Tripura Shocker: गरीबी से जूझ रही आदिवासी महिला ने नवजात बच्ची को बेचा

त्रिपुरा के धलाई जिले में पांच महीने पहले पति के गुजर जाने के बाद अत्यंत निर्धनता से जूझ रही एक आदिवासी महिला ने अपनी नवजात बच्ची को 5000 रुपये में बेच दिया.

Baby Representative Image (Photo Credit: Pixabay)

अगरतला, 25 मई : त्रिपुरा के धलाई जिले में पांच महीने पहले पति के गुजर जाने के बाद अत्यंत निर्धनता से जूझ रही एक आदिवासी महिला ने अपनी नवजात बच्ची को 5000 रुपये में बेच दिया. एक अधिकारी ने शनिवार को यह जानकारी दी. सूत्रों ने बताया कि सौभाग्य से विपक्ष के नेता जितेंद्र चौधरी के हस्तक्षेप के बाद जिले के हेजामारा के एक दंपति से चार दिन की इस बच्ची को वापस लेकर मां को सौंप दिया गया.

उपसंभागीय मजिस्ट्रेट अरिंदम दास ने बताया कि गंदाचेर्रा उपसंभाग में ताराबन कॉलोनी की मोरमति त्रिपुरा (39) ने बुधवार को अपने घर में एक बेटी को जन्म दिया था. उन्होंने कहा कि अगले ही दिन महिला ने पांच महीने पहले पति के गुजर जाने का हवाला देते हुए बच्ची को हेजामारा के एक दंपति को 5000 रुपये में बेच दिया. दास ने कहा, ‘‘ पहले से ही दो बेटों एवं एक बेटी के भरण-पोषण का खर्च उठा रही महिला बदतर आर्थिक स्थिति के कारण एक और बच्चे का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं थी. संभवत: इसी बदहवासी में बच्ची को बेचने का उसे निर्णय लेना पड़ा. सूचना मिने पर हमने तुरंत शिशु को हासिल कर लिया और अगले ही दिन उसे उसकी मां से मिला दिया.’’ यह भी पढ़ें : उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बताकर साइबर जालसाज ने जिला न्यायाधीश से 50 हजार रुपये की ठगी की

दास ने कहा कि मां और बच्ची को उसके घर पर जरूरी सहायता प्रदान की गयी तथा इस परिवार को आगे भी सहयोग देने का आश्वासन दिया गया. दरअसल इस मामले की जानकारी के बाद विपक्ष के नेता जितेंद्र चौधरी ने एक वीडियो साझा किया जिसमें यह महिला अत्यंत निर्धनता के कारण अपनी नवजात बच्ची को बेच देने की बात कबूलती हुई नजर आयी. तब मुख्य सचिव ने शुक्रवार को तत्काल कार्रवाई की.

चौधरी ने आरोप लगाया कि मोरमति का पति पुरनजॉय जलावन की लकड़ियां बेचकर परिवार का गुजर-बसर करता था लेकिन वह वित्तीय तंगी में उचित इलाज नहीं मिल पाने के कारण अपनी जान गंवा बैठा. उन्होंने कहा कि इस परिवार के पास गरीबी रेखा से नीचे का राशन कार्ड भी नहीं है. चौधरी ने भाजपा सरकार और टिपरा मोथा की अगुवाई वाली त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद को वित्तीय संकट में घिरे इन लोगों को सहायता नहीं पहुंचाने का जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने चेतावनी दी, ‘‘ बिना सरकारी दखल के ऐसी और त्रासदियां आदिवासी क्षेत्रों में अवश्यंभावी है.’’

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