नयी दिल्ली, 13 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि मंत्री का पद धारण करने से किसी व्यक्ति को जमानत देने के लिए विशेष रूप से विचार का अधिकार नहीं मिल जाता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने पश्चिम बंगाल में नौकरी के बदले नकदी ‘घोटाले’ से संबंधित धन शोधन के एक मामले में पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी को सशर्त जमानत प्रदान करने के दौरान यह टिप्पणी की।
पीठ ने कहा कि निष्पक्षता कानून के शासन की पूर्व शर्त है, जिसमें निर्णय किसी व्यक्ति की स्थिति या प्रभाव के विपरीत मामले के तथ्यात्मक गुण-दोष पर आधारित होते हैं।
पीठ ने कहा कि चटर्जी को एक फरवरी 2025 को रिहा किया जाएगा, बशर्ते कि निचली अदालत शीतकालीन अवकाश से पहले आरोप तय करे और जनवरी 2025 के दूसरे और तीसरे सप्ताह तक गवाहों के बयान दर्ज कर लिए जाएं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि रिहाई के बाद चटर्जी कोई सार्वजनिक पद नहीं संभालेंगे, लेकिन विधायक के रूप में काम कर सकते हैं।
न्यायालय ने चटर्जी की जमानत मंजूर करने के लिए विशेष विचार के अनुरोध वाली उस दलील को खारिज कर दिया कि वह इसलिए राहत के हकदार हैं क्योंकि वह (प्रकरण के) संबंधित समय में मंत्री थे।
पीठ ने कहा, ‘‘इस (जमानत) संदर्भ में, यह दलील कि अपीलकर्ता का मंत्री के रूप में पद उन्हें किसी विशेष विचार का हकदार बनाता है, किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।’’
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