Raj Kapoor Death Anniversary 2021: राज कपूर के जीवन से जुड़े अनमोल लम्हें! जिनकी विदेश में लोकप्रियता देख हैरान थे पंडित जवाहरलाल नेहरु!
हिंदी सिनेमा के लिए राज कपूर महज एक्टर, डायरेक्टर, लेखक या प्रोड्यूसर ही नहीं, बल्कि एक ब्रांड थे, एक प्रतीक थे. राज कपूर का मतलब एक इंस्टीट्यूट, राज कपूर का मतलब ‘आरके’, ‘रोमांटिक हीरोइज्म’, ग्रेट शोमैन, तिलस्मी ‘कपूर खानदान’, जिसकी चौथी पीढ़ी आज भी इंडस्ट्री पर परचम लहरा रही है.
Raj Kapoor Death Anniversary 2021: हिंदी सिनेमा के लिए राज कपूर महज एक्टर, डायरेक्टर, लेखक या प्रोड्यूसर ही नहीं, बल्कि एक ब्रांड थे, एक प्रतीक थे. राज कपूर का मतलब एक इंस्टीट्यूट, राज कपूर का मतलब ‘आरके’, ‘रोमांटिक हीरोइज्म’, ग्रेट शोमैन, तिलस्मी ‘कपूर खानदान’, जिसकी चौथी पीढ़ी आज भी इंडस्ट्री पर परचम लहरा रही है. हिंदी सिनेमा की इस महान शख्सियत को दुनिया से रुखसत हुए 33 वर्ष हो गये, लेकिन उनकी जादुई छवि आज भी सिने-प्रेमी भूले नहीं हैं, आइये उनकी स्मृतियों के कुछ यादगार लम्हों को शेयर करते हैं.
संघर्ष की भट्टी में तपकर निखरे शो-मैन!
राज कपूर का जन्म 14 दिसंबर 1924 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में हुआ था. बटवारे का दंश उन्हें भी झेलना पड़ा था. पिता पृथ्वी राज कपूर थियेटर आर्टिस्ट थे. राज कपूर के दो भाई शशि कपूर और शम्मी कपूर थे. सिनेमा में किस्मत आजमाने से पहले उन्हें सेट पर कीलें ठोंकनी पड़ी, स्टूडियो में झाड़ू लगाना पड़ा, सीनियर्स को पानी और चाय पेश करनी पड़ी, डायरेक्टर केदार शर्मा का तमाचा सहना पड़ा. इतनी परीक्षाओं से गुजरने के बाद ही वे राज कपूर बने.
पृथ्वीराज कपूर से मिली संघर्ष सहने की शक्ति!
आरके स्टूडियो में हुई एक मुलाकात में स्वयं राज कपूर ने माना था कि उनके राज कपूर बनने में पापाजी (पृथ्वीराज कपूर) का बड़ा हाथ था. जानकार बताते हैं कि राज कपूर ने जब फिल्मों में काम करने की ख्वाहिश पिता को बता, तब उऩ्होंने कहा पहले स्टूडियो को तो समझो. उन्होंने राज कपूर को स्टूडियो में प्रतिमाह एक रूपये की नौकरी दिलवा दी. राज कपूर का काम था सेट पर कील ठोंकना, झाड़ू लगाना, लोगों को चाय या पानी पिलाना. कहते हैं कि एक दिन बंबई में बहुत बारीश हो रही थी, राज कपूर ने माँ से पूछा आज पापाजी की कार से स्कूल चला जाऊं? पृथ्वीराज ने कहा कभी-कभी बारीश का भी आऩंद लो. तब हमेशा की तरह राज कपूर ट्राम से स्कूल पहुंचे.
कुछ ऐसे रची गई ‘मुड़ मुड़ के ना देख...’
