देश की खबरें | पाकिस्तान के समर्थन में नारे: नेकां नेता मोहम्मद अकबर लोन ने न्यायालय में हलफनामा दाखिल किया
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के नेता मोहम्मद अकबर लोन ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल कर लोकसभा सदस्य के तौर पर ली गयी अपनी शपथ को दोहराते हुए कहा कि वह संविधान का संरक्षण और देश की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करेंगे।
नयी दिल्ली, पांच सितंबर नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के नेता मोहम्मद अकबर लोन ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल कर लोकसभा सदस्य के तौर पर ली गयी अपनी शपथ को दोहराते हुए कहा कि वह संविधान का संरक्षण और देश की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करेंगे।
उनके इस शपथ पत्र से नाराज केंद्र ने दावा किया कि यह राष्ट्र का अपमान है।
पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा 16 दिनों की लंबी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखे जाने के एक दिन बाद यह घटनाक्रम हुआ।
सेामवार को सुनवाई के दौरान उस वक्त एक बड़ा विवाद पैदा हो गया, जब न्यायालय को बताया गया कि लोन ने 2018 में जम्मू कश्मीर विधानसभा में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाये थे।
इस पर, शीर्ष न्यायालय ने नेकां सांसद को भारत के संविधान के प्रति निष्ठा रखने की शपथ लेते और देश की संप्रभुता को बेशर्त स्वीकार करते हुए एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि लोन के हलफनामे में यह पढ़ा जाना चाहिए था...‘‘कि मैं आतंकवाद और अलगाववादी गतिविधि का समर्थन नहीं करता।’’
मेहता ने कहा, ‘‘यह (हलफनामा) राष्ट्र का अपमान करने जैसा है।’’
पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल हैं।
न्यायालय ने कहा कि यह लोन के हलफनामे में कही गई बात की पड़ताल करेगा।
मेहता ने कहा कि लोन के हलफनामे में कोई पश्चाताप नहीं किया गया है और इसमें कहा गया है, ‘‘मैं भारत संघ का एक जिम्मेदार और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक हूं। मैंने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस न्यायालय का रुख करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल किया है।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘संविधान का संरक्षण करने और भारत की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने की संसद सदस्य के तौर पर ली गयी शपथ को मैं दोहराता हूं।’’
विधि अधिकारी ने हलफनामे पर आपत्ति जताते हुए पीठ से उस बात पर गौर करने को कहा जो इसमें लिखा हुआ नहीं है।
वहीं,लोन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि मंगलवार की सुनवाई के अंतिम चरण में न्यायालय को एक पन्ने का हलफनामा सौंपा गया है।
लोन, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाले मुख्य याचिकाकर्ता हैं।
इससे पहले, सुनवाई शुरू होने पर मेहता ने लोन के कई कथित बयान पढ़े और दावा किया कि नेकां नेता ने भारत का उल्लेख किसी विदेशी मुल्क के रूप में किया। इसलिए वह न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि वह लोन को माफी मांगने कहे और जन सभाओं में दिये गये अपने बयान वापस लें।
अनुच्छेद वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने प्रावधान (अनुच्छेद 370) को निरस्त करने को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से कहा, ‘‘वे कह रहे हैं कि हम अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। क्या अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ याचिका दायर करना अलगाववादी एजेंडा है? मुझे इस पर कड़ी आपत्ति है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘भारत सरकार यह रुख अपना रही है। क्या इसका मतलब यह है कि हम सभी यहां अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं?’’
इस पर प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने हस्तक्षेप किया और उन्हें शांत करने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है। कोई भी ऐसा नहीं कह सकता कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करना अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘संविधान के दायरे के भीतर नागरिकों की शिकायतों को दूर करने के लिए अदालतों तक पहुंच अपने आप में एक संवैधानिक अधिकार है और उस अधिकार का इस्तेमाल करने वाले किसी भी व्यक्ति को इस आधार पर मना नहीं किया जा सकता कि वह इस एजेंडे या उस एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है।’’
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)