
गुवाहाटी, 18 फरवरी असम लोक सेवा आयोग (एपीएससी) में राकेश पॉल को पहले सदस्य और बाद में अध्यक्ष नियुक्त करने में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई की भूमिका जांच के घेरे में है। ‘नौकरी के बदले नकदी’ घोटाले की जांच रिपोर्ट में इस संबंध में सवाल खड़े किए गए हैं।
पॉल के कार्यकाल के दौरान, सिविल सेवा परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं उजागर की गई हैं।
एक सदस्यीय न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बीके शर्मा आयोग ने पॉल की नियुक्ति प्रक्रिया को ‘‘भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला’’ बताया। आयोग ने 2013 और 2014 की संयुक्त प्रतियोगी परीक्षाओं (सीसीई) में विसंगतियों की अलग-अलग जांच की।
दोनों रिपोर्ट सोमवार को विधानसभा में पेश की गईं।
‘नौकरी के बदले नकदी’ घोटाला 2016 में उजागार हुआ था जिसमें एपीएससी भी लपटे में आया। इसके बाद पॉल और 50 से अधिक सिविल तथा पुलिस अधिकारियों सहित लगभग 70 लोगों को गिरफ्तार किया गया।
पॉल को 2008 में एपीएससी का सदस्य नियुक्त किया गया था और 2013 में वह अध्यक्ष बने। पॉल 2016 में गिरफ्तार होने तक इस पद पर बने रहे।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अपने कार्यकाल के दौरान पॉल ने 200 से अधिक भर्तियों की निगरानी की जिससे अन्य भर्तियों में भी अनियमितताओं को लेकर शंका पैदा हो गई।
रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि पॉल ने छह सितंबर 2008 को मुख्यमंत्री आवेदन प्रस्तुत किया था और एक अकेले आवेदन के आधार पर एपीएससी में उनकी नियुक्ति कर दी गई। इसमें कहा गया कि बिना किसी औपचारिक चयन प्रक्रिया या पृष्ठभूमि सत्यापन के उनकी नियुक्ति कर दी गई।
रिपोर्ट में बताया कि उनकी नियुक्ति की फाइल पर तेजी से काम किया गया और प्रस्ताव 19 सितंबर 2008 को राज्यपाल के पास पहुंचा, जिसके बाद 29 सितंबर को मुख्यमंत्री ने अंतिम मंजूरी दी। अगले दिन 30 सितंबर को उनकी नियुक्ति की अधिसूचना जारी कर दी गई।
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) शर्मा आयोग ने कहा, ‘‘संबंधित आपराधिक मामले के रिकॉर्ड के अवलोकन से पता चलता है कि पॉल और असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री असम के बीच कथित तौर पर घनिष्ठता थी और दोनों सत्संग विहार में मंच साझा करते थे।’’
समिति ने कहा कि सदस्य के रूप में पॉल के पांच वर्ष के कार्यकाल के बाद ‘‘उसी तरीके को अपनाकर’’ अध्यक्ष पद के लिए उनकी सिफारिश की गई थी।
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