
नयी दिल्ली, एक अप्रैल दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि वैध ओसीआई कार्डधारक किसी प्रवासी भारतीय नागरिक के अधिकार को मनमाने ढंग से कम नहीं किया जा सकता है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि नगालैंड और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में कथित अनधिकृत मिशनरी गतिविधियों में शामिल ओसीआई कार्डधारक को निर्वासित करने और काली सूची में डालने में वैधानिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने कहा कि जॉन रॉबर्ट रॉटन तृतीय को आरोपों का जवाब देने के लिए प्रभावी अवसर दिया जाना चाहिए था। अदालत ने मौखिक आदेश देने से पहले केंद्र को जॉन के जवाब के लिए उन्हें कारण बताओ नोटिस देने का निर्देश दिया।
न्यायाधीश ने कहा कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत अंतर्निहित हैं और यह किसी प्रवासी भारतीय नागरिक (ओसीआई) कार्डधारक का पंजीकरण रद्द करने के लिए परिकल्पित वैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
अदालत ने कहा, ‘‘वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया, तथा उसे निर्वासन/काली सूची में डालने के आधार के बारे में भी सूचित नहीं किया गया।’’
अदालत ने 28 मार्च को दिए गए फैसले में कहा, ‘‘निर्वासन के समय उसे न तो यह बताया गया कि उसे काली सूची में डाल दिया गया है और न ही उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों को चुनौती देने का अवसर दिया गया।’’
याचिकाकर्ता अमेरिकी नागरिक है, जिसके पास 1991 में एक भारतीय नागरिक से विवाह होने के कारण ओसीआई कार्ड था तथा वह फरवरी 1994 में दीमापुर, नगालैंड में रहने लगा था।
जून 2024 में, दंपति याचिकाकर्ता के माता-पिता से मिलने अमेरिका गए, लेकिन उसी वर्ष अक्टूबर में भारत लौटने पर, उन्हें देश में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई, जबकि उनके पास वैध ओसीआई कार्ड था, जिसके तहत उन्हें आजीवन वीजा प्राप्त था।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसे निर्वासन के लिए न तो कोई कारण बताया गया और न ही कोई आधिकारिक आदेश दिया गया।
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