केरल में वैवाहिक संबंध ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ की उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित \: उच्च न्यायालय

Close
Search

केरल में वैवाहिक संबंध ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ की उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित \: उच्च न्यायालय

उच्च न्यायालय ने हाल में टिप्पणी की कि ऐसा लगता है कि केरल में वैवाहिक संबंध ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ की उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित हैं तथा ‘लिव-इन’ संबंधों और तुच्छ या स्वार्थ के आधार पर तलाक लेने के चयन के मामलों में बढ़ोतरी से यह साबित होता है.

एजेंसी न्यूज Bhasha|
केरल में वैवाहिक संबंध ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ की उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित \: उच्च न्यायालय
केरल हाईकोर्ट (Photo Credit : Wikimedia Commons)

कोच्चि, 1 सितंबर : उच्च न्यायालय ने हाल में टिप्पणी की कि ऐसा लगता है कि केरल में वैवाहिक संबंध ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ की उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित हैं तथा ‘लिव-इन’ संबंधों और तुच्छ या स्वार्थ के आधार पर तलाक लेने के चयन के मामलों में बढ़ोतरी से यह साबित होता है. अदालत ने टिप्पणी की कि युवा पीढ़ी विवाह को स्पष्ट रूप से ऐसी बुराई के रूप में देखती है, जिसे बिना दायित्वों के आजादी वाले जीवन का आनंद लेने के लिए टाला जाना चाहिए. न्यायमूर्ति ए मोहम्मद मुस्ताक और न्यायमूर्ति सोफी थॉमस की पीठ ने कहा, ‘‘वे (युवा पीढ़ी) ‘वाइफ’ (पत्नी) शब्द को ‘वाइज इन्वेस्टमेंट फॉर एवर’ (सदा के लिए समझदारी वाला निवेश) की पुरानी अवधारणा के बजाय ‘वरी इन्वाइटेड फोर एवर’ (हमेशा के लिए आमंत्रित चिंता) के रूप में परिभाषित करते हैं.’’

पीठ ने कहा, ‘‘ ‘लिव-इन’ संबंध के मामले बढ़ रहे हैं, ताकि वे अलगाव होने पर एक-दूसरे को अलविदा कह सकें.’’ जब स्त्री एवं पुरुष बिना विवाह किए पति-पत्नी की तरह एक ही घर में रहते हैं, तो उसे ‘लिव-इन’ संबंध कहा जाता है. अदालत ने नौ साल के वैवाहिक संबंधों के बाद किसी अन्य महिला के साथ कथित प्रेम संबंधों के कारण अपनी पत्नी और तीन बेटियों को छोड़ने वाले व्यक्ति की तलाक की याचिका खारिज करते हुए कहा कि ‘ईश्वर की धरती’ कहा जाने वाला केरल एक समय पारिवारिक संबंधों के अपने मजबूत ताने-बाने के लिए जाना जाता था. अदालत ने कहा, ‘‘लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि तुच्छ या स्वार्थ के कारण अथवा विवाहेतर संबंधों के लिए, यहां तक कि अपने बच्चों की भी परवाह किए बिना वैवाहिक बंधन तोड़ना मौजूदा चलन बन गया है.’’ पीठ ने कहा, ‘‘एक दूसरे से संबंध तोड़ने की इच्छा रखने वाले जोड़े, (माता-पिता द्वारा) त्यागे गए बच्चे और हताश तलाकशुदा लोग जब हमारी आबादी में अधिसंख्य हो जाते हैं, तो इससे हमारे सामाजिक जीवन की शांति पर निस्संदेह प्रतिकूल असर पड़ेगा और हमारे समाज का विकास रुक जाएगा.’’

पीठ ने कहा कि प्राचीन काल से विवाह को ऐसा ‘‘संस्कार’’ माना जाता था, जिसे पवित्र समझा जाता है और यह ‘‘मजबूत समाज की नींव’’ के तौर पर देखा जाता है. उसने कहा, ‘‘विवाह पक्षों की यौन इच्छाओं की पूर्ति का लाइसेंस देने वाली कोई खोखली रस्म भर नहीं है.’’ अदालत ने तलाक संबंधी पति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि ‘‘अदालतें गलती करने वाले व्यक्ति की मदद करके उसकी पूरी तरह से अवैध गतिविधियों को वैध नहीं बना सकतीं.’’ पीठ ने कहा कि यदि किसी पुरुष के विवाहेतर प्रेम संबंध हैं और वह अपनी पत्नी एवं बच्चों से संबंध समाप्त करना चाहता है, तो वह अपने ‘‘अपवित्र संबंध’’ या वर्तमान रिश्ते को वैध बनाने के लिए अदालतों की मदद नहीं ले सकता. अदालत ने कहा, ‘‘कानून और धर्म विवाह को अपने आप में एक संस्था मानते हैं और विवाह के पक्षकारों को इस रिश्ते से एकतरफा दूर जाने की अनुमति नहीं है, जब तक कि वे कानून की अदालत के माध्यम से या उन्हें नियंत्रित करने वाले ‘पर्सनल लॉ’ के अनुसार अपनी शादी को भंग करने के लिए कानूनी अनिवार्यताओं को पूरा नहीं कर लेते.’’ यह भी पढ़ें : Maharashtra: कार की चपेट में आने से चार मजदूर घायल

इस मामले के याचिकाकर्ता क�

उच्च न्यायालय ने हाल में टिप्पणी की कि ऐसा लगता है कि केरल में वैवाहिक संबंध ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ की उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित हैं तथा ‘लिव-इन’ संबंधों और तुच्छ या स्वार्थ के आधार पर तलाक लेने के चयन के मामलों में बढ़ोतरी से यह साबित होता है.

