देश की खबरें | ‘अप्रिय चिकित्सा घटना’ के शुरुआती निष्कर्षों के मद्देनजर परीक्षण रोकने की आवश्यकता नहीं थी : सरकार

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. केंद्र ने मंगलवार को कहा कि चेन्नई में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के कोविड-19 टीके के परीक्षण में हिस्सा लेने वाले एक भागीदार के कथित तौर पर दिक्कतों का सामना करने के संबंध में शुरूआती निष्कर्षों के मद्देनजर परीक्षण रोकने की आवश्यकता नहीं थी।

एनडीआरएफ/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: ANI)

नयी दिल्ली, एक दिसम्बर केंद्र ने मंगलवार को कहा कि चेन्नई में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के कोविड-19 टीके के परीक्षण में हिस्सा लेने वाले एक भागीदार के कथित तौर पर दिक्कतों का सामना करने के संबंध में शुरूआती निष्कर्षों के मद्देनजर परीक्षण रोकने की आवश्यकता नहीं थी।

केंद्र ने कहा कि यह दवा नियामक को पता लगाना है कि घटना और प्रयोग में कोई संबंध है या नहीं।

यह भी पढ़े | BrahMos Missile: नौसेना ने ब्रह्मोस मिसाइल के एंटी-शिप वर्जन का किया सफल परीक्षण.

सीरम इंस्टीट्यूट के परीक्षण में ‘अप्रिय चिकित्सा घटना’ होने के आरोपों पर सरकार ने कहा कि इसका टीका निर्माण की समय-सीमा पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

चेन्नई में ‘‘कोविशील्ड’’ टीका के परीक्षण के तीसरे चरण में 40 वर्षीय एक व्यक्ति ने गंभीर दुष्प्रभाव की शिकायतें कीं जिसमें तंत्रिका तंत्र में खराबी आना और बोध संबंधी दिक्कतें पैदा होना शामिल है। उसने परीक्षण को रोकने की मांग करने के अलावा सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) एवं अन्य से पांच करोड़ रुपये का मुआवजा भी मांगा है।

यह भी पढ़े | कांग्रेस की मांग, किसानों पर दर्ज मुकदमे तुरंत वापस ले सरकार: 1 दिसंबर 2020 की बड़ी खबरें और मुख्य समाचार LIVE.

बहरहाल, एसआईआई ने रविवार को इन आरोपों को ‘‘दुर्भावनापूर्ण और मिथ्या’’ बताकर खारिज कर दिया और कहा कि वह सौ करोड़ रुपये का मुआवजा मांगेगा।

आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने कहा कि दवाओं या टीके या अन्य स्वास्थ्य प्रयोगों में ‘अप्रिय चिकित्सा घटनाएं’ होती हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर किसी अप्रिय चिकित्सा घटना के कारण अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़े तो इसे गंभीर अप्रिय घटना कहते हैं। यह दवा नियामक की भूमिका है कि सभी आंकड़ों को जुटाकर यह तय करे या इंकार करे कि घटना और प्रयोग में कोई संबंध है अथवा नहीं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘संबंधों का पता लगाना या इससे इंकार करने का काम डीजीसीआई का है और पांच मानकों से जुड़े सभी पत्रों को उन्हें समीक्षा के लिए सौंपा गया है।’’

उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह वैज्ञानिक आधार पर किया जाता है और आकलन काफी वस्तुनिष्ठ आधार पर किया जाता है और शुरुआती अप्रिय घटना के आकलन निष्कर्षों के आधार पर इन परीक्षणों को नहीं रोका जाना चाहिए।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण ने एक संवाददाता सम्मेलन में एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘अप्रिय चिकित्सा घटना का किसी भी तरह से समय सीमा पर विपरीत असर नहीं पड़ेगा।’’

भूषण ने कहा कि वह मामले की बारीकियों पर टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं लेकिन देखा गया है कि मीडिया में अप्रिय चिकित्सा घटना पर अधिकतर बहस अपर्याप्त सूचना और तथ्यों पर आधारित हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘जब क्लीनिकल परीक्षण शुरू होता है तो जिन लोगों पर परीक्षण होता है उन्हें पहले ही पूरी जानकारी देकर सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कराया जाता है। यह वैश्विक स्तर पर होता है।’’

भूषण ने कहा कि पूर्व सहमति पत्र में व्यक्ति को संभावित अप्रिय घटना के बारे में बताया जाता है। उन्होंने कहा कि अगर व्यक्ति पूर्व सहमति पत्र पर दी गई जानकारी के परिणामों को समझता है तो वह उस पर हस्ताक्षर करता है।

उन्होंने कहा कि बिना हस्ताक्षर किए कोई व्यक्ति क्लीनिकल परीक्षण में हिस्सा नहीं ले सकता है।

उन्होंने कहा कि परीक्षण के दौरान अगर अप्रिय चिकित्सा घटना होती है तो आचार समिति इसका संज्ञान लेती है और 30 दिनों के अंदर घटना के बारे में भारत के औषधि महानियंत्रक (डीजीसीआई) को जानकारी देती है।

डीजीसीआई जांच करती है कि क्या टीका और अप्रिय चिकित्सा घटना के बीच कोई कोई संबंध है और फिर वे अगले चरण की इजाजत देते हैं।

वर्तमान में सभी जांच के बाद एसआईआई टीका का परीक्षण तीसरे चरण में है और सभी जांच के बाद भारत बायोटेक का क्लीनिकल परीक्षण भी तीसरे चरण में है।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

Share Now

\