जरुरी जानकारी | बीते सप्ताह त्योहारी, शादी-विवाह की मांग से अधिकांश तेल-तिलहन में सुधार

नयी दिल्ली, 10 मार्च आयातित खाद्य तेलों की कम आपूर्ति के बीच त्योहारों और शादी-विवाह के मौसम की मांग बढ़ने के कारण बीते सप्ताह मूंगफली तेल-तिलहन में आई गिरावट को छोड़कर लगभग सभी तेल-तिलहन कीमतों में सुधार दर्ज हुआ।

बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि ऊंचे भाव पर लिवाली कमजोर रहने की वजह से मूंगफली तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट देखी गई।

सूत्रों ने कहा कि इस बार जो दुर्गति मूंगफली की हुई है उससे कोई अच्छा संकेत नहीं मिलता और इस बात की आशंका पैदा होती है कि कहीं इसका हाल भी सूरजमुखी जैसा न हो जाये जिसका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) काफी बढ़ाये जाने के बाद भी किसान उत्पादन बढ़ाने को तैयार नहीं हैं। जो आज मूंगफली के साथ हो रहा है वह बेहद चिंताजनक है। इसका कारण यह है कि इस तेल को सीधा खाने में उपयोग किया जाता है। दूसरी बात सूरजमुखी तेल की कमी को आयात करके पूरा किया जा सकता है पर मूंगफली तेल के मामले में ऐसा करना असंभव है।

उन्होंने कहा कि वर्ष 1987 में मूंगफली का सबसे अधिक उत्पादन करने वाले राज्य गुजरात में जब सूखा पड़ा था, तो आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक ने मूंगफली की इतनी पैदावार की थी कि इसके दाम आधे रह गये थे। लेकिन आज इन जगहों पर पैदावार काफी घटती जा रही है। ऐसा सूरजमुखी के मामले में पहले देखा जा चुका है जिसकी वर्ष 1995-1996 में लगभग 26.76 लाख हेक्टेयर में खेती होती थी जो चालू वर्ष में घटकर काफी कम रह गई है। इसके लिए देशी तेल-तिलहन को लेकर अस्प्ष्ट नीतियों को जिम्मेदार माना जाता है।

शायद यही वजह है कि सूरजमुखी का एमएसपी काफी ऊंचा रखे जाने के बाद भी किसानों में सूरजमुखी खेती को लेकर कोई उत्साह नजर नहीं आता। संभवत: मूंगफली की घटती खेती का यह एक कारण हो सकता है। इन पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है।

सूत्रों ने कहा कि खाद्य तेलों की कम आपूर्ति तथा शादी-विवाह और त्योहारी मांग के बीच लगभग सभी खाद्य तेलों की मांग है। महंगा होने के कारण पाम-पामोलीन का कम आयात हुआ है। इसकी कमी का दबाव भी सोयाबीन डीगम तेल पर है। सोयाबीन डीगम का भी आयात कम है और संभवत: इसी कारण बंदरगाहों पर यह तेल प्रीमियम के साथ बिक रहा है। कपास की अधिकांश फसल की आवक बाजार में हो चुकी है और कपास से निकलने वाले बिनौला तेल की भी कमी की स्थिति है जिसकी पूर्ति सोयाबीन डीगम तेल से करने का दबाव रहेगा। आने वाले दिनों में मांग बढ़ सकते है और खाद्य तेलों का स्टॉक जमा रखने की क्षमता के अभाव में खाद्य तेल का स्टॉक ने दुकानदारों के पास है न स्टॉकिस्टों और न आयातकों के पास है। आयातित तेल प्रीमियम के साथ बिक रहे हैं और देशी तेल-तिलहन नुकसान में बिक रहा है। ऐसा उस देश में हो रहा है जो अपनी खाद्य तेल मांग के लगभग 55 प्रतिशत भाग की आपूर्ति के लिए आयात पर निर्भर है।

पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 50 रुपये की तेजी के साथ 5,400-5,440 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का भाव 200 रुपये बढ़कर 10,325 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 25-25 रुपये की तेजी के साथ क्रमश: 1,745-1,845 रुपये और 1,745-1,850 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।

समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज का भाव क्रमश: 20-20 रुपये की तेजी के साथ क्रमश: 4,610-4,630 रुपये प्रति क्विंटल और 4,410-4,450 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

इसी तरह सोयाबीन दिल्ली, सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम तेल का भाव क्रमश: 225 रुपये, 375 रुपये और 325 रुपये की तेजी के साथ क्रमश: 10,700 रुपये और 10,400 रुपये और 9,125 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

महंगे दाम पर लिवाल नदारद रहने के बीच समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तिलहन के दाम 100 रुपये की गिरावट के साथ 5,975-6,250 रुपये क्विंटल पर बंद हुए। मूंगफली गुजरात और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल के भाव भी क्रमश: 350 रुपये और 45 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 14,500 रुपये क्विंटल और 2,180-2,455 रुपये प्रति टिन पर बंद हुए।

समीक्षाधीन सप्ताह में कच्चा पाम तेल (सीपीओ) 300 रुपये की मजबूती के साथ 8,900 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पामोलीन दिल्ली का भाव 500 रुपये के बढ़त के साथ 10,125 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला तेल का भाव 400 रुपये की तेजी के साथ 9,225 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

सुधार के आम रुख के अनुरूप बिनौला तेल भी 250 रुपये बढ़कर 9,400 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

राजेश

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