संयुक्त राष्ट्र में हुई मशहूर शेफ विकास खन्ना के निर्देशन वाली पहली फिल्म 'द लास्ट कलर' की स्क्रीनिंग
मिशेलिन स्टार शेफ विकास खन्ना के निर्देशन वाली पहली फिल्म ‘द लास्ट कलर’ यहां संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में दिखाई गई. फिल्म ‘बधाई हो’ के लिए हाल ही में कई पुरस्कार जीतने वाली गुप्ता स्क्रीनिंग के लिए खासतौर से यहां आई. फिल्म में अपनी भूमिका के बारे में गुप्ता ने कहा कि उनका मानना है कि यह बनारस का जादू है, उस माहौल में मैंने कुछ नहीं किया. सब कुछ अनायास होता चला गया.
संयुक्त राष्ट्र : मिशेलिन स्टार शेफ विकास खन्ना (Chef Vikas Khanna ) के निर्देशन वाली पहली फिल्म ‘द लास्ट कलर’ (The Last Colour) यहां संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में दिखाई गई. राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेत्री नीना गुप्ता अभिनीत इस फिल्म में महिला सशक्तिकरण, समानता और सभी के लिए मान-मर्यादा का संदेश दिया गया है.
यूनाइटेड नेशंस स्टाफ रीक्रिएशन काउंसिल (यूएनएसआरसी) के तहत सोसायटी फॉर प्रोमोशन ऑफ इंडियन कल्चर एंड एक्सपीरियंस (स्पाइस-इंडियन क्लब) द्वारा शुक्रवार को स्क्रीनिंग की गई जिसका मकसद विश्व निकाय के मुख्यालय में भारत की कलात्मक और सांस्कृतिक विरासत का प्रचार करना है.
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फिल्म ‘बधाई हो’ के लिए हाल ही में कई पुरस्कार जीतने वाली गुप्ता स्क्रीनिंग के लिए खासतौर से यहां आयी. स्क्रीनिंग में संचालनात्मक सहयोग के लिए अवर महासचिव अतुल खरे, शेफ खन्ना, संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारी और भारतीय-अमेरिकी समुदाय के सदस्य शामिल हुए. भारत के प्राचीन शहर वाराणसी की पृष्ठभूमि में बनी द लास्ट कलर 70 वर्षीय विधवा नूर (नीना गुप्ता) और नौ साल की छोटी (अक्सा सिद्दीकी) के साथ उनके खास लगाव पर आधारित है.
अनाथ, बेघर बच्ची छोटी स्कूल जाना चाहती है और अपनी दो जून की जरुरतों को पूरा करने के लिए वह रस्सी पर चलने का करतब दिखाती है और फूल बेचती है. फिल्म की स्क्रीनिंग से पहले सभा को संबोधित करते हुए खरे ने अपनी दिवंगत मां की कहानी साझा की जो निधन से पहले तकरीबन 19 साल तक विधवा रहीं.
गुप्ता ने स्क्रीनिंग से पहले पीटीआई-भाषा को एक साक्षात्कार में बताया कि यह फिल्म ‘‘उम्मीद की किरण दिखाती’’ है कि दयालुपन और सकारात्मकता की छोटी-छोटी चीजें कुछ भी हासिल करने में मदद कर सकती है.
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि अगर हम अपने घर से शुरुआत करे, अपने कर्मचारियों के प्रति अच्छा व्यवहार करे, उन्हें बेहतर वेतन दें, उनके बच्चों की तालीम देखे तो फिर पूरी दुनिया बदल जाएगी.’’ फिल्म में अपनी भूमिका के बारे में गुप्ता ने कहा कि उनका मानना है कि यह बनारस का जादू है, उस माहौल में मैंने कुछ नहीं किया. सब कुछ अनायास होता चला गया.