सुप्रीम कोर्ट ने एडल्टरी लॉ को किया खारिज, कहा- व्यभिचार कानून मनमाना
मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार से उनका पक्ष भी पूछा था. सरकार ने 'शादी की पवित्रता' को बनाए रखने के लिए भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की धारा 497 का बचाव किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एडल्टरी के कानून पर फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान में महिला और पुरुष दोनों को बराबरी का अधिकार दिया गया है. बता दें कि यह कानून 150 साल पुराना है. सर्वोच्च न्यायलय में आज चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि अडल्टरी तलाक का आधार हो सकता है लेकिन यह अपराध नहीं होगा. धारा 497 की वैधता खारिज करने को लेकर दायर की गई एक याचिका पर अदालत ने 23 अप्रैल 2018 को सुनवाई होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. दालत की पांच जजों की पीठ ने कहा कि यह कानून असंवैधानिक और मनमाने ढंग से लागू किया गया था.
बता दें कि अदालत ने अदालत आईपीसी की धारा 497 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता 198(2) की संवैधानिक मान्यता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की. न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में इस मामले की सुनवाई हुई. पीठ के अन्य न्यायाधीश न्यायामूर्ति रोहिंटन नरीमन, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा थे.
मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार से उनका पक्ष भी पूछा था. सरकार ने 'शादी की पवित्रता' को बनाए रखने के लिए भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की धारा 497 का बचाव किया था. अदालत ने कहा धारा 497 के तहत सिर्फ पुरुष को ही दोषी माना जाना IPC का एक ऐसा अनोखा प्रावधान है कि जिसमें केवल एक पक्ष को ही दोषी माना जाता है.