नयी दिल्ली, 19 जून सामान्य मानसून से बंपर कृषि उत्पादन और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी से महंगाई के मोर्चे पर राहत मिल सकती है। अर्थशास्त्रियों ने यह राय जताई है।
खाद्य वस्तुओं और ईंधन के महंगा होने से मुद्रास्फीति की दर कई वर्षों के उच्चतम स्तर पर है।
हालांकि, सरकार पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क को और कम करने जैसे राजकोषीय उपायों से भी मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर सकती है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कीमतों को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति पर जोर दिया जाएगा।
खुदरा मुद्रास्फीति मई में सालाना आधार पर 7.04 प्रतिशत बढ़ी, जबकि अप्रैल में यह आंकड़ा 7.79 प्रतिशत था। दूसरी ओर थोक मुद्रास्फीति मई में बढ़कर 15.88 प्रतिशत के रिकॉर्ड उच्चस्तर पर पहुंच गई।
मूल्यवृद्धि का तीन-चौथाई हिस्सा खाद्य पदार्थों से आ रहा है और सामान्य मानसून के चलते इसमें राहत मिलने की उम्मीद है।
उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक पहले ही प्रमुख नीतिगत दर रेपो में 0.90 प्रतिशत की वृद्धि कर चुका है और आने वाले समय में इसमें 0.80 प्रतिशत की बढ़ोतरी और हो सकती है।
खाद्य तेल की कीमतों में प्रमुख कंपनियों ने पहले ही कमी की घोषणा की है।
एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स के अर्थशास्त्री विश्रुत राणा ने कहा कि वैश्विक स्तर पर जिंस कीमतें मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी के लिए एक प्रमुख प्रेरक कारक हैं और आगे खाद्य कीमतें मानसून पर निर्भर करेंगी। बेहतर मानसून से कृषि उत्पादन बढ़ेगा और कीमतों पर लगाम लगेगी।
राणा ने ईमेल पर पीटीआई- को बताया, ‘‘कम उत्पाद शुल्क, कम मूल्यवर्धित कर, या कृषि उपज पर प्रत्यक्ष सब्सिडी जैसे कुछ अतिरिक्त नीतिगत विकल्प हैं, लेकिन फिलहाल मौद्रिक नीति पर जोर दिए जाने की संभावना है। हमें आगे नीतिगत दरों में 0.75 प्रतिशत की और वृद्धि की उम्मीद है।’’
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