देश की खबरें | प्रौद्योगिकी दोधारी तलवार, न्याय प्रणाली में तकनीक का संतुलित उपयोग जरूरी: सीजेआई

नयी दिल्ली, 10 जून भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी. आर. गवई ने प्रौद्योगिकी की “दोधारी तलवार” (सकारात्मक एवं नकारात्मक) प्रकृति को रेखांकित करते हुए कहा कि इस तरह के नवाचारों से न्यायिक कार्यों में वृद्धि होनी चाहिए, न कि इसे निर्णय लेने की प्रक्रिया का स्थान लेना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश ने नौ जून को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में "न्याय तक पहुंच में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी की भूमिका" विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भारत जैसे विशाल, विविध और जटिल देश में न्याय तक पहुंच बढ़ाने में प्रौद्योगिकी की परिवर्तनकारी शक्ति पर जोर दिया।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि भारत में न्यायपालिका ने न्याय को अधिक सुलभ बनाने के लिए प्रौद्योगिकी को तत्परता से एकीकृत किया है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि प्रौद्योगिकी एक दोधारी तलवार की तरह काम कर सकती है, जिससे अभूतपूर्व विभाजन भी हो सकता है। एक प्राथमिक चिंता डिजिटल विभाजन है, जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी, उपकरणों और डिजिटल साक्षरता तक असमान पहुंच के कारण हाशिये पर पड़े समुदाय वंचित हो सकते हैं, जो पहले से ही न्याय के लिए बाधाओं का सामना कर रहे हैं। प्रौद्योगिकी से निष्पक्ष परिणाम सुनिश्चित हो, इसके लिए पहुंच और समावेशन को इसके डिजाइन का आधार होना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘शासन के ऐसे ढांचे विकसित किए जाने चाहिए जो मानवीय निगरानी, एल्गोरिदम पारदर्शिता और प्रौद्योगिकी-मध्यस्थ निर्णयों के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करें।’’

सीजेआई ने कहा, ‘‘आगे बढ़ने के लिए मूलभूत सिद्धांतों का पालन करना जरूरी है। तकनीक को न्यायिक कार्यों, विशेष रूप से तर्कसंगत निर्णय लेने और व्यक्तिगत मामले के मूल्यांकन का स्थान लेने के बजाय इसमें वृद्धि करनी चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्वचालित प्रणालियां न्यायिक निर्णय को बदलने के बजाय उसका समर्थन करें।’’

उन्होंने डिजिटल नवाचार पर आधारित एक अधिक समावेशी और उत्तरदायी कानूनी प्रणाली के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।

उन्होंने कहा, ‘‘न्याय तक पहुंच किसी भी निष्पक्ष और न्यायसंगत कानूनी प्रणाली की रीढ़ है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी व्यक्ति, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, भौगोलिक स्थिति या व्यक्तिगत परिस्थितियां कुछ भी हों, कानूनी प्रक्रियाओं में प्रभावी रूप से भाग ले सकें और उनसे लाभ उठा सकें।’’

उन्होंने कहा कि ऐसे देश में जहां दो तिहाई से अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और 121 से अधिक एं मातृ के रूप में बोली जाती हैं, वहां अदालतों तक न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित करना संवैधानिक दायित्व और नैतिक अनिवार्यता दोनों है।

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