नयी दिल्ली, 25 अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि पर्यवेक्षी समिति को एक सदी से अधिक पुराने मुल्लापेरियार बांध में अधिकतम जलस्तर पर एक ‘‘दृढ़ निर्णय’’ लेना चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह बात तब कही, जब केरल में भारी बारिश के मद्देनजर इस मुद्दे को उसके समक्ष उठाया गया।
मुल्लापेरियार बांध 1895 में केरल के इडुक्की जिले में पेरियार नदी पर बनाया गया था।
शीर्ष अदालत ने सभी संबंधित प्राधिकारियों को इस मुद्दे पर तत्काल आधार पर बातचीत करने का निर्देश देते हुए कहा कि इसका कुछ संबंध जीवन से है।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा, ‘‘हर किसी को गंभीरता और ईमानदारी से कार्य करना चाहिए। यह कुछ ऐसा है, जो जीवन से जुड़ा हुआ है। किसी की जान और माल को खतरा होगा। सभी को गंभीरता से कार्य करना चाहिए। यह एक राजनीतिक क्षेत्र नहीं है, जहां आप बहस कर सकते हैं।’’
पीठ बांध से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी। एक याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ से कहा कि केरल में भारी बारिश के कारण जलस्तर बढ़ रहा है और लगभग 50 लाख लोगों का जीवन खतरे में हो सकता है।
केरल के लिए पेश हुए वकील ने बांध के जलग्रहण क्षेत्र में मूसलाधार बारिश का उल्लेख करते हुए कहा कि जलस्तर 139 फुट से अधिक नहीं बढ़ाया जाना चाहिए, जैसा कि अगस्त 2018 में शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया था, जब राज्य बाढ़ की चपेट में था।
तमिलनाडु की ओर से पेश वकील ने पीठ को अवगत कराया कि बृहस्पतिवार सुबह नौ बजे जल स्तर 137.2 फुट था।
पीठ ने कहा, ‘‘हम सभी संबंधित प्राधिकारियों को तत्काल आधार पर बातचीत करने और समिति को बांध के अधिकतम जलस्तर के बारे में एक दृढ़ निर्णय लेने का निर्देश देते हैं।’’
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने पीठ को बताया कि समिति ने अदालत के समक्ष स्थिति रिपोर्ट दाखिल की है।
पीठ ने भाटी से पूछा, ‘‘एक मुद्दा उठाया गया है कि बांध में बनाए रखे जाने वाले अधिकतम जलस्तर को निर्दिष्ट करने की तत्काल आवश्यकता है। आज यही मुद्दा उठाया गया है। यदि तत्काल आवश्यकता है, तो क्या आपने उस पहलू पर पड़ताल की है या नहीं। क्या आप निर्देश ले सकते हैं।’’
एएसजी ने कहा कि वह इस मुद्दे पर निर्देश लेंगी।
पीठ ने कहा, ‘‘अन्य पक्षों की चिंता को समझें। कुछ लोग इसका खंडन कर सकते हैं, कुछ उस तर्क को आगे बढ़ा सकते हैं लेकिन समिति को यह निर्णय लेना होगा कि इसमें शामिल जोखिम कारकों को ध्यान में रखते हुए अधिकतम स्तर क्या होना चाहिए।’’
पीठ ने कहा कि अदालत जलस्तर तय नहीं कर सकती और इस पर फैसला समिति को करना है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सभी पक्षों की चिंताओं का समिति को एक या दो दिन के भीतर तत्काल समाधान करना चाहिए।
केरल की ओर से पेश वकील ने कहा कि तब तक तमिलनाडु को जलस्तर 137.2 फुट पर बनाए रखना चाहिए।
पीठ ने केरल के वकील से कहा कि उनके अधिकारियों को इस मुद्दे पर तमिलनाडु के संबंधित अधिकारियों और समिति के साथ जिम्मेदारी से बातचीत करनी चाहिए।
उसने कहा कि जमीन पर किसी भी गंभीर स्थिति से सभी संबंधित पक्षों को निपटना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘यदि आप अपना काम करते हैं, तो हमें ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है।’’ पीठ ने कहा कि किसी भी पक्ष की ओर से निष्क्रियता के कारण, अदालत को इस पर फैसला करना है।
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 27 अक्टूबर को तय की।
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