सबके लिए नहीं है यूनिवर्सिटी की पढ़ाईः रिपोर्ट
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अक्सर माता-पिता अपने बच्चों से उम्मीद करते हैं कि स्कूल के बाद वे किसी अच्छी यूनिवर्सिटी में उच्च शिक्षा हासिल करेंगे. लेकिन ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं ने एक लंबे शोध के बाद कहा है कि यूनिवर्सिटी सबके लिए सही नहीं होती.दुनियाभर में यह चलन है कि स्कूल पूरा होने के बाद माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे किसी अच्छी यूनिवर्सिटी में दाखिला लें और अच्छे विषय में पढ़ाई करें ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके.

लेकिन ऑस्ट्रेलिया के कुछ शोधकर्ता कहते हैं कि ऐसी उम्मीदों की वजह से कई बार अन्य रास्तों को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिसका बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है.

‘एजुकेशनल रिव्यू' नामक पत्रिका में एक शोध पत्र प्रकाशित हुआ है. न्यू कासल विश्वविद्यालय की तीन शोधकर्ताओं क्रिस्टीन सिनकॉक, फेलिशिया जारेमस और सैली पैटफील्ड ने यह शोध किया है.

शोधकर्ता बताती हैं कि उनका शोध सरकार की उच्च शिक्षा नीतियों, स्कूलों में करियर को लेकर सलाह और अभिभावकों में व्यवसायिक शिक्षा और ट्रेनिंग के बारे में जानकारी में कमियों को उजागर करता है.

कैसे हुआ अध्ययन

इन शोधकर्ताओं ने 2012 से ऑस्ट्रेलिया में युवाओं के बीच आकांक्षाओं को लेकर व्यापक अध्ययन किया है. तीसरी से 12वीं कक्षा के दस हजार छात्रों पर यह अध्ययन किया गया है. हाल ही में उनमें से 50 युवाओं से संपर्क किया गया ताकि जाना जाए कि वे लोग करियर और शिक्षा के मामले में कहां पहुंचे.

शोधकर्ता कहते हैं, "हमारा आकलन दिखाता है कि कैसे ऑस्ट्रेलियाई युवाओं, खासकर कमजोर तबके से आने वाले युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए धकेला गया.”

रिपोर्ट के मुताबिक इस शोध में शामिल युवाओं ने अक्सर कहा कि स्कूल में उन्हें बार-बार यह समझाया गया कि स्कूल के बाद यूनिवर्सिटी ही सफल होने के लिए एकमात्र रास्ता है. अन्य विकल्पों के बारे में अक्सर यही कहा गया कि वे अच्छे नहीं हैं.

रिपोर्ट में एक यूनिवर्सिटी ग्रैजुएट ने बताया, "मुझे लगता है कि दबाव बहुत ज्यादा होता है. सभी शिक्षक ऐसा नहीं कहते हैं लेकिन कुछ कहते हैं कि उच्च शिक्षा की ओर जाना चाहिए. मुझे लगता है कि एक समूह के तौर पर, या एक पीढ़ी के तौर पर मैंने काफी दबाव महसूस किया. मुझे लगता है कि उम्मीदें कुछ ज्यादा ही बड़ी थीं.”

मानसिक स्वास्थ्य पर असर

शोधकर्ता कहते हैं कि यह दबाव काफी छात्रों के लिए परेशान करने वाला साबित हुआ. रिपोर्ट में एक छात्र एंगस की मिसाल दी गई है जिसने व्यवसायिक शिक्षा संस्थान से खाना पकाने की ट्रेनिंग ली और शेफ बनने का अपना सपना पूरा किया.

2014 में जब एंगस से पहली बार बात की गई थी तो उसने शोधकर्ताओं को बताया था कि वह रेस्तराओं में सहज महसूस करते हैं. लेकिन ताजा अध्ययन के दौरान जब एंगस से बात की गई तो उसने कहा, "मेरे शिक्षकों ने मुझे बार-बार कहा कि खाना पकाना एक भयानक नौकरी है.”

रिपोर्ट में एंगस बताते हैं, "मेरे स्कूल में लगभग हर शिक्षक ने मुझे अपनी पसंद के करियर की ओर भेजना चाहा. मुझे कहा गया कि तुम बहुत होनहार हो और तुम्हें यूनिवर्सिटी जाना चाहिए नहीं तो तुम शायद सफल नहीं हो पाओगे. मैं कैसा महसूस कर रहा था, इससे फर्क नहीं पड़ता था. मुझे कभी नहीं लगा कि मेरा करियर सलाहकार मेरी मदद कर रहा था.”

वैकल्पिक करियर पर बात हो

शोधकर्ता कहते हैं कि स्कूलों में करियर के बारे में सीमित मार्गदर्शन होता है. शोध में शामिल अधिकतर युवाओं ने यही कहा कि करियर के मामले में उनका स्कूल मददगार नहीं था और उन्हें बस यूनिवर्सिटी की ओर धेकल रहा था.

शोधकर्ता लिखते हैं, "वैकल्पिक करियर के रास्तों पर खुलकर बहुत कम बात होती है और उनके बारे में पूरी समझ भी नहीं है. ऐसे रास्तों को अक्सर अच्छे नंबर लाने के मुकाबले नीचा आंका जाता है.”

रिपोर्ट कहती है कि इस दबाव के कारण बहुत से युवाओं को मानसिक दबाव झेलना पड़ा और अपने स्कूल के आखिरी दिनों व यूनिवर्सिटी के शुरुआती दिनों में उन्हें खराब मानसिक स्वास्थ्य से गुजरना पड़ा. इस कारण छात्र विफल हुए या अत्यधिक थक गए. यह बात ज्यादा खतरनाक इसिलए भी थी क्योंकि किशोरावस्था से युवावस्था की ओर जाना अपने आप में मानसिक दबाव वाला होता है.