नयी दिल्ली, दो अक्टूबर मुकेश कुमार को राष्ट्रीय टीम में चयन के बारे में तब तक पता नहीं चला था जब तक उन्हें भारतीय टीम के आधिकारिक वाट्सएप ग्रुप में शामिल नहीं किया गया।
मुकेश ने राजकोट से पीटीआई से कहा, ‘‘मैं बहुत भावुक हो गया। सब धुंधला सा लग रहा था। मुझे सिर्फ अपने दिवंगत पिता काशी नाथ सिंह का चेहरा याद आ रहा था। जब तक मैं बंगाल के लिये रणजी ट्राफी में नहीं खेला, तब तक मेरे पिता को नहीं लगा कि मैं पेशेवर तौर पर खेलने के लिये अच्छा हूं। उनको शक था कि मैं काबिल हूं भी या नहीं। ’’
रणजी फाइनल्स से पहले ही उनके पिता का ‘ब्रेन स्ट्रोक’ से निधन हो गया। मुकेश सुबह ट्रेनिंग करते और अस्पताल में अपने पिता के बिस्तर के पास समय बिताते।
बिहार के गोपालगंज जिले के मुकेश ने कहा, ‘‘आज मेरी मां की आंखों में आंसू थे। वह भी बहुत भावुक हो गयी थीं। घर पर हर किसी ने रोना शुरू कर दिया। ’’
वह तीन बार सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल) की परीक्षा में बैठ चुके हैं क्योंकि उनके पिता चाहते थे कि वह सरकारी नौकरी करे।
सीआरपीएफ तो नहीं लेकिन मुकेश प्रथम श्रेणी क्रिकेटर के तौर पर सीएजी (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कार्यालय) के साथ कार्यरत हैं।
वह नयी गेंद से बंगाल के सबसे निरंतर गेंदबाज हैं लेकिन न्यूजीलैंड ए के खिलाफ पहले टेस्ट में पांच विकेट और ईरानी कप के पहले दिन चार विकेट ने उनकी भारतीय टीम में जगह बनाने में अहम भूमिका निभायी।
गेंद दोनों तरीकों से स्विंग कराने की उनकी काबिलियत पर इस 28 साल के खिलाड़ी ने कहा, ‘‘आपके हाथों की कलाकारी भगवान की देन है, लेकिन उनका दिया हुए आर्शीवाद पर मेहनत नहीं करोगे तो कुछ नहीं होगा। ’’
भारतीय टीम के ड्रेसिंग रूम में जाना उनके लिये ज्यादा से ज्यादा सीखने का मौका होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘जीवन का मतलब ही सीखते रहना है, जो कभी खत्म नहीं होता। मेरी कोशिश यह सुनिश्चित करने की होगी कि मैं जब तक क्रिकेट खेलूंगा तब तक सीखना जारी रहेगा। ’’
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