मुंबई, आठ जुलाई एक सरकारी वकील ने शुक्रवार को बम्बई उच्च न्यायालय को बताया कि जेल के कैदी हालांकि अपने रिश्तेदारों या वकीलों से फोन पर बात कर सकते हैं, लेकिन इस बात को लेकर वह आश्वस्त नहीं है कि एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले के एक आरोपी कार्यकर्ता गौतम नवलखा को यह सुविधा दी जा सकती है।
महाराष्ट्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाली वकील संगीता शिंदे ने कहा कि 70 वर्षीय नवलखा पर गंभीर अपराध का आरोप है।
न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एन. आर. बोरकर की खंडपीठ ने उन्हें मामले में सरकार का रुख स्पष्ट करने के लिए 12 जुलाई तक का समय दिया।
उच्च न्यायालय नवलखा द्वारा अपने वकील युग मोहित चौधरी के माध्यम से दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें अनुरोध किया गया है कि उसे मुंबई के निकट तलोजा जेल से फोन कॉल और वीडियो कॉल करने की अनुमति दी जाए, जहां वह बंद है।
वकील ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान सभी कैदियों को वीडियो कॉल (वीसी) की सुविधा की पेशकश की गई थी, लेकिन जेलों में कैदियों से प्रत्यक्ष रूप से मुलाकात फिर से शुरू होने के बाद, इसे वापस ले लिया गया है।
पीठ ने कहा कि राज्य के जेल नियमों में वीसी सुविधा का प्रावधान नहीं है और मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष जेलों से वीडियो कॉल की अनुमति देने के अनुरोध संबंधी एक जनहित याचिका लंबित है।
चौधरी ने कहा कि इस बीच नवलखा को फोन करने की अनुमति दी जाए।
अदालत ने कहा कि नवलखा पर जेल के नियम लागू हैं या नहीं, इस पर राज्य को ‘‘स्पष्ट रुख’’ लेना होगा।
शिंदे ने कहा कि उन्हें अधिकारियों से ‘‘निर्देश लेने’’ की आवश्यकता होगी। इसके बाद अदालत ने सुनवाई 12 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी।
गौरतलब है कि नवलखा और अन्य के खिलाफ मामला दिसंबर 2017 में पुणे में आयोजित ‘एल्गार परिषद’ सम्मेलन से संबंधित है। राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण के कार्यभार संभालने से पहले मामले की जांच करने वाली महाराष्ट्र पुलिस ने आरोप लगाया था कि इस कार्यक्रम को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था।
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