राज कपूर की टीम के 5 मुख्य स्तंभ थे शंकर, जयकिशन, शैलेंद्र, हसरत जयपुरी और मुकेश. एक बार हसरत जयपुरी से मिलने का मौका मिला, उन्होंने राज कपूर के साथ गुजरे पलों की कुछ बातें शेयर की थी, -राज साहब अकसर अपनी टीम के साथ चर्चगेट होटल के करीब स्थित कैफे में बैठकर गप्पे लड़ातें. एक दिन सभी बैठे थे. चर्चगेट से कुछ लड़कियां निकलीं और केसी कॉलेज की ओर जाने लगीं. हममे जयकिशन थोड़े खूबसूरत और मनचले थे, एक खूबसूरत-सी लड़की जब बगल से निकली तो जयकिशन उसे घूरकर देखने लगे. लड़की पीछे मुड़ी, फिर आगे बढ़ी फिर पीछे मुड़कर देखा, जयकिशन बोल पड़े, ‘मुड़ मुड़ के ना देख’. उस समय तो बात आई गई हो गयी. उसी रात करीब एक बजे राज साहब का फोन आया कि सभी लोग एक घंटे में महालक्ष्मी पहुंचो. राज साहब की बात कौन टाल सकता था. सभी महालक्ष्मी पहुंचे तो देखकर दंग रह गये कि राज साहब पहले से बैठे थे. उन्होंने शैलेंद्र से कहा तुमने दोपहर में ‘मुड़ मुड़ के ना देख’ कहा था, मुझे उसी मूड में ‘श्री 420’ के लिए एक गीत चाहिए. राज साहब ने उसी समय शंकर जयकिशन के साथ धुन तैयार की. अगले दिन वह गाना मन्ना दा की आवाज में रिकॉर्ड करवाया. नादिरा पर फिल्माया यह गाना सुपर हिट हुआ.
रूस में राज कपूर की लोकप्रियता से पंडित नेहरू भी हैरान हुए!
एक सीनियर पत्रकार के अनुसार राज कपूर भारत में ही नहीं, बल्कि रूस, जापान, अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और पाकिस्तान तक में बहुत लोकप्रिय थे. इस संदर्भ में एक किस्सा उन्होंने बताया, -बात 50 के दशक की है. प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू रूस गये हुए थे. वहां रसियन डेलीगेसी द्वारा आयोजित डिनर के समय पंडित नेहरू के संक्षिप्त स्पीच के बाद रसियन प्रधानमंत्री निकोलाई बुल्गानिन को बुलाया गया. उन्होंने अपने मंत्री मंडल के साथ ‘आवारा हूं…’, गाना शुरु किया, तो वहां बैठे लोग हैरान रह गये. सभी ने तालियां बजाकर प्रशंसा की. पंडित नेहरू भी सुनकर हैरान रह गये कि उनसे पहले राज कपूर की लोकप्रियता वहां पहुंच चुकी थी. भारत लौटने पर उन्होंने राज कपूर को फोन कर सारी बात बताई. इसी संदर्भ में राज कपूर की बेटी ऋतु नंदा ने बताया था कि 1993 में जब रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन भारत आये. ऋतु नंदा ने उनसे मिलने की ख्वाहिश जताई. जैसे ही बोरिस येल्तसिन को पता चला की ऋतु राज कपूर की बेटी हैं, तो उन्हें तुरंत बुलवाया और बताया कि वे उनके पिता यानी राज कपूर को बहुत पसंद करते हैं.
बॉबी में डिंपल की वह मासूम अदा!
राज कपूर सही मायने में एक ऐसे फिल्म मेकर थे, जो छोटी-छोटी बातों को बेजा नहीं समझते थे.1948 की एक घटना है, राज कपूर केदार शर्मा के सहायक थे. नरगिस बड़ी स्टार बन चुकी थीं. राज अपनी फिल्म ‘आग’ के लिए नरगिस को लेना चाहते थे. वे महालक्ष्मी गये, जहां नरगिस ‘रोमियो जुलियट’ की शूटिंग कर रही थीं. लेकिन राज कपूर को नरगिस से बात करने के लिए यह जगह उपयुक्त नहीं लगी. अगले दिन वे नरगिस के घर गये. नरगिस पकौड़ियां तल रही थीं. राज कपूर ने डोरबेल बजायी. थोड़ी देर में नरगिस ने दरवाजा खोला तो राज यह देखकर हैरान रह गये कि नरगिस के बालों एवं चेहरे पर बेसन लगा है, जो शायद दरवाजा खोलते समय असावधानीवश माथे पर आई लट को हटाते हुए लग गया होगा. राज को नरगिस की यह अदा इतनी अच्छी लगी, कि ऐसा ही सीन उन्होंने बॉबी की शूटिंग के दरम्यान क्रियेट करके उसे डिंपल पर सूट किया था.