जरुरी जानकारी | बजट में आयात शुल्क नहीं बढ़ाने की अफवाहों के बीच तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट

नयी दिल्ली, 26 जून बजट में सस्ते आयातित खाद्य तेलों पर आयात शुल्क नहीं बढ़ाये जाने की अफवाहों के बीच देश के तेल-तिलहन बाजार में बुधवार को अधिकांश तेल-तिलहनों के दाम गिरावट के साथ बंद हुए। मुख्य रूप से सरसों एवं सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तेल गिरावट के साथ बंद हुए। महंगे दाम पर कम कारोबार की वजह से मूंगफली तेल-तिलहन के दाम स्थिर रहे, जबकि साधारण मांग के बीच बेहद मामूली स्टॉक वाला बिनौला तेल मजबूत बंद हुआ।

शिकॉगो और मलेशिया एक्सचेंज में सुधार है।

बाजार सूत्रों ने कहा कि बाजार में ऐसी अफवाह है कि कुछेक तत्व, तिलहनों का वायदा कारोबार खोलने की वकालत कर रहे हैं जिससे किसानों की सरसों और सोयाबीन को तमाम हथकंडों और अफवाहों के जरिये हड़पा जा सके। लेकिन मौजूदा समय में किसान अपनी मर्जी से अच्छे दाम के इंतजार में रोक रोक कर अपनी फसल बेच रहे हैं। कुछ कमजोर किसानों ने धन की मजबूरी में पहले ही अपनी उपज बेच दी है लेकिन बाकी मजबूत किसान फसलों को बचा कर रखे हुए है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार को इस बात पर गौर करना होगा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के माध्यम से तिलहनों के दाम बीते लगभग 10 साल में लगभग 30-35 प्रतिशत बढ़ गये हैं जबकि खाद्य तेलों के दाम में बेहद मामूली वृद्धि कही जा सकती है। इसका भविष्य में तिलहन उत्पादन पर खराब असर हो सकता है।

सूत्रों ने कहा कि मौजूदा समय में वायदा बाजार में बिनौला खल और सूरजमुखी तेल में कारोबार हो रहा है। बड़ी कंपनियां हाजिर बाजार और वायदा बाजार दोनों ही जगहों पर, एक सुनिश्चित शुल्क दर पर सूरजमुखी तेल बेच रही हैं। यानी इस बीच सरकार ने आयात शुल्क में बढ़ोतरी की भी तो इसके बोझ से खरीदरी करने वाला पक्ष, मुक्त रहेगा। बड़ी कंपनियों के इस सुनिश्चित शुल्क पर खाद्य तेल बिक्री से उन खरीफ तिलहन किसानों का मनोबल टूटेगा जो सूरजमुखी, सोयाबीन, मूंगफली और कपास जैसी फसलें बो रहे हैं और जिनकी हालत पहले से सस्ते आयातित खाद्य तेलों की वजह से ढीली है। इन किसानों को आशंका हो रही है कि अब सरकार शुल्क वृद्धि की दिशा में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी।

उन्होंने कहा कि जब सरकार शुल्क घटाने में जल्दबाजी कर सकती है तो देशी तेल-तिलहनों के नहीं खपने की स्थिति को देखकर आयात शुल्क बढ़ाने में जल्दबाजी क्यों नहीं कर सकती? क्या यह काम खरीफ फसलों की बुवाई की समाप्ति का इंतजार करेगा? इससे तो किसी भी तरह तिलहन उत्पादन नहीं बढेगा।

सूत्रों ने कहा कि जून, 2024 में रिकॉर्ड लगभग पांच लाख टन सूरजमुखी तेल का आयात हुआ जबकि देश की सूरजमुखी तेल की मासिक मांग लगभग ढाई लाख टन की है। आयात करने पर सूरजमुखी तेल की लागत बंदरगाहों पर 95 रुपये किलो बैठती है जो लगभग पांच प्रतिशत कम दाम यानी 91 रुपये किलो थोक में बिक रहा है। यानी खुदरा में यह 105-110 के भाव बिकना चाहिये पर यह बिक रहा है 135-140 रुपये लीटर। तो क्या इससे मंहगाई नहीं बढ़ती? अगर यही हाल बना रहा तो तेल मिलों के पास अपना धंधा बंद करने के अलावा कोई रास्ता नहीं होगा क्योंकि सस्ते आयातित तेलों के आगे उन्हें देशी तिलहनों की पेराई में भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है।

तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

सरसों तिलहन - 5,900-5,960 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली - 6,100-6,375 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) - 14,600 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली रिफाइंड तेल 2,210-2,510 रुपये प्रति टिन।

सरसों तेल दादरी- 11,350 रुपये प्रति क्विंटल।

सरसों पक्की घानी- 1,850-1,950 रुपये प्रति टिन।

सरसों कच्ची घानी- 1,850-1,975 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी - 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 10,250 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 10,150 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,700 रुपये प्रति क्विंटल।

सीपीओ एक्स-कांडला- 8,600 रुपये प्रति क्विंटल।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 10,325 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,725 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन एक्स- कांडला- 8,780 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।

सोयाबीन दाना - 4,600-4,620 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन लूज- 4,410-4,530 रुपये प्रति क्विंटल।

मक्का खल (सरिस्का)- 4,075 रुपये प्रति क्विंटल।

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