नयी दिल्ली, 29 जुलाई उच्चतम न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो गए और उन्होंने बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों को उनके ‘‘प्यार और स्नेह’’ के लिए धन्यवाद दिया।
न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा, ‘‘अपनी विदाई के शब्दों के रूप में आप सभी को प्यार और स्नेह के लिए मैं केवल धन्यवाद कहना चाहूंगा। बहुत-बहुत धन्यवाद। ईश्वर आपका भला करे।’’
वह प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण और दो अन्य न्यायाधीशों के साथ बैठे थे। न्यायमूर्ति खानविलकर को 13 मई, 2016 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। उन्होंने कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए और वह उन पीठों का हिस्सा थे, जिन्होंने अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण फैसले दिए।
‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन’ (एससीबीए) के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने शीर्ष अदालत के वकील और उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति खानविलकर के साथ अपने जुड़ाव को याद किया।
सिंह ने कहा, ‘‘जब कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्त होते हैं तो हमारे लिए यह हमेशा मुश्किल होता है। यह तब और मुश्किल होता है, जब कोई न्यायाधीश, जो हमारा हिस्सा रहे हैं, सेवानिवृत्त हो जाते हैं। वह हमारे एक सहयोगी के रूप में वहां रहे हैं। इस बार के सदस्य के रूप में, हमारे चैंबर उच्चतम न्यायालय में एक ही गलियारे में थे। हमने उन्हें उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनते देखा और फिर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में यहां वापस आए।’’
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कोरोना वायरस संक्रमण के कारण ऑनलाइन माध्यम से कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि अटॉर्नी जनरल भी कोविड-19 से संक्रमित हैं और इसलिए वह न्यायमूर्ति खानविलकर के संबंध में अपने विचार रखेंगे।
विधि अधिकारी ने कहा, ‘‘हम वास्तव में न्यायमूर्ति खानविलकर को याद करेंगे। हम उनके चेहरे की मुस्कान को याद रखेंगे। मेरी इस बात से सभी सहमत होंगे कि याचिका खारिज करते हुए भी चेहरे पर मुस्कान के साथ वह ऐसा करते थे और हमने कभी कटुता के साथ अदालत कक्ष नहीं छोड़ा।’’
इस मौके पर हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी समेत कई वरिष्ठ अधिवक्ता मौजूद रहे।
एससीबीए शाम को न्यायमूर्ति खानविलकर को औपचारिक रूप से विदाई देने के लिए एक समारोह आयोजित करेगा।
न्यायमूर्ति खानविलकर ‘आधार’ मामले और 2002 के दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और 63 अन्य को विशेष जांच दल (एसआईटी) की क्लीन चिट को बरकरार रखने सहित कई महत्वपूर्ण फैसलों का हिस्सा रहे हैं।
वह उस पीठ का भी हिस्सा रहे जिसने धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तारी, संपत्ति की कुर्की और जब्ती से संबंधित प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारों को बरकरार रखा था।
तीस जुलाई, 1957 को पुणे में जन्मे न्यायमूर्ति खानविलकर ने मुंबई के एक लॉ कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई की थी।
उन्हें फरवरी 1982 में एक वकील के रूप में नामांकित किया गया था और बाद में उन्हें 29 मार्च, 2000 को बम्बई उच्च न्यायालय के एक अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।
उन्हें चार अप्रैल, 2013 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और बाद में 24 नवंबर, 2013 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
न्यायमूर्ति खानविलकर को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और उन्होंने 13 मई, 2016 को पदभार ग्रहण किया था।
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