जर्मन फुटबॉल में बढ़ी खेल मनोविज्ञान की अहमियत

जर्मन फुटबॉल महासंघ ने फुटबॉल खिलाड़ियों को मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत बनाने के लिए कई नए कदम उठाए हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मन फुटबॉल महासंघ ने फुटबॉल खिलाड़ियों को मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत बनाने के लिए कई नए कदम उठाए हैं. खेल मनोवैज्ञानिकों के लिए छह महीने का एक पाठ्यक्रम बनाया है और विशेषज्ञों के एक दूसरे से सीखने के लिए रीजनल सेंटर भी.खेल में कोई भी जीत रहा हो, हार रहा हो या खेल रहा हो, जर्मन फुटबॉल में तमाम नैरेटिव्स का श्रेय अक्सर 'कॉप्फजाखे' (Kopfsache) को दिया जाता है- जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘दिमाग का मामला'.

एलीट लेवल के खेलों में करीब 5 फीसदी एथलीट अवसाद से पीड़ित पाए गए हैं, जो कि मोटे तौर पर सामान्य आबादी में अवसादग्रस्त लोगों के अनुपात जैसा ही है. मशहूर जर्मन गोलकीपर रॉबर्ट एनके की साल 2009 में हुई दुखद मौत के बाद से जर्मन फुटबॉल जगत में जैसी मानसिक बीमारियों के बारे में जागरूकता और बढ़ी. ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि जर्मनी में वर्तमान खेल मनोविज्ञान प्रणाली कैसे काम कर रही है?

सितंबर में, जर्मनी के सबसे प्रमुख खेल मनोवैज्ञानिकों में से एक, रेने पाश ने सुझाव दिया कि इस दिशा में पूरी तरह से बदलाव की जरूरत है क्योंकि ‘पुराने विचार पैटर्न और दृष्टिकोण' ने नवाचार के लिए बहुत कम जगह छोड़ी है. हालांकि, इस क्षेत्र के कई अन्य लोगों की राय इससे अलग भी है.

कोलोन स्थित जर्मनी के सबसे प्रसिद्ध खेल विश्वविद्यालय में खेल मनोवैज्ञानिक योहाना बेल्ज ने कोलोन की फुटबॉल अकादमी में काम करने के अपने समय के बारे में सकारात्मक बात की है.

उन्होंने खेल मनोविज्ञान के लिए क्लब के व्यापक दृष्टिकोण पर टिप्पणी करते हुए कहा, "मेरा अनुभव तमाम अकादमियों के साथ काम करने का रहा है जिन्होंने अपने क्षेत्र में काफी कुछ किया है. लेकिन, निश्चित तौर पर उन अकादमियों में यह संभव नहीं है, जहां एक खेल मनोवैज्ञानिक 10 टीमों का प्रभारी है. कुछ लोगों को खुद को आईने में देखने की जरूरत है, लेकिन हमें उन अकादमियों का भी जश्न मनाने की जरूरत है जो इससे भी आगे जाते हैं.”

मानसिक स्वास्थ्य में प्रगति हो रही है

हालांकि ऐसे दूसरे लोग भी हैं जो महसूस करते हैं कि पाश जो बातें कह रहे हैं वह मौजूदा परिप्रेक्ष्य में वास्तविक नहीं लगता.

जर्मन फुटबॉल महासंघ (डीएफबी) में मनोविज्ञान के समन्वयक क्रिस्टोफ हेर कहते हैं, "इस समय जर्मन फुटबॉल में खेल मनोविज्ञान के लिए एक और समस्या यह है कि उच्च प्रदर्शन के संदर्भ में मनोवैज्ञानिक कार्य की अभी भी एक रूढ़िवादी छवि है. इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम अपने भरोसेमंद काम को कैसे प्रचारित करते हैं. यह हमेशा अपने बारे में शोर मचाने के संदर्भ में नहीं है, यह फुटबॉल में स्थापित हमारे अनुभवी सहयोगियों को अधिक करीब से सुनने के बारे में है. और मैं कभी-कभी बड़े बयान कम और नैतिक व्यवहार सहयोग ज्यादा देखना पसंद करूंगा. तब खेल मनोविज्ञान की छवि इतनी विकृत नहीं होगी.”

एक और बात अक्सर भुला दी जाती है कि डीएफबी द्वारा अकादमियों में खेल मनोवैज्ञानिकों को अनिवार्य किए हुए अभी सिर्फ पांच साल ही हुए हैं, और इस दौरान दुनिया के साथ साथ जर्मनी ने भी एक वैश्विक महामारी का भी सामना किया है. हेर कहते हैं कि इसे ध्यान में रखते हुए, प्रगति ठोस रही है. वो कहते हैं कि अकादमी मालिकों को खेल मनोविज्ञान के बारे में बात करते हुए हम सुन रहे हैं, जिनके शब्दों के पीछे एक व्यापक अवधारणा है.

स्वाभाविक रूप से, पुराने जमाने के कुछ दृष्टिकोण अभी भी बने हुए हैं, लेकिन हेर का मानना ​​​​है कि जर्मन फुटबॉल में खेल मनोविज्ञान अब जो सबसे अच्छी चीजें कर सकता है, वह है खेल में निर्णय लेने वालों के साथ अधिक शामिल होना.

वह कहते हैं, "हमारे पास एकमात्र सही सत्य नहीं है, बल्कि हम प्रशिक्षकों और निर्णय लेने वालों के साथ प्रशिक्षण और आगे की शिक्षा के माध्यम से बातचीत को आगे बढ़ाना चाहते हैं. फुटबॉल प्रणाली के भीतर खेल मनोवैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञता की भागीदारी युवा लोगों के स्वस्थ विकास के लिए जरूरी है. खेल मनोविज्ञान के चल रहे विकास के दौरान इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. कुछ क्लब इस विषय को अतिरिक्त आधुनिक कोच डेवलपर्स के साथ मिलकर पूरा कर रहे हैं.”

खेल मनोविज्ञान की बढ़ती मांग

यह क्षेत्र लंबे समय से फायर फाइटर की भूमिका से कहीं आगे तक विकसित हो चुका है, लेकिन जर्मन अकादमियां अभी तक उस मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं. इसकी वजह पैसे की कमी और जानकारी की कमी दोनों ही हो सकती है.

लीवरकुसेन में दो अकादमी खेल मनोवैज्ञानिक हैं. टिमो हेन्ज उन्हीं में से एक हैं और उन्होंने जर्मनी के कुछ सर्वश्रेष्ठ युवा खिलाड़ियों के साथ काम किया है. हेन्ज खुद एक पूर्व खिलाड़ी हैं. उनका मानना है कि बदलाव हो जरूर रहा है, भले ही बहुत तेज गति से न हो रहा हो.

डीडब्ल्यू से बातचीत में हेन्ज कहते हैं, "फुटबॉल से संबंधित कई दूसरे पेशेवर क्षेत्रों की तुलना में, इस क्षेत्र में हम अभी भी अपेक्षाकृत शुरुआती चरण में हैं. हालांकि, खेल मनोविज्ञान की मात्रा और गुणवत्ता हर सीजन में बढ़ रही है और मुझे विश्वास है कि यह प्रवृत्ति भविष्य में भी जारी रहेगी. इसकी जरूरत है और क्लबों और प्रबंधकों ने भी इस जरूरत को महसूस किया है. किसी खिलाड़ी के प्रदर्शन में तकनीक या रणनीति जैसे अन्य क्षेत्रों की तुलना में मानसिक कौशल निश्चित रूप से कहीं बड़ी भूमिका निभाते हैं.”

वो कहते हैं, "अंत में, यह खिलाड़ियों के बारे में है. यह एक ऐसी जगह बनाने के बारे में है जिसमें फुटबॉल के कठिन व्यवसाय के बावजूद उनके मानसिक स्वास्थ्य को सर्वोत्तम संभव तरीके से सुरक्षित रखा जा सके. यह उन्हें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समग्र व्यक्तिगत विकास के लिए व्यक्तिगत समाधानों के करीब लाने के बारे में है. और, निश्चित तौर पर, उन्हें ऐसे तरीके दिखाना जिससे वे मानसिक रणनीतियों के माध्यम से अपने प्रदर्शन में सुधार कर सकें.”

निवेश करें, विस्तार करें और विशेषज्ञता हासिल करें

योहाना बेल्ज बताती हैं कि ज्यादा से ज्यादा खेल मनोवैज्ञानिकों को नियोजित करना नितांत आवश्यक है, खासकर, महिला युवा फुटबॉल में. लेकिन मनोवैज्ञानिक सुरक्षा में सुधार के लिए माहौल में बदलाव भी आवश्यक है. एक और सुझाव आया है और वो है शैक्षिक सुधार है. हालांकि बेल्ज ये महसूस करती हैं कि पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिए 100 घंटों की पढ़ाई जरूरी है और इसके माध्यम से उन्हें और भी बहुत कुछ सीखने के अवसर मिले.

हालांकि, पढ़ाई के अंत में उन्होंने अपनी क्षमताओं में कमी देखी और इसलिए बातचीत की तकनीक सीखने के लक्ष्य के साथ एक और कोर्स पूरा किया ताकि नौकरी के लिए खुद को और सक्षम बना सकें.

लेकिन ऐसा लगता है कि जर्मन फुटबॉल महासंघ ने इनमें से कुछ कमियों को पहचाना है. सबसे पहले तो खेल की अनूठी मांगों को ध्यान में रखते हुए फुटबॉल में काम करने वाले खेल मनोवैज्ञानिकों को छह महीने का एक विशिष्ट पाठ्यक्रम प्रदान किया है. और दूसरा, छह क्षेत्रीय केंद्रों की शुरुआत की है ताकि विभिन्न अकादमियों के खेल मनोवैज्ञानिक मिल सकें और विचारों का आदान-प्रदान कर सकें.

जर्मन फुटबॉल में खेल मनोविज्ञान ने कम समय में ही काफी प्रगति की है. किसी भी लगातार विकसित होने वाले क्षेत्र की तरह अब इसे बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है.

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