नयी दिल्ली, 18 मार्च : कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने शनिवार को कार्यपालिका और न्यायपालिका समेत विभिन्न संस्थाओं की पथप्रदर्शक संवैधानिक ‘लक्ष्मण रेखा’ की ओर ध्यान दिलाया और हैरानी जताते हुए प्रश्न किया यदि कि न्यायाधीश प्रशासनिक नियुक्तियों का हिस्सा बनते हैं तो न्यायिक कार्यों को कौन करेगा. रीजीजू ने उच्चतम न्यायालय के हाल में दिए गए एक निर्देश के बारे में पूछे गये सवाल के जवाब में यह बात कही. उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह नया कानून बनने तक मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और अन्य चुनाव आयुक्तों का चयन करने के लिए प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता की सदस्यता वाली एक समिति का गठन करे.
मंत्री ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में कहा, ‘‘ चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया संविधान में दी गई है. संसद को एक कानून बनाना है जिसके अनुरूप नियुक्ति की जानी है. मैं मानता हूं कि इसके लिए संसद में कोई कानून नहीं है, यहां एक रिक्तता है.’’ रीजीजू ने कहा कि वह उच्चतम न्यायालय के निर्णय की आलोचना नहीं कर रहे हैं और ना ही इसके ‘परिणामों’ के बारे में बात कर रहे हैं. यह भी पढ़ें : बीएसएफ प्रमुख ने बीजीबी के साथ प्रभावी सीमा प्रबंधन पर चर्चा की
मंत्री का मानना है कि यदि न्यायाधीश प्रशासिक कार्यों में लिप्त होते हैं, तो उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ता है. रीजीजू ने कहा, ‘‘मान लीजिए कि आप प्रधान न्यायाधीश या एक न्यायाधीश हैं. आप एक प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं जिस पर सवाल उठेंगे. फिर यह मामला आपकी अदालत में आयेगा. क्या आप एक ऐसे मामले में फैसला कर सकते हैं जिसका आप हिस्सा हैं? यहां न्याय के मूल सिद्धांत से समझौता करना पड़ेगा. इसलिए संविधान में ‘लक्ष्मण रेखा’ बहुत स्पष्ट है.’’