विदेश की खबरें | श्रीलंका में 2022 में रहा अभूतपूर्व आर्थिक एवं राजनीतिक संकट, भारत की सहायता से मिली राहत

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on world at LatestLY हिन्दी. श्रीलंका 2022 में एक अभूतपूर्व वित्तीय संकट की चपेट में आया, जिसके चलते द्वीपीय देश में राजनीतिक उथल-पुथल हुई जिसके कारण राजपक्षे परिवार को सत्ता गंवानी पड़ी।

श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने

कोलंबो, 30 दिसंबर श्रीलंका 2022 में एक अभूतपूर्व वित्तीय संकट की चपेट में आया, जिसके चलते द्वीपीय देश में राजनीतिक उथल-पुथल हुई जिसके कारण राजपक्षे परिवार को सत्ता गंवानी पड़ी।

जुलाई में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और मई में उनके बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के इस्तीफों के बीच बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शन उनके सहयोगी रानिल विक्रमसिंघे के नेतृत्व वाली सरकार के गठन के साथ कम हुए। विक्रमसिंघे पर अब अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और उसे पटरी पर लाने की जिम्मेदारी है जो पहले महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुई थी।

अप्रैल से जुलाई तक, श्रीलंका में अराजकता जैसी स्थिति थी। ईंधन स्टेशनों पर लंबी कतारें लगी दिखती थीं और खाली रसोई गैस सिलेंडरों के साथ सड़कों को अवरुद्ध करने वाले हजारों लोगों में गुस्सा था। लंबी लाइनों में लगने और कुछ मामलों में 72 घंटे से अधिक की प्रतीक्षा के कारण थकावट होने से कतारों में 20 से अधिक लोगों की मौत हो गई।

अप्रैल में, राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने अपने भाई एवं वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे को देश में आर्थिक उथल-पुथल की स्थिति के बीच बर्खास्त कर दिया था।

मई में श्रीलंका सरकार ने विदेशी ऋण में 51 अरब अमरीकी डालर से अधिक की ऋण चूक घोषित की जो देश के इतिहास में पहली घटना थी।

पड़ोसी देश श्रीलंका को जरूरत के समय मदद के लिए भारत आगे आया और उसे वर्ष के दौरान लगभग चार अरब अमेरिकी डालर की वित्तीय सहायता दी।

जनवरी में, भारत ने वित्तीय संकट के सामने आने के बाद श्रीलंका को 90 करोड़ अमेरिकी डालर का ऋण देने की घोषणा की। उस समय श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से कम हो रहा था। बाद में, भारत ने श्रीलंका को ईंधन खरीद के लिए 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर की ऋण सुविधा की पेशकश की। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए ऋण सुविधा को बाद में बढ़ाकर 70 करोड़ अमेरिकी डॉलर कर दिया गया।

विदेशी मुद्रा की लगातार कमी और बढ़ती महंगाई के कारण दवाओं, ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी हो गई। ऋण चूक 1948 में स्वतंत्रता के बाद से देश के सबसे खराब आर्थिक संकट से निपटने में तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की सरकार के कुप्रबंधन को लेकर अप्रैल में सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन के बीच हुई।

विदेश मंत्री एस जयशंकर अभूतपूर्व अराजकता के बीच द्वीप का दौरा करने वाले पहले विदेशी गणमान्य व्यक्ति थे। जयशंकर ने मार्च में कहा था कि श्रीलंका हमारा सबसे करीबी पड़ोसी है और हम उसकी हरसंभव मदद करेंगे।

भारत ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से श्रीलंका को तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए भी कहा।

जून में श्रीलंका के तत्कालीन प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने कहा था कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था "पूरी तरह से चरमरा गई है।’’ जून में, भारत ने देश में आर्थिक संकट का आकलन करने के लिए चार वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को कोलंबो भेजा था।

जुलाई में, हजारों लोगों ने गोटबाया राजपक्षे के आधिकारिक आवास पर धावा बोल दिया, जिससे राष्ट्रपति को एक सैन्य विमान से पहले मालदीव और फिर सिंगापुर भागना पड़ा, जहां से उन्होंने अपना इस्तीफा भेजा। उनके इस्तीफे से शक्तिशाली राजपक्षे परिवार के शासन का अंत हो गया, जिसने लगभग 20 वर्षों तक सत्ता का संचालन किया।

अगस्त में श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर एक चीनी जासूसी जहाज के लंगर डालने को लेकर नयी दिल्ली और कोलंबो के बीच एक राजनयिक विवाद शुरू हो गया। हाई-टेक निगरानी जहाज के बंदरगाह दौरे के कारण यहां भारतीय और चीनी राजनयिक मिशनों के बीच भी ट्विटर पर विवाद हुआ।

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