Rajya Sabha: राज्यसभा में विपक्ष की मांग, कहा- बड़े कॉरपोरेट की तरह आम लोगों, किसानों को भी राहत दे मोदी सरकार
विपक्षी दलों ने शनिवार को राज्यसभा में सरकार से आम लोगों तथा किसानों को कर्ज पर ब्याज में राहत देने की मांग की। विपक्षी सदस्यों का कहना था कि जिस तरह से सरकार ने दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत छह महीने तक कोई नया मामला शुरू नहीं करने का प्रावधान कर कंपनियों को राहत दी है, उसी तरह से आम लोगों तथा किसानों को भी राहत दी जानी चाहिए।
नई दिल्ली: विपक्षी दलों ने शनिवार को राज्यसभा में सरकार से आम लोगों तथा किसानों को कर्ज पर ब्याज में राहत देने की मांग की. विपक्षी सदस्यों का कहना था कि जिस तरह से सरकार ने दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत छह महीने तक कोई नया मामला शुरू नहीं करने का प्रावधान कर कंपनियों को राहत दी है, उसी तरह से आम लोगों तथा किसानों को भी राहत दी जानी चाहिए. दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (दूसरा संशोधान) विधेयक 2020 पर चर्चा में भाग लेते हुए माकपा के के के रागेश ने कहा कि वित्त मंत्री और अन्य सदस्यों ने सदन को सूचित किया है कि यह विधेयक कंपनियों को बचाने के लिए लाया गया है.
उन्होंने सवाल किया, ‘‘यह तर्क किसानों के मामले में क्यों नहीं लागू किया जाता? किसान भी दिवालिया हो रहे हैं। सरकार जिम्मेदारी लेते हुए किसानों का कर्ज माफ करने की पहल क्यों नहीं करती?’’ रागेश ने कहा कि सरकार को कम से कम कर्ज भुगतान पर रोक की अवधि के दौरान किसानों का ब्याज माफ करने पर विचार करना चाहिए. द्रमुक सदस्य पी विल्सन ने कहा, ‘‘आम आदमी और कॉरपोरेट के बीच भेदभाव किया जा रहा है। यह पक्षपात क्यों? क्या यहां सरकार सिर्फ पूंजीपतियों के लिए है? यह भी पढ़े | खेल की खबरें | पंत से काफी उम्मीदें लेकिन अपेक्षाओं का दबाव नहीं डालेंगे : पोंटिंग.
कांग्रेस सदस्य विवेक तन्खा ने उच्च सदन में कहा कि कोविड-19 को लेकर सरकार ने कई फैसले किए लेकिन उनमें से कुछ पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सरकार के विभिन्न कदमों से सूक्ष्म लघु एवं मझोले उपक्रम (एमएसएमई) क्षेत्र काफी प्रभावित होगा और छोटे कारोबारियों की परेशानी बढ़ जाएगी. तन्खा दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2020 पर चर्चा की शुरूआत कर रहे थे. तन्खा ने कहा कि विधेयक की धारा 10-ए में कहा गया है कि 25 मार्च या उसके बाद कर्ज भुगतान में किसी तरह की चूक पर कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) को छह माह तक दाखिल नहीं किया जाएगा। कांग्रेस नेता ने सवाल किया कि क्या सरकार को भरोसा है कि कोरोना वायरस महामारी एक साल में समाप्त हो जाएगी ?
उन्होंने कहा कि बैंकों की सकल गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) मार्च, 2018 में 10.3 लाख करोड़ रुपये हो गईं। मार्च, 2014 में यह 2.63 लाख करोड़ रुपये थीं। तन्खा ने कहा कि एनपीए और चूक की समस्याएं महामारी से पहले की हैं और धारा 10-ए से यह समस्या हल नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि विधेयक की धारा 7, 9 और 10 को स्थगित करने से पहले, ही चूक की श्रेणी में आ चुकी कंपनियों को संरक्षण मिलेगा। उन्होंने कहा कि यह संशोधन आईबीसी संहिता के साथ समझौता होगा। संहिता का मकसद कंपनियों को जानबूझकर का कर्ज का भुगतान नहीं करने से रोकना है।
तन्खा ने कहा कि अगर मौजूदा महामारी जल्दी खत्म नहीं होती है तो सरकार को एक और संशोधन लाना होगा.
भाजपा के अरुण सिंह ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने कई साहसी और उल्लेखनीय कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा कि इस महामारी के कारण पूरी दुनिया में सेवाएं बंद हो गयीं। ऐसे में सरकार ने जरूरतमंद लोगों को मदद पहुंचाने के लिए तेजी से कई कदम उठाए.सिंह ने कहा कि सरकार ने एक ओर प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना शुरू की और खाद्यान्न के साथ रसोई गैस की आपूर्ति की गयी। उन्होंने कहा कि किसानों को भी राहत प्रदान करने के लिए कदम उठाए गए। इसके अलावा उद्योगों और निवेशकों की मदद के लिए 20 लाख करोड़ रूपये की आत्मनिर्भर योजना की घोषणा की गयी.
सिंह ने कहा कि सरकार ने घर खरीदारों को भी राहत पहुंचाने के लिए कदम उठाए।
सिंह ने बैंकों की गैर निष्पादित आस्ति (एनपीए) का जिक्र करते हुए कांग्रेस पर आरोप लगाया कि पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में इसमें खासी वृद्धि हुयी। उन्होंने दावा किया कि यह पहले 11 प्रतिशत के स्तर पर था और अब यह घटकर नौ प्रतिशत हो गया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने बैंकों से कहा है कि उन्हें अपना लेखाजेाखा छिपाने की जरूरत नहीं है.तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि इस विधेयक की मंशा अच्छी है। उन्होंने कहा कि आपको बिना व्यापक विचार-विमर्श के चीजों को करने की हड़बड़ी रहती है। उन्होंने कहा, ‘‘यही वजह है कि विधेयक को जल्दबाजी में तैयार किया गया। यह आत्मघाती होगा.
उन्होंने कहा कि सरकार के पास रिकार्ड खाद्यान्न भंडार है और विदेशी मुद्रा का भी खासा भंडार है। उन्होंने सुझाव किया कि सरकार को मांग में वृद्धि के लिए जरूरतमंद लोगों के खातों में पैसे देने चाहिए। इससे मांग में वृद्धि होगी और उससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे। इससे पुन: मांग में वृद्धि होगी और सरकार को ज्यादा कर मिलेगा। ऐसे में वह राज्यों को जीएसटी बकाए का भुगतान कर सकेगी. राजद के मनोज झा ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां चली गयीं। उन्होंने लोगों की मदद किए जाने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि आम लोगों की थाली से चीजें गायब हो रही हैं.
झा ने कहा कि सरकार एक हजार रुपये देने की बात करती है और यह प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 33 रुपये होता है। इतनी कम राशि में किसी गरीब का कैसे गुजारा हो सकता है. भाजपा के रवि प्रकाश वर्मा ने कहा कि सरकार को उन लोगों के संबंध में बयान देना चाहिए जिन्होंने जानबूझकर बैंकों से लिए गए ऋण नहीं लौटाए और विदेशों में रह रहे हैं. जद (यू) के आरसीपी सिंह ने कहा कि 2016 में बनी संहिता एक अच्छा और प्रगतिशील कानून है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा लाए गए संशोधनों से वित्तीय मुश्किलों का सामना कर रही कंपनियों को मदद मिलेगी.
समाजवादी पार्टी के रवि वर्मा ने कहा कि यह विधेयक बड़ी कंपनियों की मदद करेगा। उन्होंने सरकार से पूछा कि जो लोग बैंकों का कर्ज लेकर देश से भाग गए हैं उनके बारे में क्या किया जा रहा है. आप के नारायण दास गुप्ता ने कहा कि बड़े और छोटे ऋण लेने वालों के बीच भेदभाव नहीं होना चाहिए. बसपा के वीर सिंह ने सवाल किया कि क्या चूक की स्थिति में व्यक्तिगत गारंटर को उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए ?चर्चा में राकांपा के प्रफुल्ल पटेल, अन्नाद्रमुक के ए विजयकुमार, शिवसेना के अनिल देसाई, तेदेपा के के रवींद्रकुमार, बीजद के अमर पटनायक, भाकपा के विनय विश्वम ने भी भाग लिया.
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