नयी दिल्ली, 25 नवंबर आवक बढ़ने के बीच मांग कमजोर रहने से सोमवार को देश के प्रमुख बाजारों में मूंगफली तेल-तिलहन के दाम धराशायी हो गये। जबकि आयातित तेलों के दाम मजबूत होने तथा स्थानीय तेल-तिलहनों पर इसका असर होने से सरसों, सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल के दाम मजबूती दर्शाते बंद हुए।
बाजार सूत्रों ने कहा कि देश के वायदा कारोबार में सट्टेबाजों का बोलबाला दिखता है क्योंकि किसानों से उनकी उपज को हासिल करने के मकसद से वायदा कारोबार में बिनौला खल के दिसंबर अनुबंध का दाम जो पिछले शुक्रवार को 2,704 रुपये क्विंटल था, वह आज घटाकर 2,677 रुपये कर दिया गया। इसका असर बाकी तेल-तिलहन और खल पर भी आता है और सबसे बड़ी बात कि इस तरह की सट्टेबाजी से बाजार की कारोबारी धारणा खराब होती है जिससे तेल-तिलहन उद्योग के सभी अंशधारक प्रभावित होते हैं।
सूत्रों ने कहा कि आज इस बात की ओर ध्यान देना होगा कि सरकार के द्वारा एमएसपी में वृद्धि किये जाने के बावजूद हाजिर बाजार में मूंगफली एमएसपी से 12-14 प्रतिशत नीचे दाम पर, सोयाबीन 10-12 प्रतिशत नीचे दाम पर और सूरजमुखी एमएसपी से लगभग 25 प्रतिशत नीचे दाम पर कैसे बिक रहा है?
यही कारण है कि पिछले लगभग दो दशक में देश में तेल-तिलहन उत्पादन बढ़ने के बजाय घटता ही चला गया और आयात पर निर्भरता बढ़ने लगी। जब-जब दाम अच्छे मिले हैं, किसानों ने तिलहनों का उत्पादन बढ़ाया है। अब जरूरत इस बात की भी है कि देशी तेल-तिलहनों का बाजार बनाने की ओर प्रमुखता से ध्यान दिया जाये नहीं तो सरकारी खरीद करना या एमएसपी बढ़ाना कोई खास असर नहीं डाल पायेगा। इन तात्कालिक समाधान की जगह हमें दीर्घकालिक समाधान की ओर कदम बढ़ाना होगा ताकि आयात पर निर्भरता कम हो सके और देश को विदेशी मुद्रा की बचत हो सके। तभी हम तेल-तिलहन उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर हो सकते हैं।
सूत्रों ने कहा कि वायदा कारोबार होने के बीच कपास का उत्पादन घटा है। वर्ष 2023-24 में कपास का उत्पादन लगभग 325 लाख गांठ का हुआ था जो वर्ष 2024-25 में घटकर 303 लाख गांठ रह गया। मौजूदा स्थिति में देखें तो बिनौला खल का इस साल सितंबर में 3,800 रुपये क्विंटल का दाम वायदा कारोबार में था। अक्टूबर में कपास का समर्थन मूल्य 501 रुपये बढ़ाकर 7,021-7,521 रुपये क्विंटल किया गया तो दिसंबर अनुबंध का भाव पिछले साल से भी काफी कम यानी 2,677 रुपये क्विंटल कैसे रह गया? यह दाम तो हाजिर दाम से लगभग 30 प्रतिशत कम है। अब अगर खल इतना सस्ता है तो फिर तो दूध की महंगाई क्यों बढ़ रही है? इसपर भी जिम्मेदार संगठनों व समीक्षकों को अपनी बात सामने रखनी चाहिये कि दाम घटाकर किसानों की उपज कम दाम पर खरीदने वालों को वायदा कारोबार में पनाह नहीं मिल रहा है या नहीं ? संगठनों और समीक्षकों को यह भी बताना चाहिये कि वायदा कारोबार में बिनौला खल का कितना स्टॉक है कि दाम टूटते जा रहे हैं।
सूत्रों ने कहा कि आवक कम रहने और जाड़े की मांग के कारण सरसों तेल-तिलहन में सुधार रहा। मध्य प्रदेश में सरकारी खरीद शुरू होने के बीच सोयाबीन तेल-तिलहन में मामूली सुधार है। मलेशिया एक्सचेंज के मजबूत रहने के कारण सीपीओ और पामोलीन तेल कीमतों में भी सुधार आया। जबकि आयातित तेलों के महंगा होने तथा बिनौला खल का दाम टूटने के बीच बिनौला तेल के दाम में भी मामूली सुधार है। बिनौला खल में आई गिरावट को बिनौला तेल का दाम बढ़ाकर पूरा करने का चलन है।
तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन - 6,575-6,625 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली - 6,225-6,500 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 14,400 रुपये प्रति क्विंटल।
मूंगफली रिफाइंड तेल - 2,170-2,470 रुपये प्रति टिन।
सरसों तेल दादरी- 13,700 रुपये प्रति क्विंटल।
सरसों पक्की घानी- 2,265-2,365 रुपये प्रति टिन।
सरसों कच्ची घानी- 2,265-2,390 रुपये प्रति टिन।
तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 13,825 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 13,725 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 9,750 रुपये प्रति क्विंटल।
सीपीओ एक्स-कांडला- 12,600 रुपये प्रति क्विंटल।
बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 12,700 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 14,100 रुपये प्रति क्विंटल।
पामोलिन एक्स- कांडला- 13,050 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।
सोयाबीन दाना - 4,435-4,485 रुपये प्रति क्विंटल।
सोयाबीन लूज- 4,135-4,170 रुपये प्रति क्विंटल।
मक्का खल (सरिस्का)- 4,100 रुपये प्रति क्विंटल।
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