एजेंसी न्यूज Bhasha|
केरल में वैवाहिक संबंध ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ की उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित \: उच्च न्यायालय
केरल हाईकोर्ट (Photo Credit : Wikimedia Commons)

कोच्चि, 1 सितंबर : उच्च न्यायालय ने हाल में टिप्पणी की कि ऐसा लगता है कि केरल में वैवाहिक संबंध ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ की उपभोक्ता संस्कृति से प्रभावित हैं तथा ‘लिव-इन’ संबंधों और तुच्छ या स्वार्थ के आधार पर तलाक लेने के चयन के मामलों में बढ़ोतरी से यह साबित होता है. अदालत ने टिप्पणी की कि युवा पीढ़ी विवाह को स्पष्ट रूप से ऐसी बुराई के रूप में देखती है, जिसे बिना दायित्वों के आजादी वाले जीवन का आनंद लेने के लिए टाला जाना चाहिए. न्यायमूर्ति ए मोहम्मद मुस्ताक और न्यायमूर्ति सोफी थॉमस की पीठ ने कहा, ‘‘वे (युवा पीढ़ी) ‘वाइफ’ (पत्नी) शब्द को ‘वाइज इन्वेस्टमेंट फॉर एवर’ (सदा के लिए समझदारी वाला निवेश) की पुरानी अवधारणा के बजाय ‘वरी इन्वाइटेड फोर एवर’ (हमेशा के लिए आमंत्रित चिंता) के रूप में परिभाषित करते हैं.’’

पीठ ने कहा, ‘‘ ‘लिव-इन’ संबंध के मामले बढ़ रहे हैं, ताकि वे अलगाव होने पर एक-दूसरे को अलविदा कह सकें.’’ जब स्त्री एवं पुरुष बिना विवाह किए पति-पत्नी की तरह एक ही घर में रहते हैं, तो उसे ‘लिव-इन’ संबंध कहा जाता है. अदालत ने नौ साल के वैवाहिक संबंधों के बाद किसी अन्य महिला के साथ कथित प्रेम संबंधों के कारण अपनी पत्नी और तीन बेटियों को छोड़ने वाले व्यक्ति की तलाक की याचिका खारिज करते हुए कहा कि ‘ईश्वर की धरती’ कहा जाने वाला केरल एक समय पारिवारिक संबंधों के अपने मजबूत ताने-बाने के लिए जाना जाता था. अदालत ने कहा, ‘‘लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि तुच्छ या स्वार्थ के कारण अथवा विवाहेतर संबंधों के लिए, यहां तक कि अपने बच्चों की भी परवाह किए बिना वैवाहिक बंधन तोड़ना मौजूदा चलन बन गया है.’’ पीठ ने कहा, ‘‘एक दूसरे से संबंध तोड़ने की इच्छा रखने वाले जोड़े, (माता-पिता द्वारा) त्यागे गए बच्चे और हताश तलाकशुदा लोग जब हमारी आबादी में अधिसंख्य हो जाते हैं, तो इससे हमारे सामाजिक जीवन की शांति पर निस्संदेह प्रतिकूल असर पड़ेगा और हमारे समाज का विकास रुक जाएगा.’’

पीठ ने कहा कि प्राचीन काल से विवाह को ऐसा ‘‘संस्कार’’ माना जाता था, जिसे पवित्र समझा जाता है और यह ‘‘मजबूत समाज की नींव’’ के तौर पर देखा जाता है. उसने कहा, ‘‘विवाह पक्षों की यौन इच्छाओं की पूर्ति का लाइसेंस देने वाली कोई खोखली रस्म भर नहीं है.’’ अदालत ने तलाक संबंधी पति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि ‘‘अदालतें गलती करने वाले व्यक्ति की मदद करके उसकी पूरी तरह से अवैध गतिविधियों को वैध नहीं बना सकतीं.’’ पीठ ने कहा कि यदि किसी पुरुष के विवाहेतर प्रेम संबंध हैं और वह अपनी पत्नी एवं बच्चों से संबंध समाप्त करना चाहता है, तो वह अपने ‘‘अपवित्र संबंध’’ या वर्तमान रिश्ते को वैध बनाने के लिए अदालतों की मदद नहीं ले सकता. अदालत ने कहा, ‘‘कानून और धर्म विवाह को अपने आप में एक संस्था मानते हैं और विवाह के पक्षकारों को इस रिश्ते से एकतरफा दूर जाने की अनुमति नहीं है, जब तक कि वे कानून की अदालत के माध्यम से या उन्हें नियंत्रित करने वाले ‘पर्सनल लॉ’ के अनुसार अपनी शादी को भंग करने के लिए कानूनी अनिवार्यताओं को पूरा नहीं कर लेते.’’ यह भी पढ़ें : Maharashtra: कार की चपेट में आने से चार मजदूर घायल

इस मामले के याचिकाकर्ता की याचिका को कुटुम्ब न्यायालय ने खारिज कर दिया था, इसके बाद उसने अपनी पत्नी पर निर्दयता का आरोप लगाते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा था कि 2009 में उसका विवाह हुआ था और 2018 तक उसके और उसकी पत्नी के वैवाहिक संबंधों में कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन बाद में उसकी पत्नी में व्यवहार संबंधी असामान्यताएं पैदा हो गईं और वह उस पर किसी से प्रेम संबंध होने का आरोप लगाते हुए झगड़ा करने लगी. अदालत ने यह कहते हुए इस दावे को खारिज कर दिया कि जब किसी ‘‘पत्नी के पास अपने पति की ईमानदारी एवं निष्ठा पर शक करने का तर्कसंगत आधार होता है और यदि वह उससे इस बारे में सवाल करती है या उसके सामने अपना गहरा दु:ख व्यक्त करती है, तो इसे असामान्य व्यवहार नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह किसी सामान्य पत्नी का प्राकृतिक मानवीय व्यवहार है.’’

अदालत ने इस बात पर गौर किया कि पत्नी का उसकी सास और याचिकाकर्ता के अन्य सभी संबंधियों ने भी समर्थन किया. याचिकाकर्ता के रिश्तेदारों ने कहा कि वह अपने पति एवं परिवार से प्यार करने वाली अच्छे व्यवहार वाली महिला है. अदालत ने कहा, ‘‘उपलब्ध तथ्य और परिस्थितियां स्पष्ट रूप से इस बात की ओर इशारा करती हैं कि 2017 में याचिकाकर्ता के किसी अन्य महिला के साथ प्रेम संबंध हो गए और वह अपनी पत्नी एवं बच्चों को अपने जीवन से दूर करना चाहता है, ताकि वह उस महिला के साथ रह सके.’’ उसने कहा कि यदि पति अपनी पत्नी एवं बच्चों के पास लौटने के लिए तैयार है, तो पत्नी उसे स्वीकार करने को राजी है और इसलिए ‘‘ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि एक सौहार्दपूर्ण पुनर्मिलन की संभावना हमेशा के लिए समाप्त हो गई है.’’

लिव-इन रिलेशनशिप के बाद महिलाओं के लिए जीवनसाथी ढूंढना मुश्किल: इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी
देश �� याचिका को कुटुम्ब न्यायालय ने खारिज कर दिया था, इसके बाद उसने अपनी पत्नी पर निर्दयता का आरोप लगाते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा था कि 2009 में उसका विवाह हुआ था और 2018 तक उसके और उसकी पत्नी के वैवाहिक संबंधों में कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन बाद में उसकी पत्नी में व्यवहार संबंधी असामान्यताएं पैदा हो गईं और वह उस पर किसी से प्रेम संबंध होने का आरोप लगाते हुए झगड़ा करने लगी. अदालत ने यह कहते हुए इस दावे को खारिज कर दिया कि जब किसी ‘‘पत्नी के पास अपने पति की ईमानदारी एवं निष्ठा पर शक करने का तर्कसंगत आधार होता है और यदि वह उससे इस बारे में सवाल करती है या उसके सामने अपना गहरा दु:ख व्यक्त करती है, तो इसे असामान्य व्यवहार नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह किसी सामान्य पत्नी का प्राकृतिक मानवीय व्यवहार है.’’

अदालत ने इस बात पर गौर किया कि पत्नी का उसकी सास और याचिकाकर्ता के अन्य सभी संबंधियों ने भी समर्थन किया. याचिकाकर्ता के रिश्तेदारों ने कहा कि वह अपने पति एवं परिवार से प्यार करने वाली अच्छे व्यवहार वाली महिला है. अदालत ने कहा, ‘‘उपलब्ध तथ्य और परिस्थितियां स्पष्ट रूप से इस बात की ओर इशारा करती हैं कि 2017 में याचिकाकर्ता के किसी अन्य महिला के साथ प्रेम संबंध हो गए और वह अपनी पत्नी एवं बच्चों को अपने जीवन से दूर करना चाहता है, ताकि वह उस महिला के साथ रह सके.’’ उसने कहा कि यदि पति अपनी पत्नी एवं बच्चों के पास लौटने के लिए तैयार है, तो पत्नी उसे स्वीकार करने को राजी है और इसलिए ‘‘ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह दर्शाता हो कि एक सौहार्दपूर्ण पुनर्मिलन की संभावना हमेशा के लिए समाप्त हो गई है.’’

शहर पेट्रोल डीज़ल
New Delhi 96.72 89.62
Kolkata 106.03 92.76
Mumbai 106.31 94.27
Chennai 102.74 94.33
View all
Currency Price Change
Google News Telegram Bot
Close
Latestly whatsapp channel