ा एक लेटर भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है. इसमें मिग दुर्घटना में जान गंवाने वाले कमांडर निशांत सिंह की मां प्रोमिला देवी के हवाले से लिखा गया है कि सेना में शहीद हुए विधवाओं को निश्चित रूप से मुआवजा मिलना चाहिए, लेकिन जो माता-पिता पूरी तरह से अपने बेटों पर निर्भर हैं, उन्हें भी अनुदान का लाभार्थी होना चाहिए. बिना किसी गुजारा भत्ते के तलाकशुदा मां प्रोमिला सिंह अपने इकलौते बेटे कमांडर निशांत सिंह पर निर्भर हैं, जो मिग 29 के साथ अरब सागर में चले गए थे और 26 नवंबर 2020 को अपनी जान गंवा दी थी. उन्हें अभी भी भारतीय नौसेना से न्याय की प्रतीक्षा है. उन्हें शेष जीवन सम्मान के साथ जीने के लिए एक नियमित और न्यायसंगत पेंशन दी जाए, जैसा कि उनका 35 वर्षीय इकलौता बेटा चाहता था.
शहीद की मां प्रोमिला सिंह अपने इकलौते बेटे को राष्ट्र की सेवा के लिए भारतीय नौसेना को सौंपने के लिए अपना कर्तव्य निभाया, अब समय आ गया है कि भारतीय नौसेना को उनके शेष जीवन के लिए उनकी भलाई और गौरव का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि वह स्वर्ग में अपने बेटे के पास वापस जाने तक अपनी यात्रा जारी रखने के लिए बिल्कुल अकेली रह गई हैं. यहां तक कि वह अपने जीवन के इस पड़ाव पर जब वह 66 वर्ष की हैं. वह ईसीएचएस सुविधा से वंचित हैं. अब समय आ गया है कि सभी रक्षा सेवाओं के लिए कानून एक जैसे होने चाहिए. उन आश्रितों के पक्ष में होने चाहिए जिन्होंने राष्ट्र और उसके नागरिकों की सुरक्षा के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने बेटों को खो दिया है.