देश की खबरें | एनजीटी 2021 में पर्यावरणीय विवादों का समाधान करने के लिए कटिबद्ध रहा
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नयी दिल्ली, दो जनवरी राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने 2021 में न सिर्फ देश के मुख्य पर्यावरणीय मुद्दों को उठाया, बल्कि एक नयी गतिशील कार्यशैली भी अपनाई। दरअसल, इसने सरकारी मशीनरी को तेजी से कार्रवाई करने के लिए प्रेरित किया।
एनजीटी ने प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार किया और गंगा एवं यमुना की सफाई पर जोर दिया।
कोविड-19 के मद्देनजर अदालतों के डिजिटल माध्यम से सुनवाई करने के बीच एनजीटी ने मामलों की सुनवाई वीडियो कांफ्रेंस के जरिए जारी रखा और इसने अप्रैल-मई में कोरोना वायरस के मामलों के काफी तेजी से बढ़ने के आलोक में 2021 के अपने ग्रीष्मकालीन अवकाश के समय में भी बदलाव किया।
वर्ष 2021 में, अपने सांविधिक दायित्वों का निर्वहन करने में नाकाम रहने पर सार्वजनिक प्राधिकरणों और पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाने को लेकर कॉरपोरेट घरानों पर भारी जुर्माना लगाया गया तथा पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति करने का (एनजीटी द्वारा) आदेश दिया गया।
गंगा की सफाई पर असंतोष प्रकट करते हुए अधिकरण ने कहा कि मासूम नागरिक गंगा जल में नुकसानदेह तत्व होने की जानकारी के बगैर इसे पी रहे हैं और प्राधिकारों से कम से कम यह उम्मीद की जाती है कि वे उपयुक्त स्थानों पर जल में नुकसानदेह तत्व की मौजूदगी के बारे में अधिसूचित करें।
एनजीटी ने पिछले 36 वर्षों से निगरानी के बावजूद गंगा की सफाई के चुनौतीपूर्ण बने रहने का जिक्र करते हुए कहा कि वक्त आ गया है कि इस उद्देश्य के लिए आवंटित कोष के उचित एवं समय पर उपयोग को लेकर जवाबदेही तय की जाए।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने जल गुणवत्ता आंकड़ों के आधार पर नदियों के 351 प्रदूषित खंडों की पहचान की और एनजीटी के निर्देशों के मुताबिक पुनर्जीवन योजनाएं तैयार की गई। साथ ही, यह ध्यान में रखा गया कि इन नदियों की जल की गुणवत्ता कम से कम स्नान करने लायक हो जाए।
यमुना नदी में प्रदूषण के मुद्दे पर अधिकरण ने कहा कि जल गुणवत्ता अत्यधिक खराब बनी हुई है क्योंकि प्रदूषक अब भी नालों में बहाये जा रहे हैं। अधिकरण ने यमुना में प्रदूषित जल छोड़ने को लेकर दिल्ली और उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा कि उनका काम जन स्वास्थ्य एवं पर्यावरण की सुरक्षा करना है, ना कि महज पद एवं भत्तों का आनंद उठाना है।
एनजीटी ने मौत एवं चोट लगने का कारण बनने वाली औद्योगिक दुर्घटनाओं से जुड़े विषयों पर भी स्वत: संज्ञान लिया और इस तरह की घटनाओं पर रोक सुनिश्चित करने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर निर्देश जारी किये गये।
अधिकरण ने पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन करने को लेकर धामपुर सुगर मिल्स लिमिटेड की चार इकाइयों पर 20 करोड़ रुपये और उत्तर प्रदेश में एक फार्मास्यूटिकल विनिर्माण कंपनी पर 10 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया।
एनजीटी ने यह भी कहा कि प्लास्टिक की कलम प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के दायरे में हो और पर्यावरण मंत्रालय को विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी व्यवस्था को अंतिम रूप देने का निर्देश दिया।
जैवचिकित्सा कचरा प्रबंधन के संदर्भ में अधिकरण ने देश के सभी संस्थानों को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मंजूरी लेने का निर्देश दिया।
असम के बाघजन तेल कुआं में आग लगने की घटना भी एनजीटी के दायरे में आई, जिसने कहा कि ऑयल इंडिया लिमिटेड कंपनी ठेकेदार पर आरोप लगा कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती और घटना से जुड़े लोगों की नाकामियों की जवाबदेही तय करने को लेकर एक समिति गठित की।
भारत में हर साल करीब 15 लाख लोगों की वायु प्रदूषण से मौत होने का जिक्र करते हुए एनजीटी ने वायु गुणवत्ता की स्थिति बेहतर करने के लिए उपायों की निगरानी के वास्ते आठ सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यबल का गठन किया।
एनजीटी ने जनहित की कीमत पर महज वाणिज्यिक हितों के लिए आरओ (रिवर्स ऑस्मोसिस) प्यूरीफायर के उपयोग में जल की अत्यधिक बर्बादी को रोके जाने की जरूरत भी बताई।
एनजीटी ने बेंगलुरु में गोदरेज प्रापर्टीज लिमिटेड की गगनचुंबी लग्जरी परियोजना और वंडर प्रोजेक्ट्स डेवलपमेंट प्रा. लि. को मिली पर्यावरण मंजूरी रद्द कर दी तथा इन इमारतों को फौरन ध्वस्त करने का निर्देश दिया।
अधिकरण ने यह भी कहा कि 5,000 से अधिक पक्षियों का पॉल्ट्री फार्म चला रहे व्यक्ति को छोटा किसान नहीं कहा जा सकता या वहां होने वाले प्रदूषण को नियमन के दायरे से बाहर नहीं रखा जा सकता।
सुभाष अविनाश
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