पुरी (ओडिशा), सात जुलाई भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा का पारंपरिक ‘पहांडी’ अनुष्ठान रविवार पूर्वाह्न करीब 11 बजे शुरू हुआ।
जब भगवान सुदर्शन को सबसे पहले देवी सुभद्रा के रथ ‘दर्पदलन’ तक ले जाया गया तो पुरी मंदिर के सिंहद्वार पर घंटियों, शंखों और मंजीरों की ध्वनियों के बीच श्रद्धालुओं ने ‘जय जगन्नाथ’ के जयकारे लगाए।
भगवान सुदर्शन के पीछे-पीछे भगवान बलभद्र को उनके ‘तालध्वज रथ’ पर ले जाया गया। सेवक भगवान जगन्नाथ और भगवान बलभद्र की बहन देवी सुभद्रा को विशेष शोभा यात्रा निकालकर ‘दर्पदलन’ रथ तक लाए।
अंत में, भगवान जगन्नाथ को घंटियों की ध्वनि के बीच एक पारंपरिक शोभा यात्रा निकालकर ‘नंदीघोष’ रथ की ओर ले जाया जाएगा।
भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को रत्न जड़ित सिंहासन से उतारकर 22 सीढ़ियों (बैसी पहाचा) के माध्यम से सिंह द्वार से होकर एक विस्तृत शाही अनुष्ठान ‘पहांडी’ के जरिए मंदिर से बाहर लाया गया।
मंदिर के गर्भगृह से मुख्य देवताओं को बाहर लाने से पहले ‘मंगला आरती’ और ‘मैलम’ जैसे कई पारंपरिक अनुष्ठान आयोजित किए गए।
तीनों भव्य रथ अब मंदिर के सिंहद्वार के सामने गुंडिचा मंदिर की ओर पूर्व की ओर मुख करके खड़े हैं।
निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, गजपति दिव्यसिंह देब चार बजे तक रथों का ‘छेरा पहरा’ करेंगे। रथों पर लकड़ी के घोड़े लगाने के बाद उन्हें खींचने का काम शाम पांच बजे से शुरू होगा।
भगवान बलभद्र तालध्वज पर सवार होकर रथ यात्रा का नेतृत्व करेंगे। उनकी बहन देवी सुभद्रा उनके पीछे दर्पदलन में होंगी और आखिर में भगवान जगन्नाथ नंदीघोष पर सवार होकर यात्रा करेंगे।
रविवार को भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा में शामिल होने के लिए तीर्थ नगरी पुरी में लाखों श्रद्धालु उमड़े। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी रथ यात्रा में शामिल होंगी। यह 53 साल बाद दो दिवसीय यात्रा होगी।
ग्रह-नक्षत्रों की गणना के अनुसार, इस साल दो-दिवसीय यात्रा आयोजित की गई है। आखिरी बार 1971 में दो-दिवसीय यात्रा का आयोजन किया गया था।
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