मुंबई, 25 अगस्त राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने बृहस्पतिवार को बंबई उच्च न्यायालय में एल्गार-परिषद माओवादी संबंध मामले में आरोपी प्रोफेसर हनी बाबू की जमानत याचिका का विरोध किया।
एनआईए ने कहा कि वह नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे और सरकार गिराना चाहते थे।
न्यायमूर्ति एन.एम. जामदार और न्यायमूर्ति एन.आर. बोरकर की खंडपीठ ने बाबू की जमानत याचिका पर सुनवाई की।
एनआईए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) अनिल सिंह ने अदालत से कहा कि बाबू प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सदस्य थे और उनके लैपटॉप से अभियोजन को मिली सामग्री यह दर्शाती है कि वह इस मामले के अन्य आरोपियों के लगातार संपर्क में थे।
केंद्रीय एजेंसी के वकील ने कहा कि बाबू नक्सलवाद का प्रचार और विस्तार करना चाहते थे और निर्वाचित सरकार को गिराकर भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के षड़यंत्र में शामिल थे।
सिंह ने अदालत से कहा कि वह और अन्य आरोपी सशस्त्र संघर्ष के जरिए ''जनता सरकार'' बनाना चाहते थे।
एएसजी ने तर्क दिया कि बाबू संगठन के अन्य सदस्यों को फोन टैपिंग से बचने का प्रशिक्षण देते थे।
अदालत शुक्रवार को भी याचिका पर सुनवाई करेगी।
दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर बाबू को इस मामले में जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वह नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं।
यह मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में हुए एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने से संबंधित है। पुलिस का दावा है कि इसके कारण अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित भीमा-कोरेगांव स्मारक के निकट हिंसा भड़क गई थी।
पुणे पुलिस ने कहा था कि इस सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन हासिल था। मामले में एक दर्जन से अधिक कार्यकर्ताओं और अकादमिक विद्वानों को नामजद गिया गया था। बाद में मामले की जांच एनआईए को सौंप दी गई थी।
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