जलवायु सम्मेलन से नदारद हैं सबसे बड़े प्रदूषक

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन, कॉप29 की शुरुआत उत्सर्जन में कटौती की अपीलों के साथ हुई, लेकिन सबसे ज्यादा प्रदूषण करने वाले देश इस सम्मेलन से नदारद हें.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन, कॉप29 की शुरुआत उत्सर्जन में कटौती की अपीलों के साथ हुई, लेकिन सबसे ज्यादा प्रदूषण करने वाले देश इस सम्मेलन से नदारद हें. इस कारण छोटे देश और जलवायु समर्थक चिंतित हैं.संयुक्त राष्ट्र का वार्षिक जलवायु सम्मेलन कॉप29, मंगलवार को अजरबैजान की राजधानी बाकू में शुरू हुआ, जहां दुनियाभर के नेता जलवायु संकट के खिलाफ कदम उठाने पर चर्चा करने के लिए जमा हुए. हालांकि, इस साल का सम्मेलन इस बात के लिए चर्चित है कि कई प्रमुख प्रदूषक देशों के नेता शामिल नहीं हुए.

दुनिया के चार सबसे बड़े प्रदूषक देश - चीन, अमेरिका, भारत और इंडोनेशिया के नेता इस बैठक से नदारद हैं. ये चार देश वैश्विक उत्सर्जन के 70 फीसदी से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं.

बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जैंडर लुकाशेंको ने कई लोगों की निराशा को जाहिर करते हुए कहा, "जो लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं, वे यहां नहीं हैं. इसमें गर्व करने जैसा कुछ नहीं है."

उनके बयान से सम्मेलन में मौजूद लोगों के बीच गहरी चिंता दिखी. यह चिंता और भी गंभीर है क्योंकि ताजा शोध बताते हैं कि इस साल वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है. ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के डेटा के अनुसार, तेल, गैस और कोयले से उत्सर्जन 2024 में 0.8 फीसदी बढ़कर 37.4 अरब टन तक पहुंच गया है. 2023 में भी जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जन ने नया रिकॉर्ड बनाया था.

बढ़ते तापमान और नए लक्ष्यों पर चर्चा

संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने सम्मेलन में एक गंभीर स्थिति पेश करते हुए इसे "जलवायु विनाश का मास्टरक्लास" कहा, जिसमें इस साल को अब तक का सबसे गर्म साल माना जा रहा है. हालांकि, गुटेरेश ने उम्मीद भी जताई कि "स्वच्छ ऊर्जा क्रांति" अब रुकने वाली नहीं है. उन्होंने बताया कि स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन 2016 में 180 गीगावाट से बढ़कर आज 600 गीगावाट तक पहुंच गया है. साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में भी वृद्धि हुई है.

ब्रिटिश प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर इस सम्मेलन में उपस्थित प्रमुख नेताओं में से एक थे. उन्होंने 2035 तक ब्रिटेन के उत्सर्जन को 1990 के स्तर से 81 फीसदी तक कम करने का एक नया लक्ष्य घोषित किया है. यह लक्ष्य पेरिस समझौते के तहत 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान सीमा को हासिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है.

पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था मर्सी कॉर्प्स की वैश्विक जलवायु नीति प्रमुख डैबी हिलियर ने ब्रिटेन के इन लक्ष्यों की सराहना की और कहा कि इससे अन्य देशों के लिए एक मजबूत उदाहरण पेश हुआ है. एक अन्य संस्था ई3जी के निक मेबी ने भी अन्य देशों से इसी प्रकार के महत्वाकांक्षी लक्ष्य अपनाने की अपील की.

जलवायु वित्त, मुख्य मुद्दा

कॉप29 का मुख्य ध्यान जलवायु वित्त पर है, विशेष रूप से धनी देशों द्वारा गरीब देशों की जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में सहायता करने पर. वित्तीय सहयोग की राशि 100 अरब डॉलर से लेकर 13 खरब डॉलर तक सालाना हो सकती है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुटेरेश ने इसे लेकर कहा, "विकासशील देशों को यहां से खाली हाथ नहीं लौटना चाहिए."

यूनियन ऑफ कंसर्न्ड साइंटिस्ट्स की रेचल क्लिट्स ने भी कहा, "धनी देशों द्वारा इस मुद्दे को छोटा दिखाने की कोशिश कोई नई बात नहीं है."

विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक सहित 11 बहुपक्षीय विकास बैंकों के समूह ने जलवायु वित्तपोषण के लिए सालाना 120 अरब डॉलर देने की घोषणा की है. हालांकि, जी77 और चीन जैसे विकासशील देशों के समूह ने 13 खरब डॉलर वार्षिक जलवायु वित्त की मांग की है.

छोटे देशों की अपील

दुनिया के शीर्ष कार्बन उत्सर्जकों की गैरहाजरी में कुछ सबसे अधिक जलवायु जोखिम वाले देशों के नेताओं ने सम्मेलन में अपनी आवाज बुलंद की. मार्शल द्वीप की राष्ट्रपति हिल्डा हाइने ने छोटे द्वीपीय देशों के हौसले को दिखाते हुए कहा, "हमारे पूर्वजों ने छड़ी, नारियल की पत्तियों और शंख से लहरों की दिशा बदली है. लहरों की दिशा कब बदलती है, यह समझ हमारे खून में है. और जलवायु के मुद्दे पर, आज लहरों की दिशा बदल रही है.”

बारबाडोस की प्रधानमंत्री मिया एमोर मोटली ने भी जलवायु परिवर्तन के खतरे पर बात की और कहा, "ये चरम मौसमी घटनाएं जो दुनिया हर दिन देख रही है, यह संकेत देती हैं कि मानवता और पृथ्वी एक विनाश की ओर बढ़ रहे हैं."

स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज ने अपने देश में आई हालिया बाढ़ का उदाहरण देते हुए कहा, "हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि प्राकृतिक आपदाएं न बढ़ें. आइए वही करें जो हमने सात साल पहले पेरिस में करने का वादा किया था.”

जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता की चुनौती

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट द्वारा पेश डेटा ने जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता की बढ़ती चुनौती को उजागर किया. हालांकि, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों और इलेक्ट्रिक वाहनों में वृद्धि हो रही है, लेकिन जीवाश्म ईंधन से होने वाला कार्बन उत्सर्जन अब भी बढ़ रहा है.

जलवायु शोधकर्ता ग्लेन पीटर्स ने कहा, "नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहन बढ़ रहे हैं, लेकिन फिर भी यह पर्याप्त नहीं है.” उन्होंने बताया कि अगले कुछ सालों में उत्सर्जन का डाटा देखना महत्वपूर्ण होगा.

सम्मेलन का आयोजक अजरबैजान खुद एक बड़ा तेल उत्पादक देश है. उसने अपनी ऊर्जा नीतियों का बचाव करते हुए कहा कि तेल और गैस "भगवान का उपहार" हैं. राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने "पेट्रोस्टेट" शब्द को अनुचित बताया, जबकि ग्रीनफेथ के रेवरेन्ड फ्लेचर हार्पर ने जीवाश्म ईंधन को "लाखों लोगों और पृथ्वी के लिए विनाश का मार्ग” बताया.

वीके/सीके (एपी, रॉयटर्स)

Share Now

\