देश की खबरें | धर्मांतरण मामले की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ से सुनवाई की मांग को लेकर न्यायालय में नयी अर्जी

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय में एक नयी अर्जी दायर कर आग्रह किया गया है कि कथित जबरन धर्मांतरण से जुड़े मामलों को पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष रखा जाये, क्योंकि इनमें संविधान की व्याख्या शामिल है।

नयी दिल्ली, 29 जनवरी उच्चतम न्यायालय में एक नयी अर्जी दायर कर आग्रह किया गया है कि कथित जबरन धर्मांतरण से जुड़े मामलों को पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष रखा जाये, क्योंकि इनमें संविधान की व्याख्या शामिल है।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय पीठ सोमवार को कई राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों के खिलाफ विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली है। ये कानून अंतर-धार्मिक विवाहों के कारण धर्मांतरण और कथित जबरन धर्मांतरण से संबंधित मामलों का नियमन करते हैं।

नयी अर्जी वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है, जो पहले से याचिका दायर करने वालों में शामिल हैं। उन्होंने यह कहते हुए याचिकाओं को एक बड़ी पीठ को भेजने का अनुरोध किया है कि इसमें कानून के कई प्रश्न शामिल हैं, जिनकी संविधान के दायरे में व्याख्या की आवश्यकता है।

शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी को विभिन्न राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाले पक्षकारों से इस मुद्दे पर विभिन्न उच्च न्यायालयों से शीर्ष अदालत में मामलों को स्थानांतरित करने के लिए एक आम याचिका दायर करने को कहा था।

इसने एक पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से सभी याचिकाओं को उच्च न्यायालयों से शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने के लिए एक आम याचिका दायर करने को कहा था।

शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे की दलीलों का संज्ञान लिया था कि उपाध्याय द्वारा दायर याचिकाओं में से एक, ईसाइयों और मुसलमानों पर आक्षेप लगाती है और उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद दातार को ‘‘आपत्तिजनक अंश’’ हटाने के लिए एक औपचारिक याचिका दायर करने के लिए कहा था।

दातार ने हालांकि कहा कि वह कथित सामग्री पर जोर नहीं दे रहे हैं।

कथित ‘‘जबरन धर्म परिवर्तन’’ के खिलाफ उपाध्याय की याचिका पहले न्यायमूर्ति एमआर शाह की अगुवाई वाली एक अन्य पीठ द्वारा सुनी जा रही थी, जिसे हाल ही में सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ को स्थानांतरित कर दिया गया था।

एक मामले में पीठ की सहायता कर रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि उच्च न्यायालयों को स्थानीय कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष कम से कम पांच, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष सात, गुजरात और झारखंड उच्च न्यायालयों के समक्ष दो-दो, हिमाचल प्रदेश के समक्ष तीन और कर्नाटक एवं उत्तराखंड उच्च न्यायालयों के समक्ष एक-एक याचिका थी। न्यायालय ने कहा था कि उनके स्थानांतरण के लिए एक आम याचिका दायर की जा सकती है।

शीर्ष अदालत ने छह जनवरी, 2021 को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ विवादास्पद नए कानूनों की पड़ताल करने पर सहमति व्यक्त की थी, जो इस तरह के विवाहों के कारण होने वाले धर्मांतरण को नियंत्रित करते हैं।

उत्तर प्रदेश का विवादास्पद कानून न केवल अंतर-धार्मिक विवाह, बल्कि सभी प्रकार के धर्मांतरण से संबंधित है और दूसरा धर्म अपनाने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए विस्तृत प्रक्रियाएं निर्धारित करता है।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

Share Now

\