जरुरी जानकारी | बीते सप्ताह सभी तेल-तिलहन कीमतों में रहा सुधार का रुख

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Information at LatestLY हिन्दी. बीते सप्ताह विदेशी बाजारों में सोयाबीन डीगम और कच्चे पामतेल (सीपीओ) के दाम में आई मजबूती के बीच देश के तेल-तिलहन बाजारों में लगभग सभी तेल-तिलहनों (सरसों, मूंगफली, सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल, पामोलीन दिल्ली एवं एक्स-कांडला तथा बिनौला तेल) के दाम सुधार दर्शाते बंद हुए।

नयी दिल्ली, सात जनवरी बीते सप्ताह विदेशी बाजारों में सोयाबीन डीगम और कच्चे पामतेल (सीपीओ) के दाम में आई मजबूती के बीच देश के तेल-तिलहन बाजारों में लगभग सभी तेल-तिलहनों (सरसों, मूंगफली, सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल, पामोलीन दिल्ली एवं एक्स-कांडला तथा बिनौला तेल) के दाम सुधार दर्शाते बंद हुए।

बाजार सूत्रों ने कहा कि बीते सप्ताह विदेशों में सोयाबीन डीगम तेल का दाम 930-932 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 939-940 डॉलर प्रति टन हो गया। इसी प्रकार मलेशिया में सीपीओ का दाम भी 860 डॉलर से बढ़कर 880 डॉलर प्रति टन हो गया। इन तेलों के भाव मजबूत होने का स्थानीय तेल-तिलहन कीमतों पर भी अनुकूल असर हुआ और सभी खाद्य तेल-तिलहन के दाम मजबूत हो गये।

सूत्रों ने कहा कि किसान पहले से ही सरसों की बिकवाली न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से लगभग 10 प्रतिशत नीचे भाव पर कर रहे थे और वह अधिक नीचे भाव पर अपने उत्पाद भेजने को राजी नहीं हैं। विदेशों में खाद्य तेलों के दाम मजबूत होने के बाद सरसों के दाम में भी मजबूती दिखी। यह सरसों तेल-तिलहन में मजबूती आने का कारण है।

उन्होंने कहा कि इसी प्रकार पिछले साल किसानों को सोयाबीन तिलहन के लिए लगभग 7,000 रुपये क्विंटल का भाव मिल चुका है और वह मौजूदा समय में अपनी फसल एमएसपी के आसपास की कीमत यानी 4,700-4,800 रुपये क्विंटल पर बेचने को राजी नहीं है। इस वजह से मंडियों में सोयाबीन की आवक कम हो रही है। फसल तैयार होने के समय बारिश कम होने से भी सोयाबीन फसल की उत्पादकता मामूली प्रभावित हुई है जिसकी वजह से किसानों का कहना है कि उनकी लागत नहीं निकल रही है। इन कारणों से सोयाबीन तेल -तिलहन में भी सुधार है।

सूत्रों ने कहा कि सीधा खाने की मांग तथा विदेशों में खाद्य तेलों के दाम मजबूत होने के कारण मूंगफली तेल-तिलहन कीमतों में सुधार है। वैसे देखा जाये तो मूंगफली की पेराई करने में पेराई मिलेां को नुकसान है क्योंकि ऊंची कीमत के कारण इसका तेल, सस्ते आयातित तेलों के आगे खप नहीं रहा।

उन्होंने कहा कि मलेशिया के मजबूत रहने और सीपीओ के दाम सुधरने के कारण कच्चे पाम तेल (सीपीओ) और पामोलीन तेल कीमतों में भी सुधार है। सोयाबीन डीगम के दाम बढ़ने के बाद बिनौला तेल में भी मजबूती रही।

पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 90 रुपये के सुधार के साथ 5,365-5,415 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का भाव 200 रुपये बढ़कर 9,850 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 35 और 35 रुपये सुधार के साथ क्रमश: 1,685-1,780 रुपये और 1,685-1,785 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।

समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज का भाव क्रमश: 25-45 रुपये की मजबूती के साथ क्रमश: 4,965-4,995 रुपये प्रति क्विंटल और 4,775-4,815 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

इसी तरह सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल का भाव क्रमश: 300 रुपये, 250 रुपये और 250 रुपये के लाभ के साथ क्रमश: 9,650 रुपये और 9,500 रुपये और 8,050 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तिलहन के दाम 75 रुपये की बढ़त के साथ 6,790-6,865 रुपये क्विंटल पर बंद हुए। मूंगफली गुजरात और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल के भाव भी क्रमश: 220 रुपये और 25 रुपये के लाभ के साथ क्रमश: 16,000 रुपये क्विंटल और 2,380-2,655 रुपये प्रति टिन पर बंद हुए।

मलेशिया में सीपीओ में आई तेजी के बाद समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चा पाम तेल (सीपीओ) 190 रुपये के सुधार के साथ 7,750 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पामोलीन दिल्ली का भाव 100 रुपये की सुधार के साथ 8,900 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला तेल का भाव 145 रुपये के बढ़त के साथ 8,125 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

इस दौरान बिनौला तेल भी 125 रुपये बढ़कर 8,250 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

सूत्रों ने कहा कि देश में कुछ स्थानों पर पेराई मिलों ने अपने बिजली के कनेक्शन कटवाये हैं क्योंकि सस्ते आयातित तेलों के आगे उन्हें पेराई करने में नुकसान है। अधिक लागत होने की वजह से उनके तेल सस्ते आयातित तेलों के आगे खप नहीं रहे जिससे हताश होकर कुछ पेराई मिलों ने अपने कनेक्शन कटवाये हैं ताकि बिजली के वाणिज्यिक शुल्क अदायगी का बोझ उनपर कुछ कम हो। सस्ते आयातित तेलों की मौजूदगी में देशी तिलहन, पेराई के बाद निकला खाद्य तेल बाजार में खपता नहीं। इस छोटी सी बात पर गंभीर होने की जरूरत है क्योंकि आगे आने वाले दिक्कतों का यह सकेत हो सकता है।

सूत्रों का कहना है कि खाद्य तेलों की महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को राशन के दुकानों के जरिये भी खाद्य तेल का वितरण करना चाहिए।

राजेश